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काफिर किसी मुस्लिम की विरासत का हकदार नहीं: लाहौर कोर्ट ने शरिया के हवाले से दिया फैसला, हिन्दू-सिख या अहमदिया नहीं पा सकता मुस्लिम की सम्पत्ति पाकिस्तान के लाहौर हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि किसी मुस्लिम की सम्पत्ति का वारिस गैर-मुस्लिम नहीं हो सकता। लाहौर हाई कोर्ट के इस फैसले का अर्थ है कि पाकिस्तान में कोई हिन्दू-सिख या फिर किसी अन्य धर्म का अनुयायी मुस्लिम व्यक्ति की सम्पत्ति विरासत में नहीं पा सकता। हाई कोर्ट ने यह फैसला शरिया के हवाले से दिया है। लाहौर हाई कोर्ट ने एक सम्पत्ति की विरासत मामले में डाली गई याचिका की सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया। लाहौर हाई कोर्ट ने एक हदीस की किताब सहीह मुस्लिम का हवाला दिया जिसमें कहा गया, “एक मुसलमान को काफिर से विरासत नहीं मिलती और एक काफिर को मुसलमान से विरासत नहीं मिलती।” यह मामला पाकिस्तान के टोबा टेक सिंह जिले के एक सम्पत्ति विवाद से जुड़ा हुआ था। यहाँ रहने वाले एक मुस्लिम शख्स की सम्पत्ति उसके तीन बेटों और दो बेटियों में मौत के बाद बराबर बाँट दी गई थी। हालाँकि, इस बँटवारे को मृतक के पोते ने कोर्ट में चुनौती दी। पोते ने कोर्ट में दावा किया कि उसका एक चाचा/मामा असल में मुस्लिम ना होकर अहमदिया समुदाय है और वह ऐसे में सम्पत्ति का हिस्सा पाने का हकदार नहीं है। पोते ने कोर्ट से माँग की थी कि उसके चाचा/मामा को दी गई सम्पत्ति की विरासत रद्द कर दी जाए। इस मामले में निचली अदालत ने पोते के हक़ में फैसला दिया था और अहमदी होने के चलते उसके चाचा/मामा से सम्पत्ति वापस ले ली थी। हालाँकि, इस फैसले को लाहौर हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा और सम्पत्ति का वारिस उसे मानने से इनकार कर दिया। लाहौर हाई कोर्ट ने कहा कि सम्पत्ति पाने वाले शख्स ने यह माना है कि वह अहमदिया है लेकिन उसने अपने पिता की सम्पत्ति पाते वक्त यह बात छुपाई। ऐसे में उसे सम्पत्ति का वारिस घोषित नहीं किया जा सकता। लाहौर हाई कोर्ट ने इस मामले में पुराने कानूनों और मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला भी दिया। गौरतलब है कि अहमदिया समुदाय को कई संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया है और उन्हें मुस्लिम का दर्जा नहीं दिया जाता। उनको मस्जिदों में जाने और कुरान पढ़ने का अधिकार नहीं है । अहमदिया समुदाय पर पाकिस्तान में लगातार हमले भी होते हैं। लाहौर हाई कोर्ट के इस फैसले का असर पाकिस्तान में ऐसे बाकी मामलों पर पड़ेगा। इसका अर्थ है कि अब पाकिस्तान में कोई भी हिन्दू-सिख या गैर मुस्लिम किसी मुस्लिम की सम्पत्ति विरासत में नहीं पा सकेगा।   Click to listen highlighted text! काफिर किसी मुस्लिम की विरासत का हकदार नहीं: लाहौर कोर्ट ने शरिया के हवाले से दिया फैसला, हिन्दू-सिख या अहमदिया नहीं पा सकता मुस्लिम की सम्पत्ति पाकिस्तान के लाहौर हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि किसी मुस्लिम की सम्पत्ति का वारिस गैर-मुस्लिम नहीं हो सकता। लाहौर हाई कोर्ट के इस फैसले का अर्थ है कि पाकिस्तान में कोई हिन्दू-सिख या फिर किसी अन्य धर्म का अनुयायी मुस्लिम व्यक्ति की सम्पत्ति विरासत में नहीं पा सकता। हाई कोर्ट ने यह फैसला शरिया के हवाले से दिया है। लाहौर हाई कोर्ट ने एक सम्पत्ति की विरासत मामले में डाली गई याचिका की सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया। लाहौर हाई कोर्ट ने एक हदीस की किताब सहीह मुस्लिम का हवाला दिया जिसमें कहा गया, “एक मुसलमान को काफिर से विरासत नहीं मिलती और एक काफिर को मुसलमान से विरासत नहीं मिलती।” यह मामला पाकिस्तान के टोबा टेक सिंह जिले के एक सम्पत्ति विवाद से जुड़ा हुआ था। यहाँ रहने वाले एक मुस्लिम शख्स की सम्पत्ति उसके तीन बेटों और दो बेटियों में मौत के बाद बराबर बाँट दी गई थी। हालाँकि, इस बँटवारे को मृतक के पोते ने कोर्ट में चुनौती दी। पोते ने कोर्ट में दावा किया कि उसका एक चाचा/मामा असल में मुस्लिम ना होकर अहमदिया समुदाय है और वह ऐसे में सम्पत्ति का हिस्सा पाने का हकदार नहीं है। पोते ने कोर्ट से माँग की थी कि उसके चाचा/मामा को दी गई सम्पत्ति की विरासत रद्द कर दी जाए। इस मामले में निचली अदालत ने पोते के हक़ में फैसला दिया था और अहमदी होने के चलते उसके चाचा/मामा से सम्पत्ति वापस ले ली थी। हालाँकि, इस फैसले को लाहौर हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा और सम्पत्ति का वारिस उसे मानने से इनकार कर दिया। लाहौर हाई कोर्ट ने कहा कि सम्पत्ति पाने वाले शख्स ने यह माना है कि वह अहमदिया है लेकिन उसने अपने पिता की सम्पत्ति पाते वक्त यह बात छुपाई। ऐसे में उसे सम्पत्ति का वारिस घोषित नहीं किया जा सकता। लाहौर हाई कोर्ट ने इस मामले में पुराने कानूनों और मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला भी दिया। गौरतलब है कि अहमदिया समुदाय को कई संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया है और उन्हें मुस्लिम का दर्जा नहीं दिया जाता। उनको मस्जिदों में जाने और कुरान पढ़ने का अधिकार नहीं है । अहमदिया समुदाय पर पाकिस्तान में लगातार हमले भी होते हैं। लाहौर हाई कोर्ट के इस फैसले का असर पाकिस्तान में ऐसे बाकी मामलों पर पड़ेगा। इसका अर्थ है कि अब पाकिस्तान में कोई भी हिन्दू-सिख या गैर मुस्लिम किसी मुस्लिम की सम्पत्ति विरासत में नहीं पा सकेगा।

