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वक्फ बिल पास होते ही केरल के 50 ईसाई BJP में हुए शामिल, PM मोदी से मिल आभार प्रकट करने की जताई इच्छा: मुनम्बम में इनकी 404 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड ने ठोका है दावा लोकसभा के बाद राज्यसभा में वक्फ संशोधन बिल पास होने के बाद केरल के 50 ईसाई भाजपा में शामिल हो गए। ये सभी लोग केरल के मुनंबम के रहने वाले हैं। लगभग 404 एकड़ में फैला मुनंबम वही इलाका है, जिस पर वक्फ बोर्ड अपना दावा करता है। इस दावे की वजह से यहाँ रहने वाले 600 से अधिक ईसाई और हिंदू परिवारों पर ग्रहण लग गया है। वक्फ बिल पास होने से इन लोगों में खुशी है। वक्फ (संशोधन) विधेयक पारित होने के बाद भाजपा की केरल इकाई के नेताओं ने मुनंबम का दौरा किया। वहाँ के लोगों ने भाजपा नेताओं का जोरदार स्वागत किया और 50 लोग पार्टी में शामिल हो गए। केरल के इस तटीय गाँव के लोग वक्फ बोर्ड के दावों के खिलाफ पिछले 174 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने वहाँ पहुँचकर प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की। चंद्रशेखर ने उनसे कहा, “यह राज्य के राजनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन है। इस आंदोलन ने प्रधानमंत्री और संसद को वक्फ संशोधन विधेयक पारित करने की ताकत दी है। जब तक आपको जमीन पर राजस्व अधिकार वापस नहीं मिल जाते, हम आपके साथ हैं। मुनंबम के लोगों को उनके सांसदों और विधायकों ने धोखा दिया है, लेकिन उनकी आवाज संसद तक आखिरकार पहुँची।” മോദി സർക്കാർ വഖഫ് ഭേദഗതി ബിൽ പാർലമെൻ്റിലെ ഇരു സഭകളിലും പാസാക്കിയതിന് പിന്നാലെ മുനമ്പം സന്ദർശിച്ച് ബിജെപി സംസ്ഥാന അധ്യക്ഷൻ ശ്രീ. രാജീവ് ചന്ദ്രശേഖർ. സമരപന്തലിൽ എത്തിയ അദ്ദേഹം സമരസമിതി നേതാക്കളുമായും ഫാ. ആൻ്റണി സേവിയറുമായും മധുരം പങ്കിടുകയും, സമരസമിതിക്ക് അഭിനന്ദനങ്ങൾ നേരുകയും… pic.twitter.com/MFaf1IKBsN— BJP KERALAM (@BJP4Keralam) April 4, 2025 इसके बाद 50 लोग भाजपा में शामिल हो गए। मुनंबम प्रदर्शनकारियों की कार्यसमिति के संयोजक जोसेफ बेनी ने बताया कि भाजपा में शामिल होने वाले सभी 50 लोग ईसाई हैं। वे पहले कॉन्ग्रेस और सीपीआई (एम) को वोट देते थे। ईसाई बहुल मुनंबम के लोगों को उम्मीद है कि वक्फ (संशोधन) विधेयक के पारित होने से वक्फ बोर्ड द्वारा उनकी भूमि पर किए दावों का समाधान निकालने में मदद मिलेगी। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने चंद्रशेखर से पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की व्यवस्था करने का अनुरोध किया, ताकि वे उनका आभार व्यक्त कर सकें। इस पर चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से बात करने का आश्वासन दिया है। आभार प्रकट करने के लिए मुनंबम विरोध समिति ने चंद्रशेखर को ‘ईसा मसीह के अंतिम भोज’ की एक तस्वीर भेंट की। वहीं, फादर एंटनी जेवियर ने मिठाई बाँटी। इस बीच, कैथोलिक चर्च से जुड़े मलयालम दैनिक दीपिका ने कहा कि कॉन्ग्रेस और वामपंथी संघ परिवार को लेकर अल्पसंख्यकों में भय पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल, कैथोलिक चर्च ने कॉन्ग्रेस और वामपंथी से आग्रह किया था कि वे अपने सांसदों को वक्फ कानून में जनविरोधी धाराओं को हटाने के लिए लाए गए वक्फ संशोधन बिल के पक्ष में मतदान करने के लिए कहें। हालाँकि, दोनों दलों ने चर्च की इस माँग को खारिज कर दिया था। कैथोलिक चर्च मुनंबम के लोगों के साथ खड़ा है। वहीं, ईसाई समुदाय के लोग वक्फ पारित होने के लिए चर्चों में प्रार्थना करते रहे। दरअसल, अधिकांश ईसाई परिवार वाले मुनंबम के लोगों का कहना है कि वे इस जगह पर पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं। इसके बावजूद वक्फ बोर्ड ने इस गाँव पर अपना दावा ठोका है। क्या है मामला? केरल वक्फ बोर्ड ने साल 2019 में दावा किया कि मुनम्बम, चेराई और पल्लिकाल द्वीप के इलाके वक्फ संपत्ति है। वक्फ बोर्ड का कहना है कि यह जमीन साल 1950 में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज की गई थी, जबकि यहाँ रहने वाले लोगों का दावा है कि उन्होंने इस जमीन को कानूनी रूप से दशकों पहले खरीदा था। उनकी पीढ़ियाँ यहाँ रहते आ रही हैं। इन लोगों के पास 1989 से जमीन के वैध कागजात हैं। इन परिवारों का कहना है कि उन्होंने वैध तरीके से अपनी जमीन खरीदी है। अब वक्फ बोर्ड द्वारा किए गए दावे के बाद उन्हें इस जमीन को जबरन खाली करने के आदेश दिए जा रहे हैं। बता दें कि समुद्र तट पर बसा यह इलाका न केवल केरल के 600 से अधिक परिवारों का घर है, बल्कि यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। इसके बावजूद, वक्फ बोर्ड ने इस इलाके पर अपना दावा ठोक दिया। केरल के एर्नाकुलम जिले में कोच्चि से लगभग 38 किलोमीटर दूर अरब सागर के किनारे मुनम्बम स्थित है। यहाँ 610 परिवारों रहते हैं, जिनमें 