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‘अयोध्या, काशी और मथुरा हमें सौंप देते मुस्लिम तो बाकी जगहों पर विवाद नहीं होता’: मंदिर-मस्जिद विवाद पर बोली वीएचपी, कहा- 1984 के धर्म संसद की बातें नहीं मानने से नाराज हैं हिंदू विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने गुरुवार (26 दिसंबर 2024) को हिंदू समाज में मुस्लिम स्मारकों पर अधिकार के दावों और अदालतों में दायर याचिकाओं की वजह बताई। विहिप के महासचिव मिलिंद परांडे ने कहा कि मुस्लिम समुदाय द्वारा अयोध्या, काशी और मथुरा के विवादित स्थलों को हिंदुओं को स्वेच्छा से नहीं सौंपने से हिंदू समाज में नाराजगी है। 1984 का धर्म संसद और 2025 की स्थिति रिपोर्ट्स के मुताबिक, विहिप के महासचिव मिलिंद परांडे ने 1984 में आयोजित धर्म संसद का जिक्र करते हुए कहा, “तब यह प्रस्ताव रखा गया था कि अयोध्या, काशी और मथुरा हमें दे दी जाएँ, और इसके बाद अन्य मुद्दों पर कोई हलचल नहीं होगी। लेकिन 2025 आने को है और यह प्रस्ताव अब तक लागू नहीं हो सका। इसी कारण समाज में जो नाराजगी दिख रही है, वह स्वाभाविक है।” मोहन भागवत के बयान पर भी दी प्रतिक्रिया संघ प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान को लेकर परांडे ने कहा, “भागवत जी ने काशी और मथुरा के संदर्भ में जो बात कही, उसे समझने की जरूरत है। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर को हिंदुओं के विश्वास का प्रतीक बताया था और कहा था कि रोजाना नए मुद्दे उठाना नफरत और द्वेष पैदा कर सकता है।” हालाँकि, कुछ हिंदू संतों द्वारा उनके बयान के विरोध करने के सवाल पर उन्होंने कहा, “हम संतों के विरुद्ध टिप्पणी नहीं करते।” मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का विरोध परांडे ने मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के मुद्दे पर कहा कि विहिप 5 जनवरी 2025 से देशव्यापी जन जागरूकता अभियान शुरू करेगी। यह अभियान विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश में आयोजित होने वाली ‘हैंदव शंखावरम’ नाम की विशेष सभा से शुरू होगा। विहिप ने मंदिर प्रबंधन को समाज को सौंपने के लिए एक मसौदा कानून भी तैयार किया है, जिसे हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को सौंपा गया। विहिप की प्रमुख माँगें विहिप ने मंदिरों को समाज को सौंपने से पहले कुछ प्रमुख माँगें रखी हैं: मंदिरों और एंडोमेंट विभागों से सभी गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाना। पूजा और सेवा के कार्यों में केवल धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को नियुक्त करना। मंदिर प्रबंधन और ट्रस्ट बोर्ड में राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों की नियुक्ति पर प्रतिबंध। मंदिर परिसर में दुकानों के संचालन की अनुमति केवल हिंदुओं को देना। मंदिरों की भूमि पर गैर-हिंदुओं द्वारा किए गए अतिक्रमण को हटाना। विहिप का कहना है कि उनकी यह पहल हिंदू समाज को मंदिरों के संरक्षण और प्रबंधन में सशक्त बनाने के लिए है। उनका मानना है कि मंदिर हिंदू संस्कृति और परंपरा का आधार हैं और इनका सही प्रबंधन जरूरी है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब हिंदू-मुस्लिम विवादित स्थलों पर चर्चा और मंदिर निर्माण की मांग तेज हो रही है। विहिप ने स्पष्ट किया कि उनका अभियान सांप्रदायिकता फैलाने के लिए नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकार सुनिश्चित करने के लिए है।   