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गाँधी परिवार के गैर-वफादारों के साथ नाइंसाफी: मनमोहन सिंह की समाधि के लिए जगह माँगने वाली कॉन्ग्रेस नरसिम्हा राव और प्रणब मुखर्जी के साथ नहीं किया न्याय, शर्मिष्ठा ने उठाई आवाज कॉन्ग्रेस पार्टी का इतिहास भारत की स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है और यह पार्टी एक समय देश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाई रही। लेकिन बीते कुछ दशकों में पार्टी के भीतर की राजनीति और उसके फैसले कई सवाल खड़े करते हैं। गाँधी परिवार के प्रति वफादारी और उसके इर्द-गिर्द घूमती नीतियों ने पार्टी को कहीं न कहीं सीमित कर दिया है। यह स्थिति तब और स्पष्ट हो जाती है जिसमें कॉन्ग्रेस पार्टी के भीतर उन नेताओं को अनदेखा किया जाता है जिन्होंने संगठन और देश के लिए अपना अहम योगदान दिया, लेकिन गाँधी परिवार के वफादार नहीं माने गए। अभी डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद कॉन्ग्रेस द्वारा उनके स्मारक की माँग ने इस मुद्दे को फिर से उजागर किया। दो बार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 को निधन हो गया। उनके निधन के बाद कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर दिल्ली में उनके नाम पर एक स्मारक बनाने की माँग की। खड़गे ने अपने पत्र में मनमोहन सिंह के योगदान का उल्लेख करते हुए इसे देश के लिए सम्मान की बात बताया। यह माँग सुनने में भले ही संवेदनशील और जायज लगे, लेकिन इसने एक बार फिर पार्टी की राजनीति और उसके असली उद्देश्यों पर सवाल खड़े कर दिए। प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा कि जब उनके पिता पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हुआ था, तब कॉन्ग्रेस ने उनके सम्मान में एक शोक सभा तक आयोजित नहीं की। उन्होंने कहा कि उन्हें यह कहकर गुमराह किया गया, कि राष्ट्रपति बन चुके लोगों के निधन पर कॉन्ग्रेस सीडब्ल्यूसी (कॉन्ग्रेस वर्किंग ग्रुप) की बैठक नहीं बुलाती, जबकि खुद प्रणब मुखर्जी ने अपनी डायरी में ये बात लिखी है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ केआर नारायणन के निधन पर न सिर्फ बैठक बुलाई गई थी, बल्कि खुद प्रणब मुखर्जी ने ही संदेश भी लिया था। शर्मिष्ठा मुखर्जी का यह आरोप कॉन्ग्रेस नेतृत्व की प्राथमिकताओं और गाँधी परिवार के प्रति उसकी वफादारी को दर्शाता है। When baba passed away, Congress didnt even bother 2 call CWC 4 condolence meeting. A senior leader told me it’s not done 4 Presidents. Thats utter rubbish as I learned later from baba’s diaries that on KR Narayanan’s death, CWC was called & condolence msg was drafted by baba only https://t.co/nbYCF7NsMB— Sharmistha Mukherjee (@Sharmistha_GK) December 27, 2024 इससे पहले भी कॉन्ग्रेस की इस नीति का उदाहरण पी.वी. नरसिम्हा राव के मामले में देखा गया। राव साहब, जो 1991 से 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे और जिनके कार्यकाल में देश में आर्थिक उदारीकरण की नींव पड़ी, उनके निधन के बाद पार्टी ने उन्हें पूरी तरह अनदेखा किया। 2004 में उनके निधन के समय कॉन्ग्रेस की सरकार थी, लेकिन उनके पार्थिव शरीर को पार्टी मुख्यालय में अंतिम दर्शन के लिए नहीं रखा गया। यहाँ तक कि उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में करने की अनुमति भी नहीं दी गई और उनके परिवार को मजबूरन उनका पार्थिव शरीर हैदराबाद ले जाना पड़ा। डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे डॉ. संजय बारू ने अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा कि नरसिम्हा राव को गाँधी परिवार के प्रभाव से बाहर होने के कारण पार्टी में कभी स्वीकार नहीं किया गया। यह केवल नरसिम्हा राव या प्रणब मुखर्जी तक सीमित नहीं है, बल्कि लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं के साथ भी पार्टी ने ऐसा ही व्यवहार किया। शास्त्री जी, जो देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे और जिनका ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा आज भी लोगों के दिलों में बसा है, को भी पार्टी के भीतर वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। कॉन्ग्रेस की राजनीति हमेशा से गाँधी परिवार के प्रति वफादारी पर आधारित रही है। जिन नेताओं ने परिवार के प्रति अपनी निष्ठा नहीं दिखाई, उन्हें पार्टी के भीतर हाशिये पर डाल दिया गया। प्रणब मुखर्जी का उदाहरण इसका प्रमाण है। दशकों तक कॉन्ग्रेस में अपनी सेवाएँ देने और देश के राष्ट्रपति पद तक पहुँचने के बावजूद उनके निधन पर पार्टी ने शोक सभा तक आयोजित नहीं की। यह विडंबना ही है कि जिस पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं को उचित सम्मान नहीं दिया, वह आज डॉ. मनमोहन सिंह के लिए स्मारक की माँग कर रही है। भाजपा ने भी इस मुद्दे पर कॉन्ग्रेस को आड़े हाथों लिया। भाजपा प्रवक्ता सी.