510 कैथोलिक ईसाई और 100 हिंदू परिवार हैं। इन लोगों कहना है कि इन लोगों ने फारूख कॉलेज के मैनेजमेंट से यह जमीन खरीदी थी। इसको लेकर वे पिछले 60 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं, साल 2019 में वक्फ ने इसे अपनी संपत्ति घोषित कर दी। साल 1902 तक जाती है विवाद की जड़ दरअसल, 1341 ईस्वी में केरल में भयानक बाढ़ आई। इस दौरान वाइपिन आईलैंड के ऊतरी हिस्से पर मुनम्बम बना। साल 1503 में पुर्तगालियों ने यहाँ हमला किया और 1663 में डचों ने इस पर कब्जा कर लिया। यह डचों के अधिकार में लंबे समय तक रहा। इसके बाद 1789 ईस्वी में डचों ने मुनम्बम को त्रावणकोर के महाराजा को बेच दिया। इसके बाद विवाद की शुरुआत होती है। साल 1902 में त्रावणकोर के महाराजा ने गुजरात से आए एक किसान अब्दुल सत्तार मूसा हाजी सैत को यहाँ की 404 एकड़ जमीन और 60 एकड़ जल क्षेत्र पट्टे पर दिया था। उस समय, यह जमीन मछुआरों के लिए अलग रखी गई थी, जो वहाँ कई वर्षों से रह रहे थे। 1948 में सेठ के उत्तराधिकारी एवं दामाद सिद्दीक सैत ने यह जमीन अपने नाम पर पंजीकृत करवा ली। इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा समुद्री कटाव के कारण खो गया और साल 1934 की भारी बारिश ने पांडरा समुद्र किनारे की जमीन को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। हालाँकि, सिद्दीक सैत द्वारा पंजीकृत जमीन में मछुआरों के रहने वाले इलाके भी शामिल हो गए। साल 1950 में सिद्दीक सैत ने यह जमीन फरूख कॉलेज को उपहार में दे दी, जो मुस्लिमों को शिक्षित करने के लिए 1948 में बनाया गया था। इसके साथ ही सिद्दीकी सैत ने शर्त रखी थी। शर्त यह थी कि कॉलेज केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए ही इसका उपयोग करेगा। अगर कभी कॉलेज बंद हो जाता है तो जमीन वापस सिद्दीकी सैत के वंशजों को लौटा दी जाएगी। हालाँकि, दस्तावेजों में गलती से या जानबूझकर ‘वक्फ’ शब्द लिख दिया गया, जिससे अब यह विवाद खड़ा हो गया है। कहा जाता है कि 1 नवंबर 1950 को कोच्चि के एडापल्ली में उप-पंजीयक कार्यालय में एक वक्फ पंजीकृत किया गया था। इसमें सैत ने फारूक कॉलेज के अध्यक्ष के पक्ष में पंजीकृत कराया था। विवाद की शुरुआत और आयोग का गठन फारूख कॉलेज के प्रबंधन को करीब एक दशक बाद जमीन का मालिकाना हक मिल गया। साल 1960 के दशक के आखिर में जमीन पर कब्जा करने वालों के बीच कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। कॉलेज प्रबंधन यहाँ रहने वाले लोगों को बेदखल करना चाहता था। कैथोलिक ईसाई और दलित हिंदू समुदाय के ये लोग पीढ़ियों से वहाँ रह रहे थे, लेकिन उनके पास स्वामित्व साबित करने के लिए कानूनी दस्तावेज नहीं थे। आखिरकार, अदालत के बाहर समझौते में कॉलेज प्रबंधन ने बाजार दर पर जमीन को अपने कब्जेदारों को बेचने का फैसला किया। दस्तावेजों से पता चलता है कि बिक्री के कामों में कॉलेज प्रबंधन ने यह उल्लेख नहीं किया कि विचाराधीन भूमि वक्फ संपत्ति थी, जिसे शिक्षा के उद्देश्य से कॉलेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को दिया गया था। इसके बजाय उन्होंने कहा कि यह संपत्ति 1950 में गिफ्ट डीड में मिली थी। निसार आयोग और नया विवाद: केरल राज्य वक्फ बोर्ड के खिलाफ कई शिकायतों मिलने के बाद वीएस अच्युतानंदन के नेतृत्व वाली सीपीआई (एम) सरकार ने 2008 में एक आयोग गठित किया। यह आयोग सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश एमए निसार के नेतृत्व में नियुक्त किया गया। आयोग का काम बोर्ड द्वारा परिसंपत्तियों के नुकसान के लिए जिम्मेदारी तय करना था। इसके अलावा, अयोग को इन परिसंपत्तियों की वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश करना भी शामिल था। आयोग ने साल 2009 में अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में आयोग ने मुनंबम में जमीन को वक्फ संपत्ति माना और कहा कि कॉलेज प्रबंधन ने बोर्ड की सहमति के बिना इसकी बिक्री को मंजूरी दे दी थी। इसने इसकी वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश की थी। वक्फ बोर्ड ने घोषित कर दी वक्फ संपत्ति: इसके बाद साल 2019 में वक्फ बोर्ड ने खुद ही मुनंबम भूमि को वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 और 41 के अनुसार वक्फ संपत्ति घोषित कर दी। बोर्ड ने राजस्व विभाग को निर्देश दिया कि वह भूमि के वर्तमान कब्जेदारों (जो कई वर्षों से कर का भुगतान कर रहे थे) से भूमि कर स्वीकार ना करे। राजस्व विभाग को दिए गए इस निर्देश को राज्य सरकार ने साल 2022 में खारिज कर दिया। इसके बाद बोर्ड ने राज्य सरकार के फैसले को केरल हाई कोर्ट में उसी साल चुनौती दी। न्यायालय ने फिलहाल राज्य सरकार के फैसलों पर रोक लगा दी है। वर्तमान में, इस विवाद को लेकर भूमि के कब्जेदारों के साथ-साथ वक्फ संरक्षण समिति की ओर से एक दर्जन से अधिक अपीलें न्यायालय में लंबित हैं।   