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पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा घटाई, नुकसान की वसूली भी: क्यों फिर से राजशाही-हिंदू राष्ट्र बनने के लिए सुलग रहा नेपाल, क्या आवाज दबा पाएगी वामपंथी सरकार? नेपाल में राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की माँग को लेकर राजधानी काठमांडू में हुए प्रदर्शन और उसमें हुई हिंसा को लेकर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर कार्रवाई हुई है। नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा में भारी कटौती कर दी है और उनका पासपोर्ट रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वहीं, पूर्व राजा पर 7.93 लाख नेपाली रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। बता दें कि शुक्रवार (28 मार्च 2025) को राजशाही एवं हिंदू राष्ट्र समर्थकों को पुलिस ने रोकने के लिए लाठी-चार्ज किया था। इसके बाद प्रदर्शनकारी उग्र हो गए। कहा जा रहा है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई, जिसमें एक पत्रकार और एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई। वहीं, 100 से अधिक लोग भी घायल हो गए हैं। इस हिंसा के बाद राजधानी में सेना को तैनात कर दिया गया है। काठमांडू के नागरिक निकाय ने प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति और पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर जुर्माना लगाया है। काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी (केएमसी) ने महाराजगंज में ज्ञानेंद्र शाह के आवास पर पत्र भेजकर 7,93,000 नेपाली रुपए मुआवजा देने को कहा है। यह जुर्माना सड़कों और फुटपाथों पर कचरे फैलाने और भौतिक संरचनाओं को नुकसान पहुँचाने के लिए लगाया गया है। KMC ने अपने पत्र में राजा ज्ञानेंद्र शाह पर कचरा प्रबंधन अधिनियम 2020 और काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी फाइनेंस एक्ट 2021 का उल्लंघन का हवाला दिया है। पत्र में कहा गया है, “पूर्व सम्राट के आह्वान पर आयोजित विरोध प्रदर्शन ने महानगर की विभिन्न संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया और राजधानी शहर के पर्यावरण को प्रभावित किया है।” उधर, ओली सरकार ने उनका पासपोर्ट रद्द करने का आदेश दिया है। पूर्व राजा ज्ञानेंंद्र शाह की सुरक्षा भी ओली सरकार ने घटा दी है। उनकी सुरक्षा में पहले 25 सुरक्षाकर्मी तैनात रहते थे। अब उसे घटा कर 16 सुरक्षाकर्मी कर दिया गया है। बता दें कि पुलिस ने राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रवींद्र मिश्रा, महासचिव धवल शमशेर राणा, स्वागत नेपाल, शेफर्ड लिम्बू और संतोष तमांग जैसे राजतंत्र समर्थक नेताओं सहित 51 लोगों को हिरासत में लिया है। भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता से नेपाली परेशान दरअसल, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के मुखिया एवं प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार ने हिंदू राष्ट्र और राजशाही की बहाली की माँग करने वालों के खिलाफ शुरू से कठोर रवैया अपनाया हुआ है। वहीं, विपक्षी दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के प्रमुख पुष्प कलम दहल प्रचंड ने हिंसा के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर कार्रवाई के लिए ओली से कहा था। प्रचंड कुख्यात माओवादी से लेकर नेपाल में प्रधानमंत्री तक रह चुके हैं। उन्होंने राजशाही के खिलाफ हिंसक अभियान चलाया था, जिसमें नेपाल के हजारों लोग मारे गए थे। आखिरकार साल 2008 में नेपाल में राजशाही का अंत हुआ तो प्रचंड प्रमुख बने। हालाँकि, नेपाल राजनीतिक अस्थिरता का केंद्र बन गया है। पिछले 17 साल वहाँ 13 सरकारें बनीं। हालात बदतर हो गए हैं। लोगों का आरोप हैं कि नेपाल को राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ वित्तीय अस्थिरता में भी झोंक दिया गया है। बेरोजगारी और गरीबी लगातार बढ़ रही है और नेपाल की सारी पार्टियाँ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उनका ध्यान जनता के कल्याण में लगने के बजाय जनता को लूटने-खसोटने में है। इसको देखते हुए व्यापारी दुर्गा प्रसाद ने राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की माँग उठाई। नेपाल में राजशाही का समर्थन करने वाले कई राजनीतिक दल भी हैं। इन सबने मिलकर संयुक्त जन आंदोलन समिति बनाई। इनका कहना है कि 1991 के संविधान को नेपाल में बहाल की जाए। समिति का कहना है कि इस संविधान में राजशाही के साथ-साथ बहुदलीय संसदीय लोकतंत्र प्रणाली की मान्यता है। इसके साथ ही इसमें नेपाल को ‘हिंदू राष्ट्र’ बताया गया है, जो कि लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्ष कर दिया गया है। राजशाही बनाम लोकशाही की जंग वर्तमान व्यवस्था से निराश और नेपाल के लोगों