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जनजातियों को जगाने के लिए जमीन पर चंपई सोरेन का अभियान: बोले – संथाल परगना में 9% से 24% हो गए मुस्लिम, धर्मांतरण के बाद छीना जाए आरक्षण झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने संथाल परगना में लगातार जनजातीय की आबादी में आ रही कमी को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने इसका कारण धर्मांतरण बताया है। उन्होंने कहा कि अगर इसे नहीं रोका गया तो जनजातीय समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने मौजूदा प्रदेश सरकार द्वारा खुद को ‘अबुआ सरकार’ कहे जाने पर भी तंज कसा। दरअसल, रविवार (20 अप्रैल, 2025) को चाकुलिया शहर के टाउन में भारत जकात माझी परगना महाल एवं जनजातीय साँवता सुसार अखाड़ा के संयुक्त तत्वाधान में जनजातीय महासम्मेलन आयोजित किया गया। कार्यक्रम में शिरकत करने पहुँचे प्रदेश के पूर्व CM चंपई सोरेन ने जनजातीय समाज को जगाने की बात कही। उन्होंने कहा, “जागो आदिवासी जागो! चाकुलिया की धरती से मैं आदिवासियों को जगाने आया हूँ। हमें झारखंड में धर्म-परिवर्तन को हर हाल में रोकना होगा। वरना, यहाँ भी मुर्शिदाबाद जैसे हालात बन जाएँगे।” सोरेन ने कहा, “यदि धर्म-परिवर्तन नहीं रुका तो आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। झारखंड में सिर्फ नाम की अबुआ सरकार है। राँची, लोहरदगा, गुमला, साहिबगंज, पाकुड़ हर तरफ तेज़ी से धर्मांतरण हो रहा है। सरकार चुप्पी साधी हुई है। आदिवासियों की परंपरागत माँझी परगना महाल व्यवस्था खत्म हो रही है।” पूर्व सीएम ने कॉन्ग्रेस पर जनजातीय समाज के साथ हमेशा से धोखा करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “वर्ष 1967 में सबसे पहले कॉन्ग्रेस पार्टी के सांसद कार्तिक उराँव ने संसद में आदिवासी परंपरा को बचाने के लिए डिलिस्टिंग लागू करने की माँग की थी। लेकिन, तत्कालीन इंदिरा गाँधी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। कॉन्ग्रेस ने हमेशा आदिवासियों के साथ धोखा किया है। आज राज्य की सत्ता में वह भी साझेदार है। इसलिए यह सरकार कभी आदिवासियों का विकास नहीं कर सकी।” जनजातीय समाज की लड़कियों का आरक्षण रोकना जरूरी चंपई सोरेन ने कहा कि संथाल परगना की हालत ऐसी है कि वहाँ मुखिया एवं जिला परिषद जनजातीय महिलाएँ हैं पर उनके पति मुस्लिम है। ऐसा यदि होता रहा तो जनजातीय समाज की संख्या और घट जाएगी। इसलिए दूसरे समुदाय में विवाह करने वाली जनजातीय लड़कियों का आरक्षण रोकना जरूरी है। इसे लेकर संथाल परगना में जल्द ही लाखों की संख्या में जनजातियों को जुटाकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा। जनजातियों का इतिहास संघर्षों से भरा पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने कहा, “आदिवासियों का इतिहास संघर्ष से भरा हुआ है। बाबा तिलका माँझी से लेकर सिद्धू-कान्हू, चाँद भैरव, बिरसा मुंडा सबने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी। उसके बाद दिशोम गुरु शिबू सोरेन एवं मेरे नेतृत्व में झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ी गई।” उन्होंने ध्यान दिलाया कि आज धर्म-परिवर्तन के जरिए हमारे अस्तित्व एवं परंपरागत व्यवस्था पर चोट पहुँचाई जा रही है, इसके खिलाफ भी संघर्ष के लिए तैयार रहना है। जनजातियों का अधिकार छीन रही सरकार जनजातीय सम्मेलन में दिशोम तरफ परगना चंद्र मोहन मंडी ने कहा कि राज्य की वर्तमान सरकार जनजातीय समाज का अधिकार छीन रही है। सुप्रीम कोर्ट ने PESA Act के जरिए जो अधिकार हमें दिया है, उसका अनुपालन नहीं किया जा रहा। उन्होंने कहा कि जनजातियों पर अत्याचार एवं धर्मांतरण बढ़ता जा रहा