Click to listen highlighted text! वक्फ बिल पास होते ही केरल के 50 ईसाई BJP में हुए शामिल, PM मोदी से मिल आभार प्रकट करने की जताई इच्छा: मुनम्बम में इनकी 404 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड ने ठोका है दावा लोकसभा के बाद राज्यसभा में वक्फ संशोधन बिल पास होने के बाद केरल के 50 ईसाई भाजपा में शामिल हो गए। ये सभी लोग केरल के मुनंबम के रहने वाले हैं। लगभग 404 एकड़ में फैला मुनंबम वही इलाका है, जिस पर वक्फ बोर्ड अपना दावा करता है। इस दावे की वजह से यहाँ रहने वाले 600 से अधिक ईसाई और हिंदू परिवारों पर ग्रहण लग गया है। वक्फ बिल पास होने से इन लोगों में खुशी है। वक्फ (संशोधन) विधेयक पारित होने के बाद भाजपा की केरल इकाई के नेताओं ने मुनंबम का दौरा किया। वहाँ के लोगों ने भाजपा नेताओं का जोरदार स्वागत किया और 50 लोग पार्टी में शामिल हो गए। केरल के इस तटीय गाँव के लोग वक्फ बोर्ड के दावों के खिलाफ पिछले 174 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने वहाँ पहुँचकर प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की। चंद्रशेखर ने उनसे कहा, “यह राज्य के राजनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन है। इस आंदोलन ने प्रधानमंत्री और संसद को वक्फ संशोधन विधेयक पारित करने की ताकत दी है। जब तक आपको जमीन पर राजस्व अधिकार वापस नहीं मिल जाते, हम आपके साथ हैं। मुनंबम के लोगों को उनके सांसदों और विधायकों ने धोखा दिया है, लेकिन उनकी आवाज संसद तक आखिरकार पहुँची।” മോദി സർക്കാർ വഖഫ് ഭേദഗതി ബിൽ പാർലമെൻ്റിലെ ഇരു സഭകളിലും പാസാക്കിയതിന് പിന്നാലെ മുനമ്പം സന്ദർശിച്ച് ബിജെപി സംസ്ഥാന അധ്യക്ഷൻ ശ്രീ. രാജീവ് ചന്ദ്രശേഖർ. സമരപന്തലിൽ എത്തിയ അദ്ദേഹം സമരസമിതി നേതാക്കളുമായും ഫാ. ആൻ്റണി സേവിയറുമായും മധുരം പങ്കിടുകയും, സമരസമിതിക്ക് അഭിനന്ദനങ്ങൾ നേരുകയും… pic.twitter.com/MFaf1IKBsN— BJP KERALAM (@BJP4Keralam) April 4, 2025 इसके बाद 50 लोग भाजपा में शामिल हो गए। मुनंबम प्रदर्शनकारियों की कार्यसमिति के संयोजक जोसेफ बेनी ने बताया कि भाजपा में शामिल होने वाले सभी 50 लोग ईसाई हैं। वे पहले कॉन्ग्रेस और सीपीआई (एम) को वोट देते थे। ईसाई बहुल मुनंबम के लोगों को उम्मीद है कि वक्फ (संशोधन) विधेयक के पारित होने से वक्फ बोर्ड द्वारा उनकी भूमि पर किए दावों का समाधान निकालने में मदद मिलेगी। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने चंद्रशेखर से पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की व्यवस्था करने का अनुरोध किया, ताकि वे उनका आभार व्यक्त कर सकें। इस पर चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से बात करने का आश्वासन दिया है। आभार प्रकट करने के लिए मुनंबम विरोध समिति ने चंद्रशेखर को ‘ईसा मसीह के अंतिम भोज’ की एक तस्वीर भेंट की। वहीं, फादर एंटनी जेवियर ने मिठाई बाँटी। इस बीच, कैथोलिक चर्च से जुड़े मलयालम दैनिक दीपिका ने कहा कि कॉन्ग्रेस और वामपंथी संघ परिवार को लेकर अल्पसंख्यकों में भय पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल, कैथोलिक चर्च ने कॉन्ग्रेस और वामपंथी से आग्रह किया था कि वे अपने सांसदों को वक्फ कानून में जनविरोधी धाराओं को हटाने के लिए लाए गए वक्फ संशोधन बिल के पक्ष में मतदान करने के लिए कहें। हालाँकि, दोनों दलों ने चर्च की इस माँग को खारिज कर दिया था। कैथोलिक चर्च मुनंबम के लोगों के साथ खड़ा है। वहीं, ईसाई समुदाय के लोग वक्फ पारित होने के लिए चर्चों में प्रार्थना करते रहे। दरअसल, अधिकांश ईसाई परिवार वाले मुनंबम के लोगों का कहना है कि वे इस जगह पर पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं। इसके बावजूद वक्फ बोर्ड ने इस गाँव पर अपना दावा ठोका है। क्या है मामला? केरल वक्फ बोर्ड ने साल 2019 में दावा किया कि मुनम्बम, चेराई और पल्लिकाल द्वीप के इलाके वक्फ संपत्ति है। वक्फ बोर्ड का कहना है कि यह जमीन साल 1950 में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज की गई थी, जबकि यहाँ रहने वाले लोगों का दावा है कि उन्होंने इस जमीन को कानूनी रूप से दशकों पहले खरीदा था। उनकी पीढ़ियाँ यहाँ रहते आ रही हैं। इन लोगों के पास 1989 से जमीन के वैध कागजात हैं। इन परिवारों का कहना है कि उन्होंने वैध तरीके से अपनी जमीन खरीदी है। अब वक्फ बोर्ड द्वारा किए गए दावे के बाद उन्हें इस जमीन को जबरन खाली करने के आदेश दिए जा रहे हैं। बता दें कि समुद्र तट पर बसा यह इलाका न केवल केरल के 600 से अधिक परिवारों का घर है, बल्कि यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। इसके बावजूद, वक्फ बोर्ड ने इस इलाके पर अपना दावा ठोक दिया। केरल के एर्नाकुलम जिले में कोच्चि से लगभग 38 किलोमीटर दूर अरब सागर के किनारे मुनम्बम स्थित है। यहाँ 610 परिवारों रहते हैं, जिनमें 510 