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संभल में जिन्होंने बनवाई ‘रानी की बावड़ी’, बाबर से लड़े थे उनके पुरखे: मंदिर तक जाती थी सुरंग, जानिए किनके कारण सामने आया जमीन में दफन इतिहास संभल के चंदौसी में खुदाई में मिली गहरी बावड़ी का कनेक्शन उस राजपरिवार है जिसने बाबर से लड़ाई लड़ी थी। इस बावड़ी के सर्वे के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम भी पहुँच गई है। बावड़ी में अब तक कई गलियारे और सुरंगे मिल चुकी हैं। यह बावड़ी कैसे जमीन में दब गई, इसकी भी जानकारी सामने आई है। बावड़ी की खुदाई लगातार जारी है और संभल का प्रशासन इसकी अधिक जानकारियाँ सामने लाने में जुटा है। कैसे मिली बावड़ी, क्यों हुई खुदाई? यह बावड़ी चंदौसी के लक्ष्मणपुर मोहल्ले में मिली है। यह मोहल्ला मुस्लिम बहुल है। यहाँ पर बावड़ी वाला इलाकों चारों तरफ से मकानों से घिरा हुआ है। हालाँकि, बावड़ी की जमीन खाली थी और कूड़े वगैरह से पटी हुई थी। इसकी खुदाई की शुरुआत कौशल किशोर की शिकायत पर चालू की गई है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिंदूवादी कार्यकार्ता कौशल किशोर ने हाल ही में बावड़ी पर अतिक्रमण को लेकर जिले के अधिकारियों को शिकायत की। कौशल किशोर ने बताया कि उन्हें जानकारी थी कि यह बावड़ी 150 वर्ष पुरानी है। प्रशासन ने इसके बाद एक टीम भेजी और अतिक्रमण को लेकर खुदाई चालू कर करवाई। इसमें बावड़ी के शुरूआती अंश मिले। इसके बाद और भी मजदूर बुला कर ढंग से इस पर काम करना चालू किया गया। स्पष्ट हुआ कि शिकायत में जो बावड़ी की बताई गई थी, वह सही थी और इसकी अधिक खुदाई पर पूरा ढांचा सामने आएगा, जिससे सब कुछ समझने में आसानी रहेगी। कैसी है बावड़ी? चंदौसी की यह बावड़ी संभवतः 30 फीट गहरी है। इसमें अभी खुदाई लगभग 14-15 फीट तक ही हुई है। बावड़ी तीन मंजिल की है। डीएम का कहना है कि इसमें दो मंजिल ईंटो जबकि एक मंजिल पत्थर की है। ऊपर के दो मंजिल में कमरे हैं जबकि सबसे नीचे वाली मंजिल पानी से जुड़ी हुई थी। बावड़ी में जमीन से अंदर उतरने के लिए सीढियाँ बनी हुई है। यह पक्के लाल पत्थर की हैं। बावड़ी में दो कमरे भी बने हुए हैं। इनमें जाने के लिए छोटे छोटे दरवाजे भी हैं। बावड़ी के भीतर 5 गलियारे मिले हैं। बताया गया है कि यह गलियारे बावड़ी में चारों तरफ हैं। बावड़ी में सबसे निचले तल पर एक कुआँ था। यहाँ एक कमरे में सुरंग भी मिली है। इस सुरंग का रास्ता कुछ दूर बने एक राधाकृष्ण मंदिर तक जाता है, ऐसे लोगों ने दावा किया है। इस बावड़ी का इस्तेमाल सैनिक, आसपास के लोग और खेती के लिए होता था, यह आसपास के लोगों ने बताया है। जो इसी इलाके रहने वाले हैं, उन्होंने बताया है कि वह कुछ दशक पहले यहाँ घूमते टहलते थे लेकिन तब यही पूरी तरह से जमीन में दबी नहीं थी। किसने बनवाई, कौन है मालिक? इस बावड़ी को सहसपुर के राजपरिवार ने बनवाया था। सहसपुर का यह राजपरिवार मुरादाबाद, बिजनौर, संभल और बदायूँ जैसे इलाकों में बड़े इलाके का मालिक था। यहाँ इनका राज बाबर के पहले का है। भारतीय राजपरिवारों के बारे में बताने वाली एक वेबसाइट के अनुसार, यहाँ के राजा ने बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा था। लेकिन इसमें हार के बाद वह पंजाब चले गए थे। वह औरंगजेब के काल में लौटे और अपना राज वापस कायम किया। इसी के अनुसार, इसी राजपरिवार के राजा प्रद्युमन कृष्ण सिंह ने 1857 के संग्राम में अंग्रेजों की मदद की, जिसका इनाम भी उन्हें मिला। यह राजा 1839 से 1880 तक यहाँ राज कर रहे