आर. केसवन ने कहा कि यह विडंबना है कि जो पार्टी अपने ही नेताओं को उचित सम्मान नहीं दे सकी, वह अब स्मारकों की राजनीति कर रही है। केसवन ने कॉन्ग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि पार्टी का इतिहास अपने गैर-वफादार नेताओं की उपेक्षा से भरा पड़ा है। It is indeed ironic that a Congress President is writing to PM @narendramodi ji about traditions & the funeral place becoming the sacrosanct venue for a memorial. One should remind Kharge ji how the Congress led UPA Govt never built a memorial in Delhi for former PM Narasimha… pic.twitter.com/nt59JttvrX— C.R.Kesavan (@crkesavan) December 27, 2024 डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद जिस तरह से कॉन्ग्रेस ने स्मारक की माँग की, उससे यह सवाल उठता है कि क्या यह कदम वास्तव में उनके योगदान के प्रति सम्मान का प्रतीक है या फिर एक राजनीतिक रणनीति? कॉन्ग्रेस का इतिहास यह दर्शाता है कि पार्टी ने हमेशा गाँधी परिवार को प्राथमिकता दी है। जिन नेताओं ने गाँधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा नहीं दिखाई, उन्हें या तो अनदेखा कर दिया गया या फिर पार्टी से बाहर कर दिया गया। डॉ. मनमोहन सिंह, जिन्होंने देश के प्रधानमंत्री रहते हुए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ बनाई और भारत को वैश्विक मंच पर स्थापित किया, का योगदान निस्संदेह प्रशंसनीय है। लेकिन उनके निधन के बाद स्मारक की माँग करने वाली पार्टी को यह भी सोचना चाहिए कि उसने अन्य नेताओं के साथ कैसा व्यवहार किया है। हालाँकि मोदी सरकार ने कहा है कि डॉ मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के बाद उनका स्मारक बनाने के लिए जगह की पहचान की जाएगी, सरकार ने कभी नहीं कहा कि वो डॉ मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए जगह नहीं देगी। वैसे, यहाँ एक बात बताना जरूरी है कि साल 2013 में डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए ही कॉन्ग्रेस की सरकार ने एक नियम बनाया था कि राजघाट पर अब किसी पूर्व प्रधानमंत्री को जगह नहीं दी जाएगी और न ही नया स्मारक बनाया जाएगा। क्या करना उचित होगा?नेहरू परिवार के मुर्दों की जमीन बचाने के लिए किए गए मनमोहन सिंह के 2013 के कैबिनेट फैसले का सम्मान करें या कोई नई परंपरा कायम हो.2013 आते आते कांग्रेस को साफ लगने लगा कि सोनिया गांधी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगी और राहुल और प्रियंका के लक्षण भी ठीक नहीं…— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) December 28, 2024 पी.वी. नरसिम्हा राव का उदाहरण सबसे प्रासंगिक है। आर्थिक सुधारों के जनक कहे जाने वाले राव को कॉन्ग्रेस ने हमेशा हाशिये पर रखा। यह केवल उनके निधन के समय तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके जीवनकाल में भी पार्टी ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार थे। वहीं, मोदी सरकार ने नरसिम्हा राव का न सिर्फ स्मारक बनवाया, बल्कि उन्हें पूरा सम्मान भी दिया। इसी तरह प्रणब मुखर्जी, जिन्होंने दशकों तक पार्टी की सेवा की और देश के वित्त मंत्री, विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए देश की नीतियों को आकार दिया, को भी गाँधी परिवार के प्रति वफादारी न दिखाने के कारण अनदेखा किया गया। उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने यह आरोप लगाकर इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है। कॉन्ग्रेस को अपने भीतर झाँकने की जरूरत है। पार्टी को यह समझना होगा कि केवल गाँधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमने वाली राजनीति लंबे समय तक उसे जिंदा नहीं रख सकती। डॉ. मनमोहन सिंह के स्मारक की माँग करना एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन इसे केवल दिखावे के लिए करना पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है। क्योंकि देश की जनता अब जागरूक हो चुकी है और राजनीतिक पाखंड को समझने लगी है।   Click to listen highlighted text! गाँधी परिवार के गैर-वफादारों के साथ नाइंसाफी: मनमोहन सिंह की समाधि के लिए जगह माँगने वाली कॉन्ग्रेस नरसिम्हा राव और प्रणब मुखर्जी के साथ नहीं किया न्याय, शर्मिष्ठा ने उठाई आवाज कॉन्ग्रेस पार्टी का इतिहास भारत की स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है और यह पार्टी एक समय देश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाई रही। लेकिन बीते कुछ दशकों में पार्टी के भीतर की राजनीति और उसके फैसले कई सवाल खड़े करते हैं। गाँधी परिवार के प्रति वफादारी और उसके इर्द-गिर्द घूमती नीतियों ने पार्टी को कहीं न कहीं सीमित कर दिया है। यह स्थिति तब और स्पष्ट हो जाती है जिसमें कॉन्ग्रेस पार्टी के भीतर उन नेताओं को अनदेखा किया जाता है जिन्होंने संगठन और देश के लिए अपना अहम योगदान दिया, लेकिन गाँधी परिवार के वफादार नहीं माने गए। अभी डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद कॉन्ग्रेस द्वारा उनके स्मारक की माँग ने इस मुद्दे को फिर से उजागर किया। दो बार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 को निधन हो गया। उनके निधन के बाद कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर दिल्ली में उनके नाम पर एक स्मारक बनाने की माँग की। खड़गे ने अपने पत्र में मनमोहन सिंह के योगदान का उल्लेख करते हुए इसे देश के लिए सम्मान की बात बताया। यह माँग सुनने में भले ही संवेदनशील और जायज लगे, लेकिन इसने एक बार फिर पार्टी की राजनीति और उसके असली उद्देश्यों पर सवाल खड़े कर दिए। प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा कि जब उनके पिता पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हुआ था, तब कॉन्ग्रेस ने उनके सम्मान में एक शोक सभा तक आयोजित नहीं की। उन्होंने कहा कि उन्हें यह कहकर गुमराह किया गया, कि राष्ट्रपति बन चुके लोगों के निधन पर कॉन्ग्रेस सीडब्ल्यूसी (कॉन्ग्रेस वर्किंग ग्रुप) की बैठक नहीं बुलाती, जबकि खुद प्रणब मुखर्जी ने अपनी डायरी में ये बात लिखी है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ केआर नारायणन के निधन पर न सिर्फ बैठक बुलाई गई थी, बल्कि खुद प्रणब मुखर्जी ने ही संदेश भी लिया था। शर्मिष्ठा मुखर्जी का यह आरोप कॉन्ग्रेस नेतृत्व की प्राथमिकताओं और गाँधी परिवार के प्रति उसकी वफादारी को दर्शाता है। When baba passed away, Congress didnt even bother 2 call CWC 4 condolence meeting. 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One should remind Kharge ji how the Congress led UPA Govt never built a memorial in Delhi for former PM Narasimha… pic.twitter.com/nt59JttvrX— C.R.Kesavan (@crkesavan) December 27, 2024 डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद जिस तरह से कॉन्ग्रेस ने स्मारक की माँग की, उससे यह सवाल उठता है कि क्या यह कदम वास्तव में उनके योगदान के प्रति सम्मान का प्रतीक है या फिर एक राजनीतिक रणनीति? कॉन्ग्रेस का इतिहास यह दर्शाता है कि पार्टी ने हमेशा गाँधी परिवार को प्राथमिकता दी है। जिन नेताओं ने गाँधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा नहीं दिखाई, उन्हें या तो अनदेखा कर दिया गया या फिर पार्टी से बाहर कर दिया गया। डॉ. मनमोहन सिंह, जिन्होंने देश के प्रधानमंत्री रहते हुए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ बनाई और भारत को वैश्विक मंच पर स्थापित किया, का योगदान निस्संदेह प्रशंसनीय है। लेकिन उनके निधन के बाद स्मारक की माँग करने वाली पार्टी को यह भी सोचना चाहिए कि उसने अन्य नेताओं के साथ कैसा व्यवहार किया है। हालाँकि मोदी सरकार ने कहा है कि डॉ मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के बाद उनका स्मारक बनाने के लिए जगह की पहचान की जाएगी, सरकार ने कभी नहीं कहा कि वो डॉ मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए जगह नहीं देगी। वैसे, यहाँ एक बात बताना जरूरी है कि साल 2013 में डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए ही कॉन्ग्रेस की सरकार ने एक नियम बनाया था कि राजघाट पर अब किसी पूर्व प्रधानमंत्री को जगह नहीं दी जाएगी और न ही नया स्मारक बनाया जाएगा। क्या करना उचित होगा?नेहरू परिवार के मुर्दों की जमीन बचाने के लिए किए गए मनमोहन सिंह के 2013 के कैबिनेट फैसले का सम्मान करें या कोई नई परंपरा कायम हो.2013 आते आते कांग्रेस को साफ लगने लगा कि सोनिया गांधी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगी और राहुल और प्रियंका के लक्षण भी ठीक नहीं…— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) December 28, 2024 पी.वी. नरसिम्हा राव का उदाहरण सबसे प्रासंगिक है। आर्थिक सुधारों के जनक कहे जाने वाले राव को कॉन्ग्रेस ने हमेशा हाशिये पर रखा। यह केवल उनके निधन के समय तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके जीवनकाल में भी पार्टी ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार थे। वहीं, मोदी सरकार ने नरसिम्हा राव का न सिर्फ स्मारक बनवाया, बल्कि उन्हें पूरा सम्मान भी दिया। इसी तरह प्रणब मुखर्जी, जिन्होंने दशकों तक पार्टी की सेवा की और देश के वित्त मंत्री, विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए देश की नीतियों को आकार दिया, को भी गाँधी परिवार के प्रति वफादारी न दिखाने के कारण अनदेखा किया गया। उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने यह आरोप लगाकर इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है। कॉन्ग्रेस को अपने भीतर झाँकने की जरूरत है। पार्टी को यह समझना होगा कि केवल गाँधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमने वाली राजनीति लंबे समय तक उसे जिंदा नहीं रख सकती। डॉ. मनमोहन सिंह के स्मारक की माँग करना एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन इसे केवल दिखावे के लिए करना पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है। क्योंकि देश की जनता अब जागरूक हो चुकी है और राजनीतिक पाखंड को समझने लगी है।