कैथोलिक ईसाई और 100 हिंदू परिवार हैं। इन लोगों कहना है कि इन लोगों ने फारूख कॉलेज के मैनेजमेंट से यह जमीन खरीदी थी। इसको लेकर वे पिछले 60 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं, साल 2019 में वक्फ ने इसे अपनी संपत्ति घोषित कर दी। साल 1902 तक जाती है विवाद की जड़ दरअसल, 1341 ईस्वी में केरल में भयानक बाढ़ आई। इस दौरान वाइपिन आईलैंड के ऊतरी हिस्से पर मुनम्बम बना। साल 1503 में पुर्तगालियों ने यहाँ हमला किया और 1663 में डचों ने इस पर कब्जा कर लिया। यह डचों के अधिकार में लंबे समय तक रहा। इसके बाद 1789 ईस्वी में डचों ने मुनम्बम को त्रावणकोर के महाराजा को बेच दिया। इसके बाद विवाद की शुरुआत होती है। साल 1902 में त्रावणकोर के महाराजा ने गुजरात से आए एक किसान अब्दुल सत्तार मूसा हाजी सैत को यहाँ की 404 एकड़ जमीन और 60 एकड़ जल क्षेत्र पट्टे पर दिया था। उस समय, यह जमीन मछुआरों के लिए अलग रखी गई थी, जो वहाँ कई वर्षों से रह रहे थे। 1948 में सेठ के उत्तराधिकारी एवं दामाद सिद्दीक सैत ने यह जमीन अपने नाम पर पंजीकृत करवा ली। इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा समुद्री कटाव के कारण खो गया और साल 1934 की भारी बारिश ने पांडरा समुद्र किनारे की जमीन को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। हालाँकि, सिद्दीक सैत द्वारा पंजीकृत जमीन में मछुआरों के रहने वाले इलाके भी शामिल हो गए। साल 1950 में सिद्दीक सैत ने यह जमीन फरूख कॉलेज को उपहार में दे दी, जो मुस्लिमों को शिक्षित करने के लिए 1948 में बनाया गया था। इसके साथ ही सिद्दीकी सैत ने शर्त रखी थी। शर्त यह थी कि कॉलेज केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए ही इसका उपयोग करेगा। अगर कभी कॉलेज बंद हो जाता है तो जमीन वापस सिद्दीकी सैत के वंशजों को लौटा दी जाएगी। हालाँकि, दस्तावेजों में गलती से या जानबूझकर ‘वक्फ’ शब्द लिख दिया गया, जिससे अब यह विवाद खड़ा हो गया है। कहा जाता है कि 1 नवंबर 1950 को कोच्चि के एडापल्ली में उप-पंजीयक कार्यालय में एक वक्फ पंजीकृत किया गया था। इसमें सैत ने फारूक कॉलेज के अध्यक्ष के पक्ष में पंजीकृत कराया था। विवाद की शुरुआत और आयोग का गठन फारूख कॉलेज के प्रबंधन को करीब एक दशक बाद जमीन का मालिकाना हक मिल गया। साल 1960 के दशक के आखिर में जमीन पर कब्जा करने वालों के बीच कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। कॉलेज प्रबंधन यहाँ रहने वाले लोगों को बेदखल करना चाहता था। कैथोलिक ईसाई और दलित हिंदू समुदाय के ये लोग पीढ़ियों से वहाँ रह रहे थे, लेकिन उनके पास स्वामित्व साबित करने के लिए कानूनी दस्तावेज नहीं थे। आखिरकार, अदालत के बाहर समझौते में कॉलेज प्रबंधन ने बाजार दर पर जमीन को अपने कब्जेदारों को बेचने का फैसला किया। दस्तावेजों से पता चलता है कि बिक्री के कामों में कॉलेज प्रबंधन ने यह उल्लेख नहीं किया कि विचाराधीन भूमि वक्फ संपत्ति थी, जिसे शिक्षा के उद्देश्य से कॉलेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को दिया गया था। इसके बजाय उन्होंने कहा कि यह संपत्ति 1950 में गिफ्ट डीड में मिली थी। निसार आयोग और नया विवाद: केरल राज्य वक्फ बोर्ड के खिलाफ कई शिकायतों मिलने के बाद वीएस अच्युतानंदन के नेतृत्व वाली सीपीआई (एम) सरकार ने 2008 में एक आयोग गठित किया। यह आयोग सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश एमए निसार के नेतृत्व में नियुक्त किया गया। आयोग का काम बोर्ड द्वारा परिसंपत्तियों के नुकसान के लिए जिम्मेदारी तय करना था। इसके अलावा, अयोग को इन परिसंपत्तियों की वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश करना भी शामिल था। आयोग ने साल 2009 में अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में आयोग ने मुनंबम में जमीन को वक्फ संपत्ति माना और कहा कि कॉलेज प्रबंधन ने बोर्ड की सहमति के बिना इसकी बिक्री को मंजूरी दे दी थी। इसने इसकी वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश की थी। वक्फ बोर्ड ने घोषित कर दी वक्फ संपत्ति: इसके बाद साल 2019 में वक्फ बोर्ड ने खुद ही मुनंबम भूमि को वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 और 41 के अनुसार वक्फ संपत्ति घोषित कर दी। बोर्ड ने राजस्व विभाग को निर्देश दिया कि वह भूमि के वर्तमान कब्जेदारों (जो कई वर्षों से कर का भुगतान कर रहे थे) से भूमि कर स्वीकार ना करे। राजस्व विभाग को दिए गए इस निर्देश को राज्य सरकार ने साल 2022 में खारिज कर दिया। इसके बाद बोर्ड ने राज्य सरकार के फैसले को केरल हाई कोर्ट में उसी साल चुनौती दी। न्यायालय ने फिलहाल राज्य सरकार के फैसलों पर रोक लगा दी है। वर्तमान में, इस विवाद को लेकर भूमि के कब्जेदारों के साथ-साथ वक्फ संरक्षण समिति की ओर से एक दर्जन से अधिक अपीलें न्यायालय में लंबित हैं।