थे। संभवतः, इन्हीं के दौर में यह बावड़ी बनी होगी। इनके ही वंश में राजा जगत सिंह हुए। उनकी पत्नी प्रीतम कँवर थीं। प्रीतम कँवर की 1982 में मौत हो गई थी। इससे पहले उन्होंने अपनी बहू सुरेन्द्र बाला को इस बावड़ी समेत तमाम सम्पत्तियाँ दी थी। सुरेन्द्रबाला की पोती शिप्रा गैरा अब यहाँ आई हैं। शिप्रा गैरा ने भास्कर को बताया है कि 1995 तक वह चंदौसी की इस बावड़ी में आती थीं। शिप्रा गैरा उन रानी सुरेन्द्रबाला की पोती हैं, जिनके पास इस बावड़ी का मालिकाना हक़ हुआ करता था। उन्होंने अपने गोद लिए हुए बेटे विष्णु कुमार को इस बावड़ी समेत तमाम जमीनें दी थी। शिप्रा गैरा ने बताया कि वह जब आती थीं तब यहाँ एक बाग़ हुआ करता था और कुआँ भी चलताऊ हालत में था। सुरेन्द्रबाला के पोते ने भी इस संबंध में जानकारी दी है। उन्होंने कहा है कि उनकी दादी ने अपने बेटे के बजाय गोद लिए हुए बेटे को इसका मालिकाना हक़ दिया था। #WATCH | Sambhal, UP | The Archaeological Survey of India (ASI) team inspects an age-old stepwell found in the Lakshman Ganj area during excavation work. pic.twitter.com/nBUZ7TrLUa— ANI (@ANI) December 25, 2024 ASI की टीम पहुँची नगर पालिका टीम ने इस बावड़ी की खुदाई काफी सावधानी से करवाई है। यहाँ पर मशीनों की बजाय नगरपालिका के मजदूरों को लगाया गया है। वह हाथों से खुदाई कर रहे हैं। बावड़ी की खुदाई का काम पाँचवे दिन बुधवार (25 दिसम्बर, 2024) को भी जारी था। यहाँ पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की भी एक टीम पहुँची है। उसने खुदाई के काम को देखा है और बावड़ी का निरीक्षण किया है। ASI ने इस बावड़ी के फोटो-वीडियो भी बनाए हैं। यहाँ पर मांग हो रही कि बाकी मंदिरों का भी पता लगाया जाए।   Click to listen highlighted text! संभल में जिन्होंने बनवाई ‘रानी की बावड़ी’, बाबर से लड़े थे उनके पुरखे: मंदिर तक जाती थी सुरंग, जानिए किनके कारण सामने आया जमीन में दफन इतिहास संभल के चंदौसी में खुदाई में मिली गहरी बावड़ी का कनेक्शन उस राजपरिवार है जिसने बाबर से लड़ाई लड़ी थी। इस बावड़ी के सर्वे के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम भी पहुँच गई है। बावड़ी में अब तक कई गलियारे और सुरंगे मिल चुकी हैं। यह बावड़ी कैसे जमीन में दब गई, इसकी भी जानकारी सामने आई है। बावड़ी की खुदाई लगातार जारी है और संभल का प्रशासन इसकी अधिक जानकारियाँ सामने लाने में जुटा है। कैसे मिली बावड़ी, क्यों हुई खुदाई? यह बावड़ी चंदौसी के लक्ष्मणपुर मोहल्ले में मिली है। यह मोहल्ला मुस्लिम बहुल है। यहाँ पर बावड़ी वाला इलाकों चारों तरफ से मकानों से घिरा हुआ है। हालाँकि, बावड़ी की जमीन खाली थी और कूड़े वगैरह से पटी हुई थी। इसकी खुदाई की शुरुआत कौशल किशोर की शिकायत पर चालू की गई है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिंदूवादी कार्यकार्ता कौशल किशोर ने हाल ही में बावड़ी पर अतिक्रमण को लेकर जिले के अधिकारियों को शिकायत की। कौशल किशोर ने बताया कि उन्हें जानकारी थी कि यह बावड़ी 150 वर्ष पुरानी है। प्रशासन ने इसके बाद एक टीम भेजी और अतिक्रमण को लेकर खुदाई चालू कर करवाई। इसमें बावड़ी के शुरूआती अंश मिले। इसके बाद और भी मजदूर बुला कर ढंग से इस पर काम करना चालू किया गया। स्पष्ट हुआ कि शिकायत में जो बावड़ी की बताई गई थी, वह सही थी और इसकी अधिक खुदाई पर पूरा ढांचा सामने आएगा, जिससे सब कुछ समझने में आसानी रहेगी। कैसी है बावड़ी? चंदौसी की यह बावड़ी संभवतः 30 फीट गहरी