Click to listen highlighted text! ‘अयोध्या, काशी और मथुरा हमें सौंप देते मुस्लिम तो बाकी जगहों पर विवाद नहीं होता’: मंदिर-मस्जिद विवाद पर बोली वीएचपी, कहा- 1984 के धर्म संसद की बातें नहीं मानने से नाराज हैं हिंदू विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने गुरुवार (26 दिसंबर 2024) को हिंदू समाज में मुस्लिम स्मारकों पर अधिकार के दावों और अदालतों में दायर याचिकाओं की वजह बताई। विहिप के महासचिव मिलिंद परांडे ने कहा कि मुस्लिम समुदाय द्वारा अयोध्या, काशी और मथुरा के विवादित स्थलों को हिंदुओं को स्वेच्छा से नहीं सौंपने से हिंदू समाज में नाराजगी है। 1984 का धर्म संसद और 2025 की स्थिति रिपोर्ट्स के मुताबिक, विहिप के महासचिव मिलिंद परांडे ने 1984 में आयोजित धर्म संसद का जिक्र करते हुए कहा, “तब यह प्रस्ताव रखा गया था कि अयोध्या, काशी और मथुरा हमें दे दी जाएँ, और इसके बाद अन्य मुद्दों पर कोई हलचल नहीं होगी। लेकिन 2025 आने को है और यह प्रस्ताव अब तक लागू नहीं हो सका। इसी कारण समाज में जो नाराजगी दिख रही है, वह स्वाभाविक है।” मोहन भागवत के बयान पर भी दी प्रतिक्रिया संघ प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान को लेकर परांडे ने कहा, “भागवत जी ने काशी और मथुरा के संदर्भ में जो बात कही, उसे समझने की जरूरत है। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर को हिंदुओं के विश्वास का प्रतीक बताया था और कहा था कि रोजाना नए मुद्दे उठाना नफरत और द्वेष पैदा कर सकता है।” हालाँकि, कुछ हिंदू संतों द्वारा उनके बयान के विरोध करने के सवाल पर उन्होंने कहा, “हम संतों के विरुद्ध टिप्पणी नहीं करते।” मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का विरोध परांडे ने मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के मुद्दे पर कहा कि विहिप 5 जनवरी 2025 से देशव्यापी जन जागरूकता अभियान शुरू करेगी। यह अभियान विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश में आयोजित होने वाली ‘हैंदव शंखावरम’ नाम की विशेष सभा से शुरू होगा। विहिप ने मंदिर प्रबंधन को समाज को सौंपने के लिए एक मसौदा कानून भी तैयार किया है, जिसे हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को सौंपा गया। विहिप की प्रमुख माँगें विहिप ने मंदिरों को समाज को सौंपने से पहले कुछ प्रमुख माँगें रखी हैं: मंदिरों और एंडोमेंट विभागों से सभी गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाना। पूजा और सेवा के कार्यों में केवल धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को नियुक्त करना। मंदिर प्रबंधन और ट्रस्ट बोर्ड में राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों की नियुक्ति पर प्रतिबंध। मंदिर परिसर में दुकानों के संचालन की अनुमति केवल हिंदुओं को देना। मंदिरों की भूमि पर गैर-हिंदुओं द्वारा किए गए अतिक्रमण को हटाना। विहिप का कहना है कि उनकी यह पहल हिंदू समाज को मंदिरों के संरक्षण और प्रबंधन में सशक्त बनाने के लिए है। उनका मानना है कि मंदिर हिंदू संस्कृति और परंपरा का आधार हैं और इनका सही प्रबंधन जरूरी है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब हिंदू-मुस्लिम विवादित स्थलों पर चर्चा और मंदिर निर्माण की मांग तेज हो रही है। विहिप ने स्पष्ट किया कि उनका अभियान सांप्रदायिकता फैलाने के लिए नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकार सुनिश्चित करने के लिए है।