में राजशाही की जोर पकड़ती माँग को देखते हुए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह भी एक्टिव हो गए। इस साल फरवरी में ज्ञानेंद्र शाह ने कहा था, “समय आ गया है कि हम देश की रक्षा करने और राष्ट्रीय एकता लाने की जिम्मेदारी लें।” इसके बाद से बाद से राजशाही समर्थकों में उत्साह आ गया और वे काठमांडू सहित देश भर में इसके समर्थन में रैलियाँ निकालने लगे। उधर, नेपाल के लोकतंत्र समर्थक सभी माओवादी पार्टी के नेताओं ने ‘समाजवादी मोर्चा’ बनाकर राजशाही आंदोलन का विरोध किया। पुष्पकमल दहल प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र और पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल की सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी ने राजशाही आंदोलन का विरोध किया। प्रचंड के नेतृत्व में विपक्षी दलों के मोर्चा ने भी काठमांडू में एक अलग रैली की। प्रचंड की रैली में शामिल लोगों ने कसम खाई की वे राजशाही को बहाल नहीं होने देंगे। वहीं, नेपाल में राजतंत्र का विरोध करने वाली एक सिविल सोसायटी ने 24 मार्च 2025 को ‘राजशाही को बहाल करने के उद्देश्य से राजनीतिक रूप से सक्रिय होने’ के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की आलोचना की थी। सोसायटी में चरण परसाई, सुशील पायकुरेल, कनकमणि दीक्षित, मोहना अंसारी, दिनेश त्रिपाठी, हीरा बीसोकरमा, राजन कुइकेल और रीता परियार शामिल हैं। इसमें कई लोग वकील एवं अन्य पेशे से संबंधित हैं। इन्हें माओवादी पार्टियों का समर्थक माना जाता है। सिविल सोसायटी के नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा था,”ज्ञानेंद्र शाह का राजनीतिक सक्रियता में उतरना उनके पूर्वजों के राष्ट्र निर्माण के प्रयासों को विफल करता है और अपने पड़ोसियों एवं दुनिया के सामने देश को कमजोर करने का खतरा पैदा करता है।” माओवादी पार्टियों की सक्रियता और फिर सिविल सोसायटी के बयान के बाद राजशाही समर्थकों की ‘संयुक्त जन आंदोलन समिति’ ने गुरुवार (27 मार्च) को घोषणा की थी कि यदि सरकार एक हफ्ते के भीतर उनसे समझौता नहीं करती तो वे उग्र प्रदर्शन करेंगे। इसके बाद समिति ने 28 मार्च को एक विरोध प्रदर्शन शुरू किया। समिति के लोगों का कहना है कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण था और पुलिस ने लाठी चार्ज करके उग्र बना दिया। वहीं, प्रशासन सारा दोष प्रदर्शनकारियों को दे रहा है।   Click to listen highlighted text! पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा घटाई, नुकसान की वसूली भी: क्यों फिर से राजशाही-हिंदू राष्ट्र बनने के लिए सुलग रहा नेपाल, क्या आवाज दबा पाएगी वामपंथी सरकार? नेपाल में राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की माँग को लेकर राजधानी काठमांडू में हुए प्रदर्शन और उसमें हुई हिंसा को लेकर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर कार्रवाई हुई है। नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा में भारी कटौती कर दी है और उनका पासपोर्ट रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वहीं, पूर्व राजा पर 7.93 लाख नेपाली रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। बता दें कि शुक्रवार (28 मार्च 2025) को राजशाही एवं हिंदू राष्ट्र समर्थकों को पुलिस ने रोकने के लिए लाठी-चार्ज किया था। इसके बाद प्रदर्शनकारी उग्र हो गए। कहा जा रहा है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई, जिसमें एक पत्रकार और एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई। वहीं, 100 से अधिक लोग भी घायल हो गए हैं। इस हिंसा के बाद राजधानी में सेना को तैनात कर दिया गया है। काठमांडू के नागरिक निकाय ने प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति और पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर जुर्माना लगाया है। काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी (केएमसी) ने महाराजगंज में ज्ञानेंद्र शाह के आवास पर पत्र भेजकर 7,93,000 नेपाली रुपए मुआवजा देने को कहा है। यह जुर्माना सड़कों और फुटपाथों पर कचरे फैलाने और भौतिक संरचनाओं को नुकसान पहुँचाने के लिए लगाया गया है। KMC ने अपने पत्र में राजा ज्ञानेंद्र शाह पर कचरा प्रबंधन अधिनियम 2020 और काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी फाइनेंस एक्ट 2021 का उल्लंघन का हवाला दिया है। पत्र में कहा गया है, “पूर्व सम्राट के आह्वान पर आयोजित विरोध प्रदर्शन ने महानगर की विभिन्न संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया और राजधानी शहर के पर्यावरण को प्रभावित किया है।” उधर, ओली सरकार ने उनका पासपोर्ट रद्द करने का आदेश दिया है। पूर्व राजा ज्ञानेंंद्र शाह की सुरक्षा भी ओली सरकार ने घटा दी है। उनकी सुरक्षा में पहले 25 