है। इसमें अभी खुदाई लगभग 14-15 फीट तक ही हुई है। बावड़ी तीन मंजिल की है। डीएम का कहना है कि इसमें दो मंजिल ईंटो जबकि एक मंजिल पत्थर की है। ऊपर के दो मंजिल में कमरे हैं जबकि सबसे नीचे वाली मंजिल पानी से जुड़ी हुई थी। बावड़ी में जमीन से अंदर उतरने के लिए सीढियाँ बनी हुई है। यह पक्के लाल पत्थर की हैं। बावड़ी में दो कमरे भी बने हुए हैं। इनमें जाने के लिए छोटे छोटे दरवाजे भी हैं। बावड़ी के भीतर 5 गलियारे मिले हैं। बताया गया है कि यह गलियारे बावड़ी में चारों तरफ हैं। बावड़ी में सबसे निचले तल पर एक कुआँ था। यहाँ एक कमरे में सुरंग भी मिली है। इस सुरंग का रास्ता कुछ दूर बने एक राधाकृष्ण मंदिर तक जाता है, ऐसे लोगों ने दावा किया है। इस बावड़ी का इस्तेमाल सैनिक, आसपास के लोग और खेती के लिए होता था, यह आसपास के लोगों ने बताया है। जो इसी इलाके रहने वाले हैं, उन्होंने बताया है कि वह कुछ दशक पहले यहाँ घूमते टहलते थे लेकिन तब यही पूरी तरह से जमीन में दबी नहीं थी। किसने बनवाई, कौन है मालिक? इस बावड़ी को सहसपुर के राजपरिवार ने बनवाया था। सहसपुर का यह राजपरिवार मुरादाबाद, बिजनौर, संभल और बदायूँ जैसे इलाकों में बड़े इलाके का मालिक था। यहाँ इनका राज बाबर के पहले का है। भारतीय राजपरिवारों के बारे में बताने वाली एक वेबसाइट के अनुसार, यहाँ के राजा ने बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा था। लेकिन इसमें हार के बाद वह पंजाब चले गए थे। वह औरंगजेब के काल में लौटे और अपना राज वापस कायम किया। इसी के अनुसार, इसी राजपरिवार के राजा प्रद्युमन कृष्ण सिंह ने 1857 के संग्राम में अंग्रेजों की मदद की, जिसका इनाम भी उन्हें मिला। यह राजा 1839 से 1880 तक यहाँ राज कर रहे थे। संभवतः, इन्हीं के दौर में यह बावड़ी बनी होगी। इनके ही वंश में राजा जगत सिंह हुए। उनकी पत्नी प्रीतम कँवर थीं। प्रीतम कँवर की 1982 में मौत हो गई थी। इससे पहले उन्होंने अपनी बहू सुरेन्द्र बाला को इस बावड़ी समेत तमाम सम्पत्तियाँ दी थी। सुरेन्द्रबाला की पोती शिप्रा गैरा अब यहाँ आई हैं। शिप्रा गैरा ने भास्कर को बताया है कि 1995 तक वह चंदौसी की इस बावड़ी में आती थीं। शिप्रा गैरा उन रानी सुरेन्द्रबाला की पोती हैं, जिनके पास इस बावड़ी का मालिकाना हक़ हुआ करता था। उन्होंने अपने गोद लिए हुए बेटे विष्णु कुमार को इस बावड़ी समेत तमाम जमीनें दी थी। शिप्रा गैरा ने बताया कि वह जब आती थीं तब यहाँ एक बाग़ हुआ करता था और कुआँ भी चलताऊ हालत में था। सुरेन्द्रबाला के पोते ने भी इस संबंध में जानकारी दी है। उन्होंने कहा है कि उनकी दादी ने अपने बेटे के बजाय गोद लिए हुए बेटे को इसका मालिकाना हक़ दिया था। #WATCH | Sambhal, UP | The Archaeological Survey of India (ASI) team inspects an age-old stepwell found in the Lakshman Ganj area during excavation work. pic.twitter.com/nBUZ7TrLUa— ANI (@ANI) December 25, 2024 ASI की टीम पहुँची नगर पालिका टीम ने इस बावड़ी की खुदाई काफी सावधानी से करवाई है। यहाँ पर मशीनों की बजाय नगरपालिका के मजदूरों को लगाया गया है। वह हाथों से खुदाई कर रहे हैं। बावड़ी की खुदाई का काम पाँचवे दिन बुधवार (25 दिसम्बर, 2024) को भी जारी था। यहाँ पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की भी एक टीम पहुँची है। उसने खुदाई के काम को देखा है और बावड़ी का निरीक्षण किया है। ASI ने इस बावड़ी के फोटो-वीडियो भी बनाए हैं। यहाँ पर मांग हो रही कि बाकी मंदिरों का भी पता लगाया जाए।