है, राज्य की ‘अबुआ सरकार’ आदिवासियों को छलने का काम कर रही है। संथाल परगना में मुस्लिम आबादी बढ़ी चंपई सोरेन ने संथाल परगना में हो रहे धर्मांतरण और आदिवासियों की आबादी में कमी को लेकर चिंता जताई है। इस संबंध में झारखंड हाईकोर्ट ने भी मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकार से साल 2024 में माँगा था। दरअसल, हाईकोर्ट में बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर दानियल दास की ओर से जनहित याचिका दायर की गई थी। मामले में हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार पर प्रश्न उठाए। हाईकोर्ट ने सवाल पूछा था कि जब बांग्लादेशी घुसपैठ से इनकार किया जा रहा है तो भला जनजातीय जनसंख्या कैसे घट गई। हाईकोईट के पास पहुँचे आँकड़ों में इस संथाल परगना में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 1951 में 44.67% थी जो वर्ष 2011 में घट कर 28.11% तक आ गई। इसे दिनांक 8 अगस्त, 2024 के आदेश में नोट भी किया गया है। यानी कि जनजातीय आबादी में 16 फीसदी की कमी आई है। उस वक्त केंद्र ने जनजातीय आबादी के कम होने के पीछे दो कारण बताए थे, जिसमें पहला पलायन और दूसरा धर्मांतरण। अब धर्मांतरण के मुद्दे को ही चंपई सोरेन ने रेखांकित किया है। केंद्र ने ये भी बताया था कि जहाँ जनजातीय आबादी घटी है तो वहीं संथाल परगना में मुस्लिम आबादी 20 से 40 फीसदी तक बढ़ी है। 1951 से 2011 में हिंदू की आबादी में कमी बता दें कि केंद्र के अनुसार, 1951 की जनगणना में संथाल परगना की कुल जनसंख्या 23,22,092 थी, जिसमें हिंदू 90.37 प्रतिशत, मुस्लिम 9.43 प्रतिशत और ईसाई 0.18 प्रतिशत थे। वहीं, 2011 की जनगणना में संथाल परगना की कुल जनसंख्या 69,69,097 हो गई, जिसमें हिंदू 67.95 प्रतिशत रह गए, मुस्लिमों की संख्या 22.73 प्रतिशत हो गई और ईसाई 4.21 प्रतिशत हो गए।   Click to listen highlighted text! जनजातियों को जगाने के लिए जमीन पर चंपई सोरेन का अभियान: बोले – संथाल परगना में 9% से 24% हो गए मुस्लिम, धर्मांतरण के बाद छीना जाए आरक्षण झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने संथाल परगना में लगातार जनजातीय की आबादी में आ रही कमी को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने इसका कारण धर्मांतरण बताया है। उन्होंने कहा कि अगर इसे नहीं रोका गया तो जनजातीय समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने मौजूदा प्रदेश सरकार द्वारा खुद को ‘अबुआ सरकार’ कहे जाने पर भी तंज कसा। दरअसल, रविवार (20 अप्रैल, 2025) को चाकुलिया शहर के टाउन में भारत जकात माझी परगना महाल एवं जनजातीय साँवता सुसार अखाड़ा के संयुक्त तत्वाधान में जनजातीय महासम्मेलन आयोजित किया गया। कार्यक्रम में शिरकत करने पहुँचे प्रदेश के पूर्व CM चंपई सोरेन ने जनजातीय समाज को जगाने की बात कही। उन्होंने कहा, “जागो आदिवासी जागो! चाकुलिया की धरती से मैं आदिवासियों को जगाने आया हूँ। हमें झारखंड में धर्म-परिवर्तन को हर हाल में रोकना होगा। वरना, यहाँ भी मुर्शिदाबाद जैसे हालात बन जाएँगे।” सोरेन ने कहा, “यदि धर्म-परिवर्तन नहीं रुका तो आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। झारखंड में सिर्फ नाम की अबुआ सरकार है। राँची, लोहरदगा, गुमला, साहिबगंज, पाकुड़ हर तरफ तेज़ी से धर्मांतरण हो रहा है। सरकार चुप्पी साधी हुई है। आदिवासियों की परंपरागत माँझी परगना महाल व्यवस्था खत्म हो रही है।” पूर्व सीएम ने कॉन्ग्रेस पर जनजातीय समाज के साथ हमेशा से धोखा करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “वर्ष 1967 में सबसे पहले कॉन्ग्रेस पार्टी के सांसद कार्तिक उराँव ने संसद में आदिवासी परंपरा को बचाने के