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सादे लिबास में आते हैं, उठाकर ले जाते हैं, फिर मिलता है क्षत-विक्षत शव… बलूचिस्तान में पाकिस्तान की ‘Kill & Dump’ नीति, बच्चों से लेकर पत्रकार तक निशाना पिछले कुछ महीनों के दौरान बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ क्रांति का नए सिरे से उभार देखने को मिला है। बलूच महिलाओं और युवाओं ने पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ इस विद्रोह की मशाल थाम रखी है। आइए, जानते हैं कि इसका कारण क्या है। इसके मूल में पाकिस्तानी एजेंसियों की उस कुख्यात ‘किल एंड डंप’ यानी ‘हत्या करके ठिकाने लगाने’ वाली नीति की वापसी है। पाकिस्तान ने पहली बार यह नीति 2009 में अपनाई थी, जिसका मकसद बलूचिस्तान के लोगों की आवाज का दमन करना था। यह क्रूर रणनीति निशाना बना कर हत्या और अपहरण के जरिए असहमति एवं विरोध के स्वरों को दबाने पर केंद्रित रही। इस नीति के अमल में आने के बाद से हजारों लोग मारे गए और तमाम गायब हो गए। ‘बलूच वुमन फोरम’ (BWF) ने हाल में इस कुख्यात ‘Kill & Dump’ पॉलिसी की कड़ी निंदा की है। संगठन ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों को लेकर पाकिस्तानी सरकार की प्रतिबद्धता को लेकर गहरा संदेह भी जताया है। Reimplementation of “Kill and Dump” policy in Balochistan is a question on the face of state’s human rights stance:Central SpokespersonBaloch Women Forum (BWF)The reimplementation of former “Kill and Dump” policy by state authorities in Balochistan is a question on the face… pic.twitter.com/OcYZoiiRyl— Baloch Women Forum (@BalochWF) April 17, 2025 BWF की प्रवक्ता ने एक बयान जारी करके कहा कि ये घटनाक्रम बलूच लोगों को व्यवस्था से अलग-थलग करने की सोच को प्रदर्शित कर रहा है। प्रवक्ता ने आगे कहा कि विगत 3 दिनों में अवैध रूप से कब्जे में लिए गए तीन बलूच युवाओं के शव माकुरण और नाल (खुजदार) के अलग-अलग स्थानों पर मिले हैं। नाल के रहने वाले फारूक अहमद को 14 अप्रैल को जबरन हिरासत में लिया गया था। यह बलूचिस्तान में गुमशुदगी के तमाम अन्य मामलों के ढर्रे को दर्शाता है। इसके एक दिन बाद 15 अप्रैल को उसका शव नाल के समद चेक पोस्ट क्षेत्र से मिला। ‘द बलूचिस्तान पोस्ट’ के अनुसार, शव पर प्रताड़ना के निशान मिले थे। ग्वादर जिले में पासनी के निवासी निजाम बलूच को 12 अप्रैल को उसके घर से अवैध तरीके से उठाकर एक अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया। यह सामने आया है कि उसे 4 घंटों तक प्रताड़ित किया गया। गत 16 अप्रैल को उसका शव पासनी में फेंक दिया गया। ‘द बलूचिस्तान पोस्ट’ का दावा है कि उसे भयंकर शारीरिक प्रताड़ना दी गई। Sher Khan was first abducted, then found brutally tortured—his lifeless body dumped near a river in Turbat. A haunting reminder of the dark 2012 era, when Baloch students and activists were killed and dumped daily.#Balochistan#StopBalochGenocide pic.twitter.com/FJaJPsUGTl— Ishaq Baloch (@Ishaqbaloch_) April 17, 2025 ऐसे ही एक अन्य मामले में पासनी निवासी शेर खान निजार को 15 अप्रैल को तुरबत के जुस्साक इलाके से हिरासत में ले लिया गया और वह भी बिना किसी पूर्व सूचना या कानूनी वॉरंट के। निजार पढ़ाई करने के साथ-साथ एक डीजल डिपो पर पार्ट टाइम काम भी करता था। 