काफिर किसी मुस्लिम की विरासत का हकदार नहीं: लाहौर कोर्ट ने शरिया के हवाले से दिया फैसला, हिन्दू-सिख या अहमदिया नहीं पा सकता मुस्लिम की सम्पत्ति

पाकिस्तान के लाहौर हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि किसी मुस्लिम की सम्पत्ति का वारिस गैर-मुस्लिम नहीं हो सकता। लाहौर हाई कोर्ट के इस फैसले का अर्थ है कि पाकिस्तान में कोई हिन्दू-सिख या फिर किसी अन्य धर्म का अनुयायी मुस्लिम व्यक्ति की सम्पत्ति विरासत में नहीं पा सकता। हाई कोर्ट ने यह फैसला शरिया के हवाले से दिया है।

लाहौर हाई कोर्ट ने एक सम्पत्ति की विरासत मामले में डाली गई याचिका की सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया। लाहौर हाई कोर्ट ने एक हदीस की किताब सहीह मुस्लिम का हवाला दिया जिसमें कहा गया, “एक मुसलमान को काफिर से विरासत नहीं मिलती और एक काफिर को मुसलमान से विरासत नहीं मिलती।”

यह मामला पाकिस्तान के टोबा टेक सिंह जिले के एक सम्पत्ति विवाद से जुड़ा हुआ था। यहाँ रहने वाले एक मुस्लिम शख्स की सम्पत्ति उसके तीन बेटों और दो बेटियों में मौत के बाद बराबर बाँट दी गई थी। हालाँकि, इस बँटवारे को मृतक के पोते ने कोर्ट में चुनौती दी।

पोते ने कोर्ट में दावा किया कि उसका एक चाचा/मामा असल में मुस्लिम ना होकर अहमदिया समुदाय है और वह ऐसे में सम्पत्ति का हिस्सा पाने का हकदार नहीं है। पोते ने कोर्ट से माँग की थी कि उसके चाचा/मामा को दी गई सम्पत्ति की विरासत रद्द कर दी जाए।

इस मामले में निचली अदालत ने पोते के हक़ में फैसला दिया था और अहमदी होने के चलते उसके चाचा/मामा से सम्पत्ति वापस ले ली थी। हालाँकि, इस फैसले को लाहौर हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा और सम्पत्ति का वारिस उसे मानने से इनकार कर दिया।

लाहौर हाई कोर्ट ने कहा कि सम्पत्ति पाने वाले शख्स ने यह माना है कि वह अहमदिया है लेकिन उसने अपने पिता की सम्पत्ति पाते वक्त यह बात छुपाई। ऐसे में उसे सम्पत्ति का वारिस घोषित नहीं किया जा सकता। लाहौर हाई कोर्ट ने इस मामले में पुराने कानूनों और मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला भी दिया।

गौरतलब है कि अहमदिया समुदाय को कई संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया है और उन्हें मुस्लिम का दर्जा नहीं दिया जाता। उनको मस्जिदों में जाने और कुरान पढ़ने का अधिकार नहीं है । अहमदिया समुदाय पर पाकिस्तान में लगातार हमले भी होते हैं।

लाहौर हाई कोर्ट के इस फैसले का असर पाकिस्तान में ऐसे बाकी मामलों पर पड़ेगा। इसका अर्थ है कि अब पाकिस्तान में कोई भी हिन्दू-सिख या गैर मुस्लिम किसी मुस्लिम की सम्पत्ति विरासत में नहीं पा सकेगा।

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