‘अयोध्या, काशी और मथुरा हमें सौंप देते मुस्लिम तो बाकी जगहों पर विवाद नहीं होता’: मंदिर-मस्जिद विवाद पर बोली वीएचपी, कहा- 1984 के धर्म संसद की बातें नहीं मानने से नाराज हैं हिंदू

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने गुरुवार (26 दिसंबर 2024) को हिंदू समाज में मुस्लिम स्मारकों पर अधिकार के दावों और अदालतों में दायर याचिकाओं की वजह बताई। विहिप के महासचिव मिलिंद परांडे ने कहा कि मुस्लिम समुदाय द्वारा अयोध्या, काशी और मथुरा के विवादित स्थलों को हिंदुओं को स्वेच्छा से नहीं सौंपने से हिंदू समाज में नाराजगी है।

1984 का धर्म संसद और 2025 की स्थिति

रिपोर्ट्स के मुताबिक, विहिप के महासचिव मिलिंद परांडे ने 1984 में आयोजित धर्म संसद का जिक्र करते हुए कहा, “तब यह प्रस्ताव रखा गया था कि अयोध्या, काशी और मथुरा हमें दे दी जाएँ, और इसके बाद अन्य मुद्दों पर कोई हलचल नहीं होगी। लेकिन 2025 आने को है और यह प्रस्ताव अब तक लागू नहीं हो सका। इसी कारण समाज में जो नाराजगी दिख रही है, वह स्वाभाविक है।”

मोहन भागवत के बयान पर भी दी प्रतिक्रिया

संघ प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान को लेकर परांडे ने कहा, “भागवत जी ने काशी और मथुरा के संदर्भ में जो बात कही, उसे समझने की जरूरत है। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर को हिंदुओं के विश्वास का प्रतीक बताया था और कहा था कि रोजाना नए मुद्दे उठाना नफरत और द्वेष पैदा कर सकता है।” हालाँकि, कुछ हिंदू संतों द्वारा उनके बयान के विरोध करने के सवाल पर उन्होंने कहा, “हम संतों के विरुद्ध टिप्पणी नहीं करते।”

मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का विरोध

परांडे ने मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के मुद्दे पर कहा कि विहिप 5 जनवरी 2025 से देशव्यापी जन जागरूकता अभियान शुरू करेगी। यह अभियान विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश में आयोजित होने वाली ‘हैंदव शंखावरम’ नाम की विशेष सभा से शुरू होगा। विहिप ने मंदिर प्रबंधन को समाज को सौंपने के लिए एक मसौदा कानून भी तैयार किया है, जिसे हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को सौंपा गया।

विहिप की प्रमुख माँगें

विहिप ने मंदिरों को समाज को सौंपने से पहले कुछ प्रमुख माँगें रखी हैं:

मंदिरों और एंडोमेंट विभागों से सभी गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाना।

पूजा और सेवा के कार्यों में केवल धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को नियुक्त करना।

मंदिर प्रबंधन और ट्रस्ट बोर्ड में राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों की नियुक्ति पर प्रतिबंध।

मंदिर परिसर में दुकानों के संचालन की अनुमति केवल हिंदुओं को देना।

मंदिरों की भूमि पर गैर-हिंदुओं द्वारा किए गए अतिक्रमण को हटाना।

विहिप का कहना है कि उनकी यह पहल हिंदू समाज को मंदिरों के संरक्षण और प्रबंधन में सशक्त बनाने के लिए है। उनका मानना है कि मंदिर हिंदू संस्कृति और परंपरा का आधार हैं और इनका सही प्रबंधन जरूरी है।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब हिंदू-मुस्लिम विवादित स्थलों पर चर्चा और मंदिर निर्माण की मांग तेज हो रही है। विहिप ने स्पष्ट किया कि उनका अभियान सांप्रदायिकता फैलाने के लिए नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकार सुनिश्चित करने के लिए है।

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