लिए डिलिस्टिंग लागू करने की माँग की थी। लेकिन, तत्कालीन इंदिरा गाँधी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। कॉन्ग्रेस ने हमेशा आदिवासियों के साथ धोखा किया है। आज राज्य की सत्ता में वह भी साझेदार है। इसलिए यह सरकार कभी आदिवासियों का विकास नहीं कर सकी।” जनजातीय समाज की लड़कियों का आरक्षण रोकना जरूरी चंपई सोरेन ने कहा कि संथाल परगना की हालत ऐसी है कि वहाँ मुखिया एवं जिला परिषद जनजातीय महिलाएँ हैं पर उनके पति मुस्लिम है। ऐसा यदि होता रहा तो जनजातीय समाज की संख्या और घट जाएगी। इसलिए दूसरे समुदाय में विवाह करने वाली जनजातीय लड़कियों का आरक्षण रोकना जरूरी है। इसे लेकर संथाल परगना में जल्द ही लाखों की संख्या में जनजातियों को जुटाकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा। जनजातियों का इतिहास संघर्षों से भरा पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने कहा, “आदिवासियों का इतिहास संघर्ष से भरा हुआ है। बाबा तिलका माँझी से लेकर सिद्धू-कान्हू, चाँद भैरव, बिरसा मुंडा सबने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी। उसके बाद दिशोम गुरु शिबू सोरेन एवं मेरे नेतृत्व में झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ी गई।” उन्होंने ध्यान दिलाया कि आज धर्म-परिवर्तन के जरिए हमारे अस्तित्व एवं परंपरागत व्यवस्था पर चोट पहुँचाई जा रही है, इसके खिलाफ भी संघर्ष के लिए तैयार रहना है। जनजातियों का अधिकार छीन रही सरकार जनजातीय सम्मेलन में दिशोम तरफ परगना चंद्र मोहन मंडी ने कहा कि राज्य की वर्तमान सरकार जनजातीय समाज का अधिकार छीन रही है। सुप्रीम कोर्ट ने PESA Act के जरिए जो अधिकार हमें दिया है, उसका अनुपालन नहीं किया जा रहा। उन्होंने कहा कि जनजातियों पर अत्याचार एवं धर्मांतरण बढ़ता जा रहा है, राज्य की ‘अबुआ सरकार’ आदिवासियों को छलने का काम कर रही है। संथाल परगना में मुस्लिम आबादी बढ़ी चंपई सोरेन ने संथाल परगना में हो रहे धर्मांतरण और आदिवासियों की आबादी में कमी को लेकर चिंता जताई है। इस संबंध में झारखंड हाईकोर्ट ने भी मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकार से साल 2024 में माँगा था। दरअसल, हाईकोर्ट में बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर दानियल दास की ओर से जनहित याचिका दायर की गई थी। मामले में हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार पर प्रश्न उठाए। हाईकोर्ट ने सवाल पूछा था कि जब बांग्लादेशी घुसपैठ से इनकार किया जा रहा है तो भला जनजातीय जनसंख्या कैसे घट गई। हाईकोईट के पास पहुँचे आँकड़ों में इस संथाल परगना में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 1951 में 44.67% थी जो वर्ष 2011 में घट कर 28.11% तक आ गई। इसे दिनांक 8 अगस्त, 2024 के आदेश में नोट भी किया गया है। यानी कि जनजातीय आबादी में 16 फीसदी की कमी आई है। उस वक्त केंद्र ने जनजातीय आबादी के कम होने के पीछे दो कारण बताए थे, जिसमें पहला पलायन और दूसरा धर्मांतरण। अब धर्मांतरण के मुद्दे को ही चंपई सोरेन ने रेखांकित किया है। केंद्र ने ये भी बताया था कि जहाँ जनजातीय आबादी घटी है तो वहीं संथाल परगना में मुस्लिम आबादी 20 से 40 फीसदी तक बढ़ी है। 1951 से 2011 में हिंदू की आबादी में कमी बता दें कि केंद्र के अनुसार, 1951 की जनगणना में संथाल परगना की कुल जनसंख्या 23,22,092 थी, जिसमें हिंदू 90.37 प्रतिशत, मुस्लिम 9.43 प्रतिशत और ईसाई 0.18 प्रतिशत थे। वहीं, 2011 की जनगणना में संथाल परगना की कुल जनसंख्या 69,69,097 हो गई, जिसमें हिंदू 67.95 प्रतिशत रह गए, मुस्लिमों की संख्या 22.73 प्रतिशत हो गई और ईसाई 4.21 प्रतिशत हो गए।