16 अप्रैल की रात को उसका शव तुरबत विश्वविद्यालय के पीछे मिला। अन्य मामलों की तरह उसके शव पर घावों के निशान थे। उल्लेखनीय है कि बलूच क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों के गायब होने के मामले सामने आए हैं। गुमशुदा लोग भिन्न-भिन्न आयु वर्ग और अलग-अलग कार्यक्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इन मामलों के चश्मदीदों का आरोप है कि ये काम पाकिस्तान की ही अलग-अलग सरकारी एजेंसियों का है। हिरासत में लिए गए चुनिंदा लोग कुछ समय बाद रिहा कर दिए गए, लेकिन उनमें से अधिकांश की हत्या हो गई और तमाम अन्य अभी भी अवैध हिरासत में कैद हैं। सरकार को संबोधित एक बयान में BWF ने कहा है, “जबरन गायब किए गए बलूच लोगों की हम तत्काल और बिना शर्त रिहाई की माँग करते हैं। ऐसे मामलों ने बलूच समाज की शांति एवं स्थिरता को गहरी चोट पहुँचाई है। इसके अतिरिक्त, हम प्राधिकारी संस्थाओं से अनुरोध करते हैं कि इन मामलों के पीछे जो लोग हैं, उनकी जवाबदेही तय की जाए।” ‘किल एंड डंप’ पॉलिसी को समझना ‘किल एंड डंप’ यानी हत्या करके ठिकाने लगा देना जैसी बात कोई कल्पना मात्र नहीं है। यह बलूचिस्तान में आज़ादी की लड़ाई से निपटने की पाकिस्तानी रणनीति की कड़वी हकीकत है। पाकिस्तान मुल्क़ द्वारा प्रवर्तित यह नीति लोगों को जबरन गायब करने, तंत्रीय उत्पीड़न और गैर-कानूनी हत्याओं पर केंद्रित है। पीड़ितों के शव अक्सर क्षत-विक्षत हालत में मिलते हैं जो बयान करते हैं कि मौत से पहले उन्हें कितना कष्ट पहुँचाया गया होगा। उनका शव भी खुले में या दूरदराज के सड़कों के इर्दगिर्द फेंक दिया जाता है। इन शवों की पहचान भी जनता या परिवार के सदस्यों द्वारा की जाती है। इन शवों के साथ एक अंतर्निहित या छिपा हुआ संदेश भी होता कि पाकिस्तान के खिलाफ आवाज न उठाएँ। कैसे काम करती है यह नीति जब लोगों की गुमशुदगी, प्रताड़ना और हत्याओं का गहनता से आकलन करते हैं तो इसमें एक रुझान सामने आता है। पीड़ितों को अक्सर सादे लिबास वाले लोगों द्वारा उठाया जाता है जो ऐसे वाहनों से ऐसे आते हैं जिनकी कोई पुख्ता पहचान नहीं होती। इन लोगों के बारे में अमूमन यही माना जाता है कि उनका संबंध ISI (इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस) जैसी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी या फ्रंटियर कॉर्प्स जैसे अर्धसैनिक बल से होता है। इस क़वायद में न कोई वॉरंट होता है, न सार्वजनिक रिकॉर्ड और न ही किसी कानूनी आश्रय का कोई विकल्प। लोगों को उनके घरों, सार्वजनिक स्थलों या शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों के दौरान कहीं से भी उठा लिया जाता है। कई मामलों में लोग महीनों या सालों तक गुमशुदा रहे। जबकि अन्य मामलों में कुछ दिनों के भीतर ही उनका शव मिला जिस पर भयावह प्रताड़ना के चिह्न होते। वॉइस फोर बलूच मिसिंग पर्संस जैसे स्थानीय अधिकार समूहों ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान ऐसे हजारों मामले उजागर किए हैं। वर्ष 2011 में ह्युमन राइट्स वॉच ने ‘वी कैन टॉर्चर, किल ओर कीप यू फोर ईयर्स‘ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर इन जबरन अपहरणों और हत्याओं का आरोप लगाया था। राज्य की