सुरक्षाकर्मी तैनात रहते थे। अब उसे घटा कर 16 सुरक्षाकर्मी कर दिया गया है। बता दें कि पुलिस ने राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रवींद्र मिश्रा, महासचिव धवल शमशेर राणा, स्वागत नेपाल, शेफर्ड लिम्बू और संतोष तमांग जैसे राजतंत्र समर्थक नेताओं सहित 51 लोगों को हिरासत में लिया है। भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता से नेपाली परेशान दरअसल, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के मुखिया एवं प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार ने हिंदू राष्ट्र और राजशाही की बहाली की माँग करने वालों के खिलाफ शुरू से कठोर रवैया अपनाया हुआ है। वहीं, विपक्षी दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के प्रमुख पुष्प कलम दहल प्रचंड ने हिंसा के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर कार्रवाई के लिए ओली से कहा था। प्रचंड कुख्यात माओवादी से लेकर नेपाल में प्रधानमंत्री तक रह चुके हैं। उन्होंने राजशाही के खिलाफ हिंसक अभियान चलाया था, जिसमें नेपाल के हजारों लोग मारे गए थे। आखिरकार साल 2008 में नेपाल में राजशाही का अंत हुआ तो प्रचंड प्रमुख बने। हालाँकि, नेपाल राजनीतिक अस्थिरता का केंद्र बन गया है। पिछले 17 साल वहाँ 13 सरकारें बनीं। हालात बदतर हो गए हैं। लोगों का आरोप हैं कि नेपाल को राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ वित्तीय अस्थिरता में भी झोंक दिया गया है। बेरोजगारी और गरीबी लगातार बढ़ रही है और नेपाल की सारी पार्टियाँ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उनका ध्यान जनता के कल्याण में लगने के बजाय जनता को लूटने-खसोटने में है। इसको देखते हुए व्यापारी दुर्गा प्रसाद ने राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की माँग उठाई। नेपाल में राजशाही का समर्थन करने वाले कई राजनीतिक दल भी हैं। इन सबने मिलकर संयुक्त जन आंदोलन समिति बनाई। इनका कहना है कि 1991 के संविधान को नेपाल में बहाल की जाए। समिति का कहना है कि इस संविधान में राजशाही के साथ-साथ बहुदलीय संसदीय लोकतंत्र प्रणाली की मान्यता है। इसके साथ ही इसमें नेपाल को ‘हिंदू राष्ट्र’ बताया गया है, जो कि लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्ष कर दिया गया है। राजशाही बनाम लोकशाही की जंग वर्तमान व्यवस्था से निराश और नेपाल के लोगों में राजशाही की जोर पकड़ती माँग को देखते हुए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह भी एक्टिव हो गए। इस साल फरवरी में ज्ञानेंद्र शाह ने कहा था, “समय आ गया है कि हम देश की रक्षा करने और राष्ट्रीय एकता लाने की जिम्मेदारी लें।” इसके बाद से बाद से राजशाही समर्थकों में उत्साह आ गया और वे काठमांडू सहित देश भर में इसके समर्थन में रैलियाँ निकालने लगे। उधर, नेपाल के लोकतंत्र समर्थक सभी माओवादी पार्टी के नेताओं ने ‘समाजवादी मोर्चा’ बनाकर राजशाही आंदोलन का विरोध किया। पुष्पकमल दहल प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र और पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल की सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी ने राजशाही आंदोलन का विरोध किया। प्रचंड के नेतृत्व में विपक्षी दलों के मोर्चा ने भी काठमांडू में एक अलग रैली की। प्रचंड की रैली में शामिल लोगों ने कसम खाई की वे राजशाही को बहाल नहीं होने देंगे। वहीं, नेपाल में राजतंत्र का विरोध करने वाली एक सिविल सोसायटी ने 24 मार्च 2025 को ‘राजशाही को बहाल करने के उद्देश्य से राजनीतिक रूप से सक्रिय होने’ के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की आलोचना की थी। सोसायटी में चरण परसाई, सुशील पायकुरेल, कनकमणि दीक्षित, मोहना अंसारी, दिनेश त्रिपाठी, हीरा बीसोकरमा, राजन कुइकेल और रीता परियार शामिल हैं। इसमें कई लोग वकील एवं अन्य पेशे से संबंधित हैं। इन्हें माओवादी पार्टियों का समर्थक माना जाता है। सिविल सोसायटी के नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा था,”ज्ञानेंद्र शाह का राजनीतिक सक्रियता में उतरना उनके पूर्वजों के राष्ट्र निर्माण के प्रयासों को विफल करता है और अपने पड़ोसियों एवं दुनिया के सामने देश को कमजोर करने का खतरा पैदा करता है।” माओवादी पार्टियों की सक्रियता और फिर सिविल सोसायटी के बयान के बाद राजशाही समर्थकों की ‘संयुक्त जन आंदोलन समिति’ ने गुरुवार (27 मार्च) को घोषणा की थी कि यदि सरकार एक हफ्ते के भीतर उनसे समझौता नहीं करती तो वे उग्र प्रदर्शन करेंगे। इसके बाद समिति ने 28 मार्च को एक विरोध प्रदर्शन शुरू किया। समिति के लोगों का कहना है कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण था और पुलिस ने लाठी चार्ज करके उग्र बना दिया। वहीं, प्रशासन सारा दोष प्रदर्शनकारियों को दे रहा है।