संभल में जिन्होंने बनवाई ‘रानी की बावड़ी’, बाबर से लड़े थे उनके पुरखे: मंदिर तक जाती थी सुरंग, जानिए किनके कारण सामने आया जमीन में दफन इतिहास

संभल के चंदौसी में खुदाई में मिली गहरी बावड़ी का कनेक्शन उस राजपरिवार है जिसने बाबर से लड़ाई लड़ी थी। इस बावड़ी के सर्वे के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम भी पहुँच गई है। बावड़ी में अब तक कई गलियारे और सुरंगे मिल चुकी हैं। यह बावड़ी कैसे जमीन में दब गई, इसकी भी जानकारी सामने आई है। बावड़ी की खुदाई लगातार जारी है और संभल का प्रशासन इसकी अधिक जानकारियाँ सामने लाने में जुटा है।

कैसे मिली बावड़ी, क्यों हुई खुदाई?

यह बावड़ी चंदौसी के लक्ष्मणपुर मोहल्ले में मिली है। यह मोहल्ला मुस्लिम बहुल है। यहाँ पर बावड़ी वाला इलाकों चारों तरफ से मकानों से घिरा हुआ है। हालाँकि, बावड़ी की जमीन खाली थी और कूड़े वगैरह से पटी हुई थी। इसकी खुदाई की शुरुआत कौशल किशोर की शिकायत पर चालू की गई है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिंदूवादी कार्यकार्ता कौशल किशोर ने हाल ही में बावड़ी पर अतिक्रमण को लेकर जिले के अधिकारियों को शिकायत की। कौशल किशोर ने बताया कि उन्हें जानकारी थी कि यह बावड़ी 150 वर्ष पुरानी है।

प्रशासन ने इसके बाद एक टीम भेजी और अतिक्रमण को लेकर खुदाई चालू कर करवाई। इसमें बावड़ी के शुरूआती अंश मिले। इसके बाद और भी मजदूर बुला कर ढंग से इस पर काम करना चालू किया गया। स्पष्ट हुआ कि शिकायत में जो बावड़ी की बताई गई थी, वह सही थी और इसकी अधिक खुदाई पर पूरा ढांचा सामने आएगा, जिससे सब कुछ समझने में आसानी रहेगी।

कैसी है बावड़ी?