संलिप्तता के पुख्ता संकेत ये हत्याएँ केवल क्रूरता की श्रेणी में नहीं आतीं। इनमें खास तौर-तरीके जाहिर होते हैं जो स्पष्ट रूप से राज्य प्रायोजित हिंसक गतिविधियों की श्रेणी में आते हैं। ‘किल एंड डंप’ नीति के पीड़ित अक्सर बलूच युवा होते हैं। इनमें छात्र, पत्रकार, कवि और पाकिस्तान की नजर में ऐसे संदिग्ध राष्ट्रवादी होते हैं जो बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठाते हैं। उनके शरीर पर क्रूर यातना के निशान होते हैं। इसमें क्षत-विक्षत अंग, उखड़े हुए नाखून, सिगरेट से जलाने के निशान, तेजाब के चिह्न और गोलियों के घाव होते हैं। कइयों के शरीर पर फाँसी दिए जाने के संकेत भी नजर आते हैं। पीड़ितों का शव सार्वजनिक या अर्ध-सार्वजनिक स्थलों पर फेंक दिया जाता है। इसके पीछे का कारण है, लोगों को आतंकित करना। विरोध-प्रदर्शन करने वाले परिवार खतरा महसूस करें। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहाँ परिवार के सदस्यों द्वारा गैर-कानूनी हत्याओं का विरोध करने के खिलाफ आवाज उठाने पर उन्हें अगवा कर लिया गया या फिर उनकी हत्या हो गई। सरकार ऐसी गतिविधियों को ‘आतंकवाद विरोधी’ कदम बताती है। कानूनी लचरता और जवाबदेही का अभाव पाकिस्तान में न्यायपालिका इस प्रकार के उत्पीड़न के लिए किसी को भी जवाबदेह ठहराने में पूरी तरह से नाकाम रही है। जब परिवार के लोग साक्ष्यों या गवाहों के साथ अदालत का रुख करते हैं तो कोई कार्रवाई नहीं होती है और यदि होती भी है तो बहुत मामूली। सैन्य एजेंसियाँ न किसी तरह की जाँच के दायरे में आती हैं और न ही उन्हें कोई नतीजा भुगतना पड़ता है, क्योंकि वे ‘राष्ट्रीय हितों’ के अंतर्गत काम करती हैं। देश में ‘एड ऑफ सिविल पॉवर रेगुलेशन’ जैसा कुख्यात कानून लागू है जो सुरक्षा बलों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के नज़रबंदी केंद्रों में रखने की अनुमति देता है। जब इस प्रकार की नज़रबंदी होती है तो फिर परिणाम प्रताड़ना और कैद में मौत के रूप में सामने आता है, जिसमें किसी की कोई जवाबदेही नहीं होती। उल्लेखनीय है कि बलूच मानवाधिकार परिषद के अनुसार 2000 के दशक की शुरुआत से बलूचिस्तान में 6000 से अधिक क्षत-विक्षत शव मिल चुके हैं। यह आकलन भी बहुत न्यूनतम आधार पर लगाया गया है। अभी भी एक बड़ी तादाद में लोग अभी भी गायब बताए जा रहे हैं, जिसमें किसी जाँच की भी कोई आस नहीं। ‘किल एंड डंप’ पॉलिसी असल में बलूच पहचान को मिटाने का एक हथियार है। इसके पीड़ितों में अधिकांश बलूच भाषी लोग होते हैं जो सांस्कृतिक अधिकारों की वकालत करते हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPAC) परियोजना के अंतर्गत बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध करने वालों को भी इसमें निशाना बनाया जाता है। बलूच आबादी के प्रति भयावह उत्पीड़न के पर्याप्त साक्ष्यों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस मामले में बहुत कम आवाज बुलंद की है। यदाकदा कुछ रिपोर्ट और शोध पत्रों में ही बलूच लोगों पर किए जा रहे जुल्मों और उनकी हत्या की बातें सामने आती हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान निरंतर सैन्य मदद, कूटनीतिक सहयोग और वित्तीय सहायता प्राप्त करता जा रहा है। मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने भी बलूचिस्तान