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा घटाई, नुकसान की वसूली भी: क्यों फिर से राजशाही-हिंदू राष्ट्र बनने के लिए सुलग रहा नेपाल, क्या आवाज दबा पाएगी वामपंथी सरकार?

नेपाल में राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की माँग को लेकर राजधानी काठमांडू में हुए प्रदर्शन और उसमें हुई हिंसा को लेकर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर कार्रवाई हुई है। नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा में भारी कटौती कर दी है और उनका पासपोर्ट रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वहीं, पूर्व राजा पर 7.93 लाख नेपाली रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है।

बता दें कि शुक्रवार (28 मार्च 2025) को राजशाही एवं हिंदू राष्ट्र समर्थकों को पुलिस ने रोकने के लिए लाठी-चार्ज किया था। इसके बाद प्रदर्शनकारी उग्र हो गए। कहा जा रहा है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई, जिसमें एक पत्रकार और एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई। वहीं, 100 से अधिक लोग भी घायल हो गए हैं। इस हिंसा के बाद राजधानी में सेना को तैनात कर दिया गया है।

काठमांडू के नागरिक निकाय ने प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति और पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर जुर्माना लगाया है। काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी (केएमसी) ने महाराजगंज में ज्ञानेंद्र शाह के आवास पर पत्र भेजकर 7,93,000 नेपाली रुपए मुआवजा देने को कहा है। यह जुर्माना सड़कों और फुटपाथों पर कचरे फैलाने और भौतिक संरचनाओं को नुकसान पहुँचाने के लिए लगाया गया है।

KMC ने अपने पत्र में राजा ज्ञानेंद्र शाह पर कचरा प्रबंधन अधिनियम 2020 और काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी फाइनेंस एक्ट 2021 का उल्लंघन का हवाला दिया है। पत्र में कहा गया है, “पूर्व सम्राट के आह्वान पर आयोजित विरोध प्रदर्शन ने महानगर की विभिन्न संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया और राजधानी शहर के पर्यावरण को प्रभावित किया है।” उधर, ओली सरकार ने उनका पासपोर्ट रद्द करने का आदेश दिया है।

पूर्व राजा ज्ञानेंंद्र शाह की सुरक्षा भी ओली सरकार ने घटा दी है। उनकी सुरक्षा में पहले 25 सुरक्षाकर्मी तैनात रहते थे। अब उसे घटा कर 16 सुरक्षाकर्मी कर दिया गया है। बता दें कि पुलिस ने राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रवींद्र मिश्रा, महासचिव धवल शमशेर राणा, स्वागत नेपाल, शेफर्ड लिम्बू और संतोष तमांग जैसे राजतंत्र समर्थक नेताओं सहित 51 लोगों को हिरासत में लिया है।

भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता से नेपाली परेशान

दरअसल, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के मुखिया एवं प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार ने हिंदू राष्ट्र और राजशाही की बहाली की माँग करने वालों के खिलाफ शुरू से कठोर रवैया अपनाया हुआ है। वहीं, विपक्षी दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के प्रमुख पुष्प कलम दहल प्रचंड ने हिंसा के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर कार्रवाई के लिए ओली से कहा था।