चंदौसी की यह बावड़ी संभवतः 30 फीट गहरी है। इसमें अभी खुदाई लगभग 14-15 फीट तक ही हुई है। बावड़ी तीन मंजिल की है। डीएम का कहना है कि इसमें दो मंजिल ईंटो जबकि एक मंजिल पत्थर की है। ऊपर के दो मंजिल में कमरे हैं जबकि सबसे नीचे वाली मंजिल पानी से जुड़ी हुई थी। बावड़ी में जमीन से अंदर उतरने के लिए सीढियाँ बनी हुई है। यह पक्के लाल पत्थर की हैं। बावड़ी में दो कमरे भी बने हुए हैं। इनमें जाने के लिए छोटे छोटे दरवाजे भी हैं। बावड़ी के भीतर 5 गलियारे मिले हैं। बताया गया है कि यह गलियारे बावड़ी में चारों तरफ हैं।

बावड़ी में सबसे निचले तल पर एक कुआँ था। यहाँ एक कमरे में सुरंग भी मिली है। इस सुरंग का रास्ता कुछ दूर बने एक राधाकृष्ण मंदिर तक जाता है, ऐसे लोगों ने दावा किया है। इस बावड़ी का इस्तेमाल सैनिक, आसपास के लोग और खेती के लिए होता था, यह आसपास के लोगों ने बताया है। जो इसी इलाके रहने वाले हैं, उन्होंने बताया है कि वह कुछ दशक पहले यहाँ घूमते टहलते थे लेकिन तब यही पूरी तरह से जमीन में दबी नहीं थी।

किसने बनवाई, कौन है मालिक?

इस बावड़ी को सहसपुर के राजपरिवार ने बनवाया था। सहसपुर का यह राजपरिवार मुरादाबाद, बिजनौर, संभल और बदायूँ जैसे इलाकों में बड़े इलाके का मालिक था। यहाँ इनका राज बाबर के पहले का है। भारतीय राजपरिवारों के बारे में बताने वाली एक वेबसाइट के अनुसार, यहाँ के राजा ने बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा था। लेकिन इसमें हार के बाद वह पंजाब चले गए थे। वह औरंगजेब के काल में लौटे और अपना राज वापस कायम किया।

इसी के अनुसार, इसी राजपरिवार के राजा प्रद्युमन कृष्ण सिंह ने 1857 के संग्राम में अंग्रेजों की मदद की, जिसका इनाम भी उन्हें मिला। यह राजा 1839 से 1880 तक यहाँ राज कर रहे थे। संभवतः, इन्हीं के दौर में यह बावड़ी बनी होगी। इनके ही वंश में राजा जगत सिंह हुए। उनकी पत्नी प्रीतम कँवर थीं। प्रीतम कँवर की 1982 में मौत हो गई थी। इससे पहले उन्होंने अपनी बहू सुरेन्द्र बाला को इस बावड़ी समेत तमाम सम्पत्तियाँ दी थी। सुरेन्द्रबाला की पोती शिप्रा गैरा अब यहाँ आई हैं।

शिप्रा गैरा ने भास्कर को बताया है कि 1995 तक वह चंदौसी की इस बावड़ी में आती थीं। शिप्रा गैरा उन रानी सुरेन्द्रबाला की पोती हैं, जिनके पास इस बावड़ी का मालिकाना हक़ हुआ करता था। उन्होंने अपने गोद लिए हुए बेटे विष्णु कुमार को इस बावड़ी समेत तमाम जमीनें दी थी। शिप्रा गैरा ने बताया कि वह जब आती थीं तब यहाँ एक बाग़ हुआ करता था और कुआँ भी चलताऊ हालत में था। सुरेन्द्रबाला के पोते ने भी इस संबंध में जानकारी दी है। उन्होंने कहा है कि उनकी दादी ने अपने बेटे के बजाय गोद लिए हुए बेटे को इसका मालिकाना हक़ दिया था।

#WATCH | Sambhal, UP | The Archaeological Survey of India (ASI) team inspects an age-old stepwell found in the Lakshman Ganj area during excavation work. pic.twitter.com/nBUZ7TrLUa— ANI (@ANI) December 25, 2024

ASI की टीम पहुँची

नगर पालिका टीम ने इस बावड़ी की खुदाई काफी सावधानी से करवाई है। यहाँ पर मशीनों की बजाय नगरपालिका के मजदूरों को लगाया गया है। वह हाथों से खुदाई कर रहे हैं। बावड़ी की खुदाई का काम पाँचवे दिन बुधवार (25 दिसम्बर, 2024) को भी जारी था। यहाँ पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की भी एक टीम पहुँची है। उसने खुदाई के काम को देखा है और बावड़ी का निरीक्षण किया है। ASI ने इस बावड़ी के फोटो-वीडियो भी बनाए हैं। यहाँ पर मांग हो रही कि बाकी मंदिरों का भी पता लगाया जाए।

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