के लोगों पर हो रहे अत्याचारों की ओर से आँखें फेर रखी हैं। ‘विदेशी हाथ’ का जुमला और जन-विरोधी नीतियाँ पाकिस्तान में मीडिया संस्थानों पर मुख्य रूप से सेना का नियंत्रण है या फिर वे फौज से प्रभावित हैं। मिसाल के तौर पर ARY न्यूज, जियो टीवी और द नेशन अपनी कवरेज से ऐसा विमर्श गढ़ते हैं कि बलूचिस्तान के लोग विदेश प्रायोजित क़वायदों और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का हिस्सा हैं। इन मीडिया संस्थानों का मकसद गैर-कानूनी हत्याओं, सैन्य कब्जे, नस्लीय सफाये और संसाधनों के दोहन जैसी घरेलू शिकायतों से ध्यान भटकाना है। ये संस्थान इस कदर प्रलाप करते हैं कि अपने प्रियजनों की तलाश करने वाले परिवारों को देश-विरोध करार देने लगते हैं। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ सरकारी मशीनरी लाठी चार्ज, टीयर गैस, गोलीबारी और गिरफ्तारी जैसे कदम उठाती है जो दंगाइयों से निपटने के लिए उठाए जाते हैं। उन पर सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने या राष्ट्रविरोधी भावनाएँ भड़काने का अभियोग झेलना पड़ता है। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सख़्ती को बढ़ाने में चीन की भूमिका बलूच विद्रोहियों पर पाकिस्तानी एजेंसियों की क्रूर सख्ती से जुड़ा मसला इस पहलू को देखते हुए और जटिल बन जाता है कि इसे एक अदृश्य ताकत से सहारा मिलता है। इसकी जड़ें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) जैसे अभियान से जुड़ी हैं जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पहल के तहत आकार ले रही अरबों डॉलर की अहम परियोजना है। इस परियोजना ने बलूचिस्तान को एक उपेक्षित प्रांत से सैन्यीकृत आर्थिक क्षेत्र में तब्दील कर दिया है। जहाँ सीपैक में हाईवे, बिजली संयंत्र और बंदरगाह जैसी परियोजनाओं का सब्जबाग दिखाया जा रहा है, वहीं बलूचिस्तान के लोगों को इसके जरिये उन पर बढ़ती निगरानी, हड़पी जा रही जमीन और उनकी गर्दनों को रौंदते फौजी बूट महसूस हो रहे हैं। ग्वादर-विकास, लेकिन किसके लिए ग्वादर बंदरगाह सीपैक परियोजना की मुकुट-मणि है। यह बलूचिस्तान के दक्षिणी तट पर स्थित है। वैसे तो इसे स्थानीय लोगों की कायापलट करने वाली परियोजना के रूप में पेश किया गया, लेकिन असल में यह बंदरगाह किसी अभेद्य किले से कम नहीं। उच्च सुरक्षा वाली एक दीवार ने बलूच समुदायों को मछली पकड़ने की उनका पारंपरिक जगह से ही परे धकेलने का काम किया है। जबकि चीनी नागरिक यहाँ पाकिस्तानी सेना की सुरक्षा में खुलेआम घूमते हैं। वहीं, स्थानीय बच्चों के लिए अभी भी स्वच्छ पेयजल और बिजली का अभाव बना हुआ है। इस बंदरगाह के फायदे अभी तक स्थानीय लोगों तक पहुँचने की राह नहीं बना पाए हैं, लेकिन इस्लामाबाद और बीजिंग तक ये लाभ बेधड़क पहुँच रहे हैं। बलूचों ने इस अधिग्रहण का व्यापक रूप से विरोध किया, जिसका परिणाम उनके हिंसक दमन के रूप में निकला। ‘किल एंड डंप’ नीति प्रतिरोध की आवाज को दबाने की राज्य की रणनीति का हिस्सा है। इसका सीधा संदेश है-विरोध करने वाली आवाज दब जाए। सीपीईसी मार्गों और बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिए बलूचिस्तान में हजारों की तादाद में सैन्यकर्मी तैनात हैं। हाईवे और चीनी साइटों के आसपास प्रतिबंधित क्षेत्र बन गए हैं खासतौर से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए। यह