प्रचंड कुख्यात माओवादी से लेकर नेपाल में प्रधानमंत्री तक रह चुके हैं। उन्होंने राजशाही के खिलाफ हिंसक अभियान चलाया था, जिसमें नेपाल के हजारों लोग मारे गए थे। आखिरकार साल 2008 में नेपाल में राजशाही का अंत हुआ तो प्रचंड प्रमुख बने। हालाँकि, नेपाल राजनीतिक अस्थिरता का केंद्र बन गया है। पिछले 17 साल वहाँ 13 सरकारें बनीं। हालात बदतर हो गए हैं।

लोगों का आरोप हैं कि नेपाल को राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ वित्तीय अस्थिरता में भी झोंक दिया गया है। बेरोजगारी और गरीबी लगातार बढ़ रही है और नेपाल की सारी पार्टियाँ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उनका ध्यान जनता के कल्याण में लगने के बजाय जनता को लूटने-खसोटने में है। इसको देखते हुए व्यापारी दुर्गा प्रसाद ने राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की माँग उठाई।

नेपाल में राजशाही का समर्थन करने वाले कई राजनीतिक दल भी हैं। इन सबने मिलकर संयुक्त जन आंदोलन समिति बनाई। इनका कहना है कि 1991 के संविधान को नेपाल में बहाल की जाए। समिति का कहना है कि इस संविधान में राजशाही के साथ-साथ बहुदलीय संसदीय लोकतंत्र प्रणाली की मान्यता है। इसके साथ ही इसमें नेपाल को ‘हिंदू राष्ट्र’ बताया गया है, जो कि लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्ष कर दिया गया है।

राजशाही बनाम लोकशाही की जंग

वर्तमान व्यवस्था से निराश और नेपाल के लोगों में राजशाही की जोर पकड़ती माँग को देखते हुए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह भी एक्टिव हो गए। इस साल फरवरी में ज्ञानेंद्र शाह ने कहा था, “समय आ गया है कि हम देश की रक्षा करने और राष्ट्रीय एकता लाने की जिम्मेदारी लें।” इसके बाद से बाद से राजशाही समर्थकों में उत्साह आ गया और वे काठमांडू सहित देश भर में इसके समर्थन में रैलियाँ निकालने लगे।

उधर, नेपाल के लोकतंत्र समर्थक सभी माओवादी पार्टी के नेताओं ने ‘समाजवादी मोर्चा’ बनाकर राजशाही आंदोलन का विरोध किया। पुष्पकमल दहल प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र और पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल की सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी ने राजशाही आंदोलन का विरोध किया। प्रचंड के नेतृत्व में विपक्षी दलों के मोर्चा ने भी काठमांडू में एक अलग रैली की।

प्रचंड की रैली में शामिल लोगों ने कसम खाई की वे राजशाही को बहाल नहीं होने देंगे। वहीं, नेपाल में राजतंत्र का विरोध करने वाली एक सिविल सोसायटी ने 24 मार्च 2025 को ‘राजशाही को बहाल करने के उद्देश्य से राजनीतिक रूप से सक्रिय होने’ के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की आलोचना की थी। सोसायटी में चरण परसाई, सुशील पायकुरेल, कनकमणि दीक्षित, मोहना अंसारी, दिनेश त्रिपाठी, हीरा बीसोकरमा, राजन कुइकेल और रीता परियार शामिल हैं।

इसमें कई लोग वकील एवं अन्य पेशे से संबंधित हैं। इन्हें माओवादी पार्टियों का समर्थक माना जाता है। सिविल सोसायटी के नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा था,”ज्ञानेंद्र शाह का राजनीतिक सक्रियता में उतरना उनके पूर्वजों के राष्ट्र निर्माण के प्रयासों को विफल करता है और अपने पड़ोसियों एवं दुनिया के सामने देश को कमजोर करने का खतरा पैदा करता है।”

माओवादी पार्टियों की सक्रियता और फिर सिविल सोसायटी के बयान के बाद राजशाही समर्थकों की ‘संयुक्त जन आंदोलन समिति’ ने गुरुवार (27 मार्च) को घोषणा की थी कि यदि सरकार एक हफ्ते के भीतर उनसे समझौता नहीं करती तो वे उग्र प्रदर्शन करेंगे। इसके बाद समिति ने 28 मार्च को एक विरोध प्रदर्शन शुरू किया। समिति के लोगों का कहना है कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण था और पुलिस ने लाठी चार्ज करके उग्र बना दिया। वहीं, प्रशासन सारा दोष प्रदर्शनकारियों को दे रहा है।

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