वक्फ बिल पास होते ही केरल के 50 ईसाई BJP में हुए शामिल, PM मोदी से मिल आभार प्रकट करने की जताई इच्छा: मुनम्बम में इनकी 404 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड ने ठोका है दावा

लोकसभा के बाद राज्यसभा में वक्फ संशोधन बिल पास होने के बाद केरल के 50 ईसाई भाजपा में शामिल हो गए। ये सभी लोग केरल के मुनंबम के रहने वाले हैं। लगभग 404 एकड़ में फैला मुनंबम वही इलाका है, जिस पर वक्फ बोर्ड अपना दावा करता है। इस दावे की वजह से यहाँ रहने वाले 600 से अधिक ईसाई और हिंदू परिवारों पर ग्रहण लग गया है। वक्फ बिल पास होने से इन लोगों में खुशी है।

वक्फ (संशोधन) विधेयक पारित होने के बाद भाजपा की केरल इकाई के नेताओं ने मुनंबम का दौरा किया। वहाँ के लोगों ने भाजपा नेताओं का जोरदार स्वागत किया और 50 लोग पार्टी में शामिल हो गए। केरल के इस तटीय गाँव के लोग वक्फ बोर्ड के दावों के खिलाफ पिछले 174 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने वहाँ पहुँचकर प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की।

