
मानचित्र के विपरीत निर्मित 7 दर्जन अपार्टमेंट्स पर बुल्डोजर चलाने की तैयारी
2009 से 2012 में हुए थे निर्माण,जांच में दो दर्जन इंजीनियर पाए गये थे दोषी
शासन को भेजी रिपोर्ट,कार्रवाई की लटकी तलवार
मथुरा,आगरा,नोएडा, गाज़ियाबाद व अन्य शहरों में भी है इस प्रकार के मानचित्र विपरीत अवैध निर्माणों के मामले
लोकायुक्त न्यूज़
लखनऊ। लखनऊ विकास प्राधिकरण के कुछ अधिकारियों और निर्माण स्वामी की मिलीभगत से हो चुके मानचित्र विपरीत निर्माण पर लगभग डेढ़ दशक बाद हाईकोर्ट के आदेश पर 82 के लगभग अपार्टमेंट को धवस्त करने की तैयारी हो चुकी है। इन अपार्टमेंट में दो हजार के लगभग फ्लैट की संख्या बतायी जा रही है।
बात यहीं नहीं रुकती है, यह भी है कि इस मामले में प्राधिकरण के अनेकों उन अभियंताओं पर भी कार्रवाई की तलवार लटक रही है जो निर्माण के दौरान उन क्षेत्रों में कार्यरत थे।
एलडीए से मिली जानकारी के मुताबिक है कि सभी अपार्टमेंट को खाली करने के नोटिस चस्पा कर दिए गए हैं, वहीं लोगों को भी नोटिस देकर सभी से खाली करने को भी कहा है। नहीं खाली करने पर एलडीए स्वयं सामान हटाकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करेगा। क्योंकि बताया जा रहा है कि इस मामलों पर पहले से ही कोर्ट द्वारा ध्वस्तीकरण आदेश पारित हैं।
पूरा प्रकरण :..
एक जन द्वारा वर्ष 2012 में 83 अपार्टमेंट के मानचित्र विपरीत अवैध निर्माण करने पर पीआईएल हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी। उस दौरान कोर्ट के आदेश पर प्राधिकरण ने अपार्टमेंट पर सील भी लगाई थी और ध्वस्तीकरण के आदेश कर आगे की कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डालकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया था।
बता दें कि इतना समय निकलने के बाद प्राधिकरण के वर्तमान अधिकारी अपनी गर्दन कार्रवाई से बचाने को जमीनी स्तर पर वास्तविक कार्रवाई में जुट गए हैं।
बता दें कि इस तरीके के मानचित्र विपरीत अवैध निर्माण उत्तरप्रदेश के सभी प्राधिकरण में आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन इन्हें बचाने वाले कोई और नहीं प्राधिकरण के अधिकारी ही होते हैं।
मथुरा,आगरा, नोएडा, गाज़ियाबाद में भी है इस प्रकार के मानचित्र विपरीत अवैध निर्माणों के मामले
बता दें कि मथुरा में जिस बिल्ड़िंग में सिम्स हॉस्पीटल संचालित है वो भी मानचित्र के विपरीत बनी हुई है जिसे कार्रवाई से अब तक बचाने में एमवीडीए के अधिकारियों का सहयोग स्पष्ट दिख रहा है।
हैरानी तो यह है कि उक्त हॉस्पीटल भवन के अवैध निर्माण पर मथुरा वृंदावन विकास प्राधिकरण के किसी भी अधिकारी ने नोटिस या चालान तक की कार्रवाई भी नहीं की है।
जबकि कंप्लीशन सर्टिफिकेट देना तो दूर की बात हो गई।
हम सभी उस निर्माण कराने वाले मालिक को जागरूक कर रहे है जो किसी भी प्रकार के भवन का निर्माण कराने की सोच रहे हैं या करा रहे हैं कि कोई भी निर्माण जो प्राधिकरण की स्वीकृति के बिना किया जा रहा है और जिन निर्माण स्वामियों ने मानचित्र स्वीकृति तो ली है लेकिन निर्माण को मानचित्र के विपरीत कर दिया गया है, तो उस निर्माण को अवैध की श्रेणी में मानते हुए कभी भी यानी वर्षों बाद भी कार्रवाई करने का प्रावधान भी है और कार्रवाई की भी जाती हैं।
यदि आपसे कोई भी प्राधिकरण का कर्मचारी या अधिकारी अतिरिक्त निर्माण पर कंपाउंडिंग की कहता है तो अब कंपाउंड होना सम्भव नहीं है। इसलिए कोई भी छोटा या बड़ा निर्माण कराते समय उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम 1973 की धारा 14 व 15 के अंर्तगत अपने जिले के प्राधिकरण से स्वीकृति अवश्य लेनी चाहिए और स्वीकृति के अनुसार ही अपना निर्माण करना चाहिए।