जनजातियों को जगाने के लिए जमीन पर चंपई सोरेन का अभियान: बोले – संथाल परगना में 9% से 24% हो गए मुस्लिम, धर्मांतरण के बाद छीना जाए आरक्षण

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने संथाल परगना में लगातार जनजातीय की आबादी में आ रही कमी को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने इसका कारण धर्मांतरण बताया है। उन्होंने कहा कि अगर इसे नहीं रोका गया तो जनजातीय समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने मौजूदा प्रदेश सरकार द्वारा खुद को ‘अबुआ सरकार’ कहे जाने पर भी तंज कसा।

दरअसल, रविवार (20 अप्रैल, 2025) को चाकुलिया शहर के टाउन में भारत जकात माझी परगना महाल एवं जनजातीय साँवता सुसार अखाड़ा के संयुक्त तत्वाधान में जनजातीय महासम्मेलन आयोजित किया गया। कार्यक्रम में शिरकत करने पहुँचे प्रदेश के पूर्व CM चंपई सोरेन ने जनजातीय समाज को जगाने की बात कही।

उन्होंने कहा, “जागो आदिवासी जागो! चाकुलिया की धरती से मैं आदिवासियों को जगाने आया हूँ। हमें झारखंड में धर्म-परिवर्तन को हर हाल में रोकना होगा। वरना, यहाँ भी मुर्शिदाबाद जैसे हालात बन जाएँगे।”

सोरेन ने कहा, “यदि धर्म-परिवर्तन नहीं रुका तो आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। झारखंड में सिर्फ नाम की अबुआ सरकार है। राँची, लोहरदगा, गुमला, साहिबगंज, पाकुड़ हर तरफ तेज़ी से धर्मांतरण हो रहा है। सरकार चुप्पी साधी हुई है। आदिवासियों की परंपरागत माँझी परगना महाल व्यवस्था खत्म हो रही है।”

पूर्व सीएम ने कॉन्ग्रेस पर जनजातीय समाज के साथ हमेशा से धोखा करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “वर्ष 1967 में सबसे पहले कॉन्ग्रेस पार्टी के सांसद कार्तिक उराँव ने संसद में आदिवासी परंपरा को बचाने के लिए डिलिस्टिंग लागू करने की माँग की थी। लेकिन, तत्कालीन इंदिरा गाँधी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। कॉन्ग्रेस ने हमेशा आदिवासियों के साथ धोखा किया है। आज राज्य की सत्ता में वह भी साझेदार है। इसलिए यह सरकार कभी आदिवासियों का विकास नहीं कर सकी।”