चंद्रशेखर ने उनसे कहा, “यह राज्य के राजनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन है। इस आंदोलन ने प्रधानमंत्री और संसद को वक्फ संशोधन विधेयक पारित करने की ताकत दी है। जब तक आपको जमीन पर राजस्व अधिकार वापस नहीं मिल जाते, हम आपके साथ हैं। मुनंबम के लोगों को उनके सांसदों और विधायकों ने धोखा दिया है, लेकिन उनकी आवाज संसद तक आखिरकार पहुँची।”

മോദി സർക്കാർ വഖഫ് ഭേദഗതി ബിൽ പാർലമെൻ്റിലെ ഇരു സഭകളിലും പാസാക്കിയതിന് പിന്നാലെ മുനമ്പം സന്ദർശിച്ച് ബിജെപി സംസ്ഥാന അധ്യക്ഷൻ ശ്രീ. രാജീവ് ചന്ദ്രശേഖർ. സമരപന്തലിൽ എത്തിയ അദ്ദേഹം സമരസമിതി നേതാക്കളുമായും ഫാ. ആൻ്റണി സേവിയറുമായും മധുരം പങ്കിടുകയും, സമരസമിതിക്ക് അഭിനന്ദനങ്ങൾ നേരുകയും… pic.twitter.com/MFaf1IKBsN— BJP KERALAM (@BJP4Keralam) April 4, 2025

इसके बाद 50 लोग भाजपा में शामिल हो गए। मुनंबम प्रदर्शनकारियों की कार्यसमिति के संयोजक जोसेफ बेनी ने बताया कि भाजपा में शामिल होने वाले सभी 50 लोग ईसाई हैं। वे पहले कॉन्ग्रेस और सीपीआई (एम) को वोट देते थे। ईसाई बहुल मुनंबम के लोगों को उम्मीद है कि वक्फ (संशोधन) विधेयक के पारित होने से वक्फ बोर्ड द्वारा उनकी भूमि पर किए दावों का समाधान निकालने में मदद मिलेगी।

इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने चंद्रशेखर से पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की व्यवस्था करने का अनुरोध किया, ताकि वे उनका आभार व्यक्त कर सकें। इस पर चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से बात करने का आश्वासन दिया है। आभार प्रकट करने के लिए मुनंबम विरोध समिति ने चंद्रशेखर को ‘ईसा मसीह के अंतिम भोज’ की एक तस्वीर भेंट की। वहीं, फादर एंटनी जेवियर ने मिठाई बाँटी।

इस बीच, कैथोलिक चर्च से जुड़े मलयालम दैनिक दीपिका ने कहा कि कॉन्ग्रेस और वामपंथी संघ परिवार को लेकर अल्पसंख्यकों में भय पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल, कैथोलिक चर्च ने कॉन्ग्रेस और वामपंथी से आग्रह किया था कि वे अपने सांसदों को वक्फ कानून में जनविरोधी धाराओं को हटाने के लिए लाए गए वक्फ संशोधन बिल के पक्ष में मतदान करने के लिए कहें।

हालाँकि, दोनों दलों ने चर्च की इस माँग को खारिज कर दिया था। कैथोलिक चर्च मुनंबम के लोगों के साथ खड़ा है। वहीं, ईसाई समुदाय के लोग वक्फ पारित होने के लिए चर्चों में प्रार्थना करते रहे। दरअसल, अधिकांश ईसाई परिवार वाले मुनंबम के लोगों का कहना है कि वे इस जगह पर पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं। इसके बावजूद वक्फ बोर्ड ने इस गाँव पर अपना दावा ठोका है।

क्या है मामला?

केरल वक्फ बोर्ड ने साल 2019 में दावा किया कि मुनम्बम, चेराई और पल्लिकाल द्वीप के इलाके वक्फ संपत्ति है। वक्फ बोर्ड का कहना है कि यह जमीन साल 1950 में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज की गई थी, जबकि यहाँ रहने वाले लोगों का दावा है कि उन्होंने इस जमीन को कानूनी रूप से दशकों पहले खरीदा था। उनकी पीढ़ियाँ यहाँ रहते आ रही हैं। इन लोगों के पास 1989 से जमीन के वैध कागजात हैं।

इन परिवारों का कहना है कि उन्होंने वैध तरीके से अपनी जमीन खरीदी है। अब वक्फ बोर्ड द्वारा किए गए दावे के बाद उन्हें इस जमीन को जबरन खाली करने के आदेश दिए जा रहे हैं। बता दें कि समुद्र तट पर बसा यह इलाका न केवल केरल के 600 से अधिक परिवारों का घर है, बल्कि यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। इसके बावजूद, वक्फ बोर्ड ने इस इलाके पर अपना दावा ठोक दिया।

केरल के एर्नाकुलम जिले में कोच्चि से लगभग 38 किलोमीटर दूर अरब सागर के किनारे मुनम्बम स्थित है। यहाँ 610 परिवारों रहते हैं, जिनमें 510 कैथोलिक ईसाई और 100 हिंदू परिवार हैं। इन लोगों कहना है कि इन लोगों ने फारूख कॉलेज के मैनेजमेंट से यह जमीन खरीदी थी। इसको लेकर वे पिछले 60 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं, साल 2019 में वक्फ ने इसे अपनी संपत्ति घोषित कर दी।

साल 1902 तक जाती है विवाद की जड़

दरअसल, 1341 ईस्वी में केरल में भयानक बाढ़ आई। इस दौरान वाइपिन आईलैंड के ऊतरी हिस्से पर मुनम्बम बना। साल 1503 में पुर्तगालियों ने यहाँ हमला किया और 1663 में डचों ने इस पर कब्जा कर लिया। यह डचों के अधिकार में लंबे समय तक रहा। इसके बाद 1789 ईस्वी में डचों ने मुनम्बम को त्रावणकोर के महाराजा को बेच दिया। इसके बाद विवाद की शुरुआत होती है।

साल 1902 में त्रावणकोर के महाराजा ने गुजरात से आए एक किसान अब्दुल सत्तार मूसा हाजी सैत को यहाँ की 404 एकड़ जमीन और 60 एकड़ जल क्षेत्र पट्टे पर दिया था। उस समय, यह जमीन मछुआरों के लिए अलग रखी गई थी, जो वहाँ कई वर्षों से रह रहे थे। 1948 में सेठ के उत्तराधिकारी एवं दामाद सिद्दीक सैत ने यह जमीन अपने नाम पर पंजीकृत करवा ली।

इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा समुद्री कटाव के कारण खो गया और साल 1934 की भारी बारिश ने पांडरा समुद्र किनारे की जमीन को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। हालाँकि, सिद्दीक सैत द्वारा पंजीकृत जमीन में मछुआरों के रहने वाले इलाके भी शामिल हो गए। साल 1950 में सिद्दीक सैत ने यह जमीन फरूख कॉलेज को उपहार में दे दी, जो मुस्लिमों को शिक्षित करने के लिए 1948 में बनाया गया था।

इसके साथ ही सिद्दीकी सैत ने शर्त रखी थी। शर्त यह थी कि कॉलेज केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए ही इसका उपयोग करेगा। अगर कभी कॉलेज बंद हो जाता है तो जमीन वापस सिद्दीकी सैत के वंशजों को लौटा दी जाएगी। हालाँकि, दस्तावेजों में गलती से या जानबूझकर ‘वक्फ’ शब्द लिख दिया गया, जिससे अब यह विवाद खड़ा हो गया है। कहा जाता है कि 1 नवंबर 1950 को कोच्चि के एडापल्ली में उप-पंजीयक कार्यालय में एक वक्फ पंजीकृत किया गया था। इसमें सैत ने फारूक कॉलेज के अध्यक्ष के पक्ष में पंजीकृत कराया था।

विवाद की शुरुआत और आयोग का गठन

फारूख कॉलेज के प्रबंधन को करीब एक दशक बाद जमीन का मालिकाना हक मिल गया। साल 1960 के दशक के आखिर में जमीन पर कब्जा करने वालों के बीच कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। कॉलेज प्रबंधन यहाँ रहने वाले लोगों को बेदखल करना चाहता था। कैथोलिक ईसाई और दलित हिंदू समुदाय के ये लोग पीढ़ियों से वहाँ रह रहे थे, लेकिन उनके पास स्वामित्व साबित करने के लिए कानूनी दस्तावेज नहीं थे।

आखिरकार, अदालत के बाहर समझौते में कॉलेज प्रबंधन ने बाजार दर पर जमीन को अपने कब्जेदारों को बेचने का फैसला किया। दस्तावेजों से पता चलता है कि बिक्री के कामों में कॉलेज प्रबंधन ने यह उल्लेख नहीं किया कि विचाराधीन भूमि वक्फ संपत्ति थी, जिसे शिक्षा के उद्देश्य से कॉलेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को दिया गया था। इसके बजाय उन्होंने कहा कि यह संपत्ति 1950 में गिफ्ट डीड में मिली थी।

निसार आयोग और नया विवाद: केरल राज्य वक्फ बोर्ड के खिलाफ कई शिकायतों मिलने के बाद वीएस अच्युतानंदन के नेतृत्व वाली सीपीआई (एम) सरकार ने 2008 में एक आयोग गठित किया। यह आयोग सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश एमए निसार के नेतृत्व में नियुक्त किया गया। आयोग का काम बोर्ड द्वारा परिसंपत्तियों के नुकसान के लिए जिम्मेदारी तय करना था।

इसके अलावा, अयोग को इन परिसंपत्तियों की वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश करना भी शामिल था। आयोग ने साल 2009 में अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में आयोग ने मुनंबम में जमीन को वक्फ संपत्ति माना और कहा कि कॉलेज प्रबंधन ने बोर्ड की सहमति के बिना इसकी बिक्री को मंजूरी दे दी थी। इसने इसकी वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश की थी।

वक्फ बोर्ड ने घोषित कर दी वक्फ संपत्ति: इसके बाद साल 2019 में वक्फ बोर्ड ने खुद ही मुनंबम भूमि को वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 और 41 के अनुसार वक्फ संपत्ति घोषित कर दी। बोर्ड ने राजस्व विभाग को निर्देश दिया कि वह भूमि के वर्तमान कब्जेदारों (जो कई वर्षों से कर का भुगतान कर रहे थे) से भूमि कर स्वीकार ना करे।

राजस्व विभाग को दिए गए इस निर्देश को राज्य सरकार ने साल 2022 में खारिज कर दिया। इसके बाद बोर्ड ने राज्य सरकार के फैसले को केरल हाई कोर्ट में उसी साल चुनौती दी। न्यायालय ने फिलहाल राज्य सरकार के फैसलों पर रोक लगा दी है। वर्तमान में, इस विवाद को लेकर भूमि के कब्जेदारों के साथ-साथ वक्फ संरक्षण समिति की ओर से एक दर्जन से अधिक अपीलें न्यायालय में लंबित हैं।

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