सैन्यकरण चीनी हितों को देखते हुए उसके संग समन्वय के साथ हुआ है, जिसका परिणाम अक्सर घरों पर छापेमारियों, गिरफ्तारियों और कर्फ्यू के रूप में निकला है। चीन ने हमेशा की तरह चुप्पी साधी हुई है। उसका सरकारी मीडिया अक्सर पाकिस्तानी नैरेटिव के सुर में सुर मिलाते हुए बलूच आंदोलन को आतंकी विद्रोह की संज्ञा देता है। यहाँ तक कि 2021 में दासु में अपने इंजीनियरों पर आत्मघाती हमले के बाद चीन ने पाकिस्तान से व्यापक सुरक्षा की गारंटी भी माँगी थी।   बलूचिस्तान के संसाधनों का दोहन सीपैक और अन्य द्विपक्षीय समझौतों के अंतर्गत चीनी कंपनियों को बलूचिस्तान में खनन अधिकारों से लाभ पहुँचा है। खासतौर से सोने, तांबा और रेयर अर्थ मिनरल्स के मामले में बलूचिस्तान काफी समृद्ध है। सैनडाक और रेको डिग जैसी परियोजनाएँ इसकी उदाहरण हैं, जहाँ मुनाफा हड़प लिया जाता है और स्थानीय लोग जमीन से बेदखल और बेरोजगार होकर रह जा रहे हैं। इन परियोजनाओं का विरोध करने वाले भी या तो जबरन अगवा कर लिए गए या ग्रामीण इलाकों में ‘अज्ञात शव’ पाए गए। चीन वैसे तो प्रत्यक्ष रूप से दमन नहीं कर रहा है। हालाँकि, वह बड़ी खामोशी, लेकिन प्रभावी तरीके से बलूच विद्रोह को कुचलने में लगा है। सांख्यिकीय सिंहावलोकन सरकार प्रायोजित हिंसा के विरुद्ध बलूचिस्तान में आवाज़ ज़रूर उठी है, लेकिन पाकिस्तान इसकी भी हवा निकालने की पूरी कोशिश में लगा हुआ है। हालाँकि, स्वतंत्र संगठनों, लीक हुई रिपोर्ट और अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ताओं से बहुत खराब स्थितियों के संकेत मिलते हैं। ‘वॉइस फोर बलूच पर्संस‘ (VBMP) के अनुसार, 2000 के दशक की शुरुआत के बाद 20,000 से अधिक बलूच लोग जबरन गायब कर दिए गए हैं। इनमें छात्र, डॉक्टर, पत्रकार, कवि और यहाँ तक कि बच्चे भी शामिल हैं। अधिकांश परिवारों को गिरफ्तारी का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं मिला है और न ही संबंधित व्यक्ति के बारे में जानकारी या कोई अन्य ब्यौरा। पाकिस्तान की ‘कमीशन ऑफ इनक्वायरी ऑन एनफोर्स्ड डिसअपिरियंस’ (COIED) ने स्वीकार किया है कि उसके समक्ष हजारों अनसुलझे मामले हैं, जिनमें से अधिकांश बलूचिस्तान से हैं। जबकि स्थानीय लोगों की दलील है कि ऐसे मामलों की पूरी जानकारी सामने नहीं रखी जा सकी है। बलूच मानवाधिकार परिषद के अनुसार, जनवरी 2022 से दिसंबर 2022 के बीच 367 लोग गायब हो गए और गुमशुदा लोगों में से 79 के शव मिले, जिनकी गैर-क़ानूनी ढंग से हत्या कर दी गई। इनमें से 58 शवों की शिनाख्त नहीं हो पाई। ‘द ट्रिब्यून इंडिया’ के अनुसार, दिसंबर 2024 में केवल एक महीने के दौरान ही 22 लोगों को जबरन अगवा कर लिया गया जबकि पाँच लोगों की गैर-कानूनी ढंग से हत्या कर दी गई। इलाके में महीनों तक विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला चलता रहा। बलूच लोग गंभीर संकट से जूझ रहे हैं, लेकिन दुनिया अभी तक खामोश है। पाकिस्तान की ‘किल एंड डंप’ नीति तमाम लोगों का जीवन ले चुकी है। इन लोगों की बात सुनने के बजाय सरकार उनका हरसंभव तरीके से दमन करने में लगी है। चीनी समर्थन और मीडिया की चुप्पी एवं सहयोग से क्रूरता का यह क्रम अनवरत जारी है। इससे पहले कि बलूचिस्तान में और जिंदगियाँ खत्म हो जाएँ, दुनिया को आगे आकर उसके पक्ष में आवाज बुलंद करनी चाहिए। (इस खबर को मूल रूप से अंग्रेजी में अनुराग ने लिखा है। आप इस लिंक के जरिए इसे पढ़ सकते हैं।)   Click to listen highlighted text! सादे लिबास में आते हैं, उठाकर ले जाते हैं, फिर मिलता है क्षत-विक्षत शव… बलूचिस्तान में पाकिस्तान की ‘Kill & Dump’ नीति, बच्चों से लेकर पत्रकार तक निशाना पिछले कुछ महीनों के दौरान बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ क्रांति का नए सिरे से उभार देखने को मिला है। बलूच महिलाओं और युवाओं ने पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ इस विद्रोह की मशाल थाम रखी है। आइए, जानते हैं कि इसका कारण क्या है। इसके मूल में पाकिस्तानी एजेंसियों की उस कुख्यात ‘किल एंड डंप’ यानी ‘हत्या करके ठिकाने लगाने’ वाली नीति की वापसी है। पाकिस्तान ने पहली बार यह नीति 2009 में अपनाई थी, जिसका मकसद बलूचिस्तान के लोगों की आवाज का दमन करना था। यह क्रूर रणनीति निशाना बना कर हत्या और अपहरण के जरिए असहमति एवं विरोध के स्वरों को दबाने पर केंद्रित रही। इस नीति के अमल में आने के बाद से हजारों लोग मारे गए और तमाम गायब हो गए। ‘बलूच वुमन फोरम’ (BWF) ने हाल में इस कुख्यात ‘Kill & Dump’ पॉलिसी की कड़ी निंदा की है। संगठन ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों को लेकर पाकिस्तानी सरकार की प्रतिबद्धता को लेकर गहरा संदेह भी जताया है। Reimplementation of “Kill and Dump” policy in Balochistan is a question on the face of state’s human rights stance:Central SpokespersonBaloch Women Forum (BWF)The reimplementation of former “Kill and Dump” policy by state authorities in Balochistan is a question on the face… pic.twitter.com/OcYZoiiRyl— Baloch Women Forum (@BalochWF) April 17, 2025 BWF की प्रवक्ता ने एक बयान जारी करके कहा कि ये घटनाक्रम बलूच लोगों को व्यवस्था से अलग-थलग करने की सोच को प्रदर्शित कर रहा है। प्रवक्ता ने आगे कहा कि विगत 3 दिनों में अवैध रूप से कब्जे में लिए गए तीन बलूच युवाओं के शव माकुरण और नाल (खुजदार) के अलग-अलग स्थानों पर मिले हैं। नाल के रहने वाले फारूक अहमद को 14 अप्रैल को जबरन हिरासत में लिया गया था। यह बलूचिस्तान में गुमशुदगी के तमाम अन्य मामलों के ढर्रे को दर्शाता है। इसके एक दिन बाद 15 अप्रैल को उसका शव नाल के समद चेक पोस्ट क्षेत्र से मिला। ‘द बलूचिस्तान पोस्ट’ के अनुसार, शव पर प्रताड़ना के निशान मिले थे। ग्वादर जिले में पासनी के निवासी निजाम बलूच को 12 अप्रैल को उसके घर से अवैध तरीके से उठाकर एक अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया। यह सामने आया है कि उसे 4 घंटों तक प्रताड़ित किया गया। गत 16 अप्रैल को उसका शव पासनी में फेंक दिया गया। ‘द बलूचिस्तान पोस्ट’ का दावा है कि उसे भयंकर शारीरिक प्रताड़ना दी गई। Sher Khan was first abducted, then found brutally tortured—his lifeless body dumped near a river in Turbat. A haunting reminder of the dark 2012 era, when Baloch students and activists were killed and dumped daily.#Balochistan#StopBalochGenocide pic.twitter.com/FJaJPsUGTl— Ishaq Baloch (@Ishaqbaloch_) April 17, 2025 ऐसे ही एक अन्य मामले में पासनी निवासी शेर खान निजार को 15 अप्रैल को तