
कुशीनगर:आमरण अनशन पर बैठे ग्रामीणों की तबीयत बिगड़ी, तीन की हालत गंभीर, अनशनकारियों ने दवा खाने से किया इंकार
लोकायुक्त न्यूज
ब्यूरो,कुशीनगर। कुशीनगर जिले के अडरौना गांव में कोटे की दुकान के चयन में धांधली के विरोध में आमरण अनशन कर रहे ग्रामीणों की हालत बिगड़ने लगी है। अनशन के तीसरे दिन स्वास्थ्य विभाग की टीम मौके पर पहुंची और 10 बीमार ग्रामीणों का उपचार शुरू किया। डॉक्टरों ने बताया कि तीन लोगों की स्थिति बेहद गंभीर है। हालांकि, इलाज के लिए दी गई दवाएं बीमार ग्रामीणों ने लेने से इनकार कर दिया है। मौके पर मौजूद डॉक्टर एस.के. गुप्ता ने बताया कि अनशनकारियों में कमजोरी, उच्च रक्तचाप और भूख-प्यास के कारण स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं देखी जा रही हैं। अनशन पर बैठे हरिहर की हालत सबसे गंभीर बताई जा रही है। उन्होंने दवा लेने और इलाज कराने से इनकार करते हुए कहा, “जब तक हमारी बात नहीं सुनी जाती, मैं यहां से नहीं हटूंगा।”
डॉक्टरों की टीम ने अनशनकारियों की बिगड़ती हालत को देखते हुए चिंता जाहिर की है। प्रशासन से मांग की गई है कि जल्द से जल्द इस विवाद का हल निकाला जाए, ताकि अनशन खत्म किया जा सके और ग्रामीणों का स्वास्थ्य सुरक्षित रहे।
ग्रामीणों का आरोप
ग्रामीणों का कहना है कि कोटे की दुकान का चयन शासनादेश के अनुसार गांव के महिला समूह में निष्पक्ष तरीके से होना चाहिए। लेकिन, ब्लॉक और तहसील स्तर के अधिकारी सत्ता पक्ष के दबाव में ग्राम प्रधान के रिश्तेदार के महिला समूह को कोटा आवंटित करने की कोशिश कर रहे हैं।
गांव के निवासी विजय मद्धेशिया, राजेश यादव, दशरथ, हरिहर, और अन्य लोगों ने बताया कि पहले चार बैठकों में पूरे गांव के 800 लोगों की उपस्थिति में चयन प्रक्रिया की चर्चा हुई थी। लेकिन इस बार अधिकारियों ने केवल ग्राम प्रधान और उनके रिश्तेदारों के कहने पर मनमानी करते हुए चयन का प्रस्ताव रखा, जो पूरी तरह से नियमों के खिलाफ है।
अनशन पर जाने की पहले दी थी चेतावनी
ग्रामीणों ने कुछ दिन पहले कप्तानगंज तहसील जाकर अधिकारियों को अपने विरोध से अवगत कराया था। उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि अगर निष्पक्ष चयन नहीं किया गया, तो 15 जनवरी से आमरण अनशन शुरू किया जाएगा। बावजूद इसके प्रशासन ने उनकी शिकायत को नजरअंदाज कर दिया। ग्रामीणों ने स्पष्ट किया है कि कोटे का चयन गांव के चार महिला समूहों के बीच निष्पक्ष तरीके से होना चाहिए। उनका कहना है कि बैठकें खुले में होनी चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी न हो।
प्रशासन पर सवाल
अब तक तहसील प्रशासन की ओर से कोई ठोस आश्वासन न मिलने पर ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। अनशन पर बैठे ग्रामीणों का कहना है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं, तो वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।