गाँधी परिवार के गैर-वफादारों के साथ नाइंसाफी: मनमोहन सिंह की समाधि के लिए जगह माँगने वाली कॉन्ग्रेस नरसिम्हा राव और प्रणब मुखर्जी के साथ नहीं किया न्याय, शर्मिष्ठा ने उठाई आवाज

कॉन्ग्रेस पार्टी का इतिहास भारत की स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है और यह पार्टी एक समय देश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाई रही। लेकिन बीते कुछ दशकों में पार्टी के भीतर की राजनीति और उसके फैसले कई सवाल खड़े करते हैं। गाँधी परिवार के प्रति वफादारी और उसके इर्द-गिर्द घूमती नीतियों ने पार्टी को कहीं न कहीं सीमित कर दिया है। यह स्थिति तब और स्पष्ट हो जाती है जिसमें कॉन्ग्रेस पार्टी के भीतर उन नेताओं को अनदेखा किया जाता है जिन्होंने संगठन और देश के लिए अपना अहम योगदान दिया, लेकिन गाँधी परिवार के वफादार नहीं माने गए।

अभी डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद कॉन्ग्रेस द्वारा उनके स्मारक की माँग ने इस मुद्दे को फिर से उजागर किया। दो बार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 को निधन हो गया। उनके निधन के बाद कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर दिल्ली में उनके नाम पर एक स्मारक बनाने की माँग की। खड़गे ने अपने पत्र में मनमोहन सिंह के योगदान का उल्लेख करते हुए इसे देश के लिए सम्मान की बात बताया। यह माँग सुनने में भले ही संवेदनशील और जायज लगे, लेकिन इसने एक बार फिर पार्टी की राजनीति और उसके असली उद्देश्यों पर सवाल खड़े कर दिए।

प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा कि जब उनके पिता पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हुआ था, तब कॉन्ग्रेस ने उनके सम्मान में एक शोक सभा तक आयोजित नहीं की। उन्होंने कहा कि उन्हें यह कहकर गुमराह किया गया, कि राष्ट्रपति बन चुके लोगों के निधन पर कॉन्ग्रेस सीडब्ल्यूसी (कॉन्ग्रेस वर्किंग ग्रुप) की बैठक नहीं बुलाती, जबकि खुद प्रणब मुखर्जी ने अपनी डायरी में ये बात लिखी है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ केआर नारायणन के निधन पर न सिर्फ बैठक बुलाई गई थी, बल्कि खुद प्रणब मुखर्जी ने ही संदेश भी लिया था। शर्मिष्ठा मुखर्जी का यह आरोप कॉन्ग्रेस नेतृत्व की प्राथमिकताओं और गाँधी परिवार के प्रति उसकी वफादारी को दर्शाता है।

When baba passed away, Congress didnt even bother 2 call CWC 4 condolence meeting. A senior leader told me it’s not done 4 Presidents. Thats utter rubbish as I learned later from baba’s diaries that on KR Narayanan’s death, CWC was called & condolence msg was drafted by baba only https://t.co/nbYCF7NsMB— Sharmistha Mukherjee (@Sharmistha_GK) December 27, 2024

इससे पहले भी कॉन्ग्रेस की इस नीति का उदाहरण पी.वी. नरसिम्हा राव के मामले में देखा गया। राव साहब, जो 1991 से 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे और जिनके कार्यकाल में देश में आर्थिक उदारीकरण की नींव पड़ी, उनके निधन के बाद पार्टी ने उन्हें पूरी तरह अनदेखा किया। 2004 में उनके निधन के समय कॉन्ग्रेस की सरकार थी, लेकिन उनके पार्थिव शरीर को पार्टी मुख्यालय में अंतिम दर्शन के लिए नहीं रखा गया। यहाँ तक कि उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में करने की अनुमति भी नहीं दी गई और उनके परिवार को मजबूरन उनका पार्थिव शरीर हैदराबाद ले जाना पड़ा।

डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे डॉ. संजय बारू ने अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा कि नरसिम्हा राव को गाँधी परिवार के प्रभाव से बाहर होने के कारण पार्टी में कभी स्वीकार नहीं किया गया। यह केवल नरसिम्हा राव या प्रणब मुखर्जी तक सीमित नहीं है, बल्कि लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं के साथ भी पार्टी ने ऐसा ही व्यवहार किया। शास्त्री जी, जो देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे और जिनका ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा आज भी लोगों के दिलों में बसा है, को भी पार्टी के भीतर वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे।

कॉन्ग्रेस की राजनीति हमेशा से गाँधी परिवार के प्रति वफादारी पर आधारित रही है। जिन नेताओं ने परिवार के प्रति अपनी निष्ठा नहीं दिखाई, उन्हें पार्टी के भीतर हाशिये पर डाल दिया गया। प्रणब मुखर्जी का उदाहरण इसका प्रमाण है। दशकों तक कॉन्ग्रेस में अपनी सेवाएँ देने और देश के राष्ट्रपति पद तक पहुँचने के बावजूद उनके निधन पर पार्टी ने शोक सभा तक आयोजित नहीं की। यह विडंबना ही है कि जिस पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं को उचित सम्मान नहीं दिया, वह आज डॉ. मनमोहन सिंह के लिए स्मारक की माँग कर रही है।

भाजपा ने भी इस मुद्दे पर कॉन्ग्रेस को आड़े हाथों लिया। भाजपा प्रवक्ता सी.आर. केसवन ने कहा कि यह विडंबना है कि जो पार्टी अपने ही नेताओं को उचित सम्मान नहीं दे सकी, वह अब स्मारकों की राजनीति कर रही है। केसवन ने कॉन्ग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि पार्टी का इतिहास अपने गैर-वफादार नेताओं की उपेक्षा से भरा पड़ा है।

It is indeed ironic that a Congress President is writing to PM @narendramodi ji about traditions & the funeral place becoming the sacrosanct venue for a memorial. One should remind Kharge ji how the Congress led UPA Govt never built a memorial in Delhi for former PM Narasimha… pic.twitter.com/nt59JttvrX— C.R.Kesavan (@crkesavan) December 27, 2024

डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद जिस तरह से कॉन्ग्रेस ने स्मारक की माँग की, उससे यह सवाल उठता है कि क्या यह कदम वास्तव में उनके योगदान के प्रति सम्मान का प्रतीक है या फिर एक राजनीतिक रणनीति? कॉन्ग्रेस का इतिहास यह दर्शाता है कि पार्टी ने हमेशा गाँधी परिवार को प्राथमिकता दी है। जिन नेताओं ने गाँधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा नहीं दिखाई, उन्हें या तो अनदेखा कर दिया गया या फिर पार्टी से बाहर कर दिया गया।

डॉ. मनमोहन सिंह, जिन्होंने देश के प्रधानमंत्री रहते हुए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ बनाई और भारत को वैश्विक मंच पर स्थापित किया, का योगदान निस्संदेह प्रशंसनीय है। लेकिन उनके निधन के बाद स्मारक की माँग करने वाली पार्टी को यह भी सोचना चाहिए कि उसने अन्य नेताओं के साथ कैसा व्यवहार किया है। हालाँकि मोदी सरकार ने कहा है कि डॉ मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के बाद उनका स्मारक बनाने के लिए जगह की पहचान की जाएगी, सरकार ने कभी नहीं कहा कि वो डॉ मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए जगह नहीं देगी।

वैसे, यहाँ एक बात बताना जरूरी है कि साल 2013 में डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए ही कॉन्ग्रेस की सरकार ने एक नियम बनाया था कि राजघाट पर अब किसी पूर्व प्रधानमंत्री को जगह नहीं दी जाएगी और न ही नया स्मारक बनाया जाएगा।

क्या करना उचित होगा?नेहरू परिवार के मुर्दों की जमीन बचाने के लिए किए गए मनमोहन सिंह के 2013 के कैबिनेट फैसले का सम्मान करें या कोई नई परंपरा कायम हो.2013 आते आते कांग्रेस को साफ लगने लगा कि सोनिया गांधी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगी और राहुल और प्रियंका के लक्षण भी ठीक नहीं…— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) December 28, 2024

पी.वी. नरसिम्हा राव का उदाहरण सबसे प्रासंगिक है। आर्थिक सुधारों के जनक कहे जाने वाले राव को कॉन्ग्रेस ने हमेशा हाशिये पर रखा। यह केवल उनके निधन के समय तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके जीवनकाल में भी पार्टी ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार थे। वहीं, मोदी सरकार ने नरसिम्हा राव का न सिर्फ स्मारक बनवाया, बल्कि उन्हें पूरा सम्मान भी दिया।

इसी तरह प्रणब मुखर्जी, जिन्होंने दशकों तक पार्टी की सेवा की और देश के वित्त मंत्री, विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए देश की नीतियों को आकार दिया, को भी गाँधी परिवार के प्रति वफादारी न दिखाने के कारण अनदेखा किया गया। उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने यह आरोप लगाकर इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है।

कॉन्ग्रेस को अपने भीतर झाँकने की जरूरत है। पार्टी को यह समझना होगा कि केवल गाँधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमने वाली राजनीति लंबे समय तक उसे जिंदा नहीं रख सकती। डॉ. मनमोहन सिंह के स्मारक की माँग करना एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन इसे केवल दिखावे के लिए करना पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है। क्योंकि देश की जनता अब जागरूक हो चुकी है और राजनीतिक पाखंड को समझने लगी है।

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    अडानी ग्रीन एनर्जी दुनिया के 10 टॉप कंपनियों में शामिल हो गया है। इसे अक्षय ऊर्जा स्वतंत्र बिजली उत्पादक (IPP) में स्थान दिया गया है। कंपनी ने 10,000 मेगावाट ऊर्जा…

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