जनजातीय समाज की लड़कियों का आरक्षण रोकना जरूरी

चंपई सोरेन ने कहा कि संथाल परगना की हालत ऐसी है कि वहाँ मुखिया एवं जिला परिषद जनजातीय महिलाएँ हैं पर उनके पति मुस्लिम है। ऐसा यदि होता रहा तो जनजातीय समाज की संख्या और घट जाएगी। इसलिए दूसरे समुदाय में विवाह करने वाली जनजातीय लड़कियों का आरक्षण रोकना जरूरी है। इसे लेकर संथाल परगना में जल्द ही लाखों की संख्या में जनजातियों को जुटाकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा।

जनजातियों का इतिहास संघर्षों से भरा

पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने कहा, “आदिवासियों का इतिहास संघर्ष से भरा हुआ है। बाबा तिलका माँझी से लेकर सिद्धू-कान्हू, चाँद भैरव, बिरसा मुंडा सबने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी। उसके बाद दिशोम गुरु शिबू सोरेन एवं मेरे नेतृत्व में झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ी गई।”

उन्होंने ध्यान दिलाया कि आज धर्म-परिवर्तन के जरिए हमारे अस्तित्व एवं परंपरागत व्यवस्था पर चोट पहुँचाई जा रही है, इसके खिलाफ भी संघर्ष के लिए तैयार रहना है।

जनजातियों का अधिकार छीन रही सरकार

जनजातीय सम्मेलन में दिशोम तरफ परगना चंद्र मोहन मंडी ने कहा कि राज्य की वर्तमान सरकार जनजातीय समाज का अधिकार छीन रही है। सुप्रीम कोर्ट ने PESA Act के जरिए जो अधिकार हमें दिया है, उसका अनुपालन नहीं किया जा रहा। उन्होंने कहा कि जनजातियों पर अत्याचार एवं धर्मांतरण बढ़ता जा रहा है, राज्य की ‘अबुआ सरकार’ आदिवासियों को छलने का काम कर रही है।

संथाल परगना में मुस्लिम आबादी बढ़ी

चंपई सोरेन ने संथाल परगना में हो रहे धर्मांतरण और आदिवासियों की आबादी में कमी को लेकर चिंता जताई है। इस संबंध में झारखंड हाईकोर्ट ने भी मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकार से साल 2024 में माँगा था। दरअसल, हाईकोर्ट में बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर दानियल दास की ओर से जनहित याचिका दायर की गई थी। मामले में हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार पर प्रश्न उठाए। हाईकोर्ट ने सवाल पूछा था कि जब बांग्लादेशी घुसपैठ से इनकार किया जा रहा है तो भला जनजातीय जनसंख्या कैसे घट गई।

हाईकोईट के पास पहुँचे आँकड़ों में इस संथाल परगना में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 1951 में 44.67% थी जो वर्ष 2011 में घट कर 28.11% तक आ गई। इसे दिनांक 8 अगस्त, 2024 के आदेश में नोट भी किया गया है। यानी कि जनजातीय आबादी में 16 फीसदी की कमी आई है।

उस वक्त केंद्र ने जनजातीय आबादी के कम होने के पीछे दो कारण बताए थे, जिसमें पहला पलायन और दूसरा धर्मांतरण। अब धर्मांतरण के मुद्दे को ही चंपई सोरेन ने रेखांकित किया है। केंद्र ने ये भी बताया था कि जहाँ जनजातीय आबादी घटी है तो वहीं संथाल परगना में मुस्लिम आबादी 20 से 40 फीसदी तक बढ़ी है।

1951 से 2011 में हिंदू की आबादी में कमी

बता दें कि केंद्र के अनुसार, 1951 की जनगणना में संथाल परगना की कुल जनसंख्या 23,22,092 थी, जिसमें हिंदू 90.37 प्रतिशत, मुस्लिम 9.43 प्रतिशत और ईसाई 0.18 प्रतिशत थे। वहीं, 2011 की जनगणना में संथाल परगना की कुल जनसंख्या 69,69,097 हो गई, जिसमें हिंदू 67.95 प्रतिशत रह गए, मुस्लिमों की संख्या 22.73 प्रतिशत हो गई और ईसाई 4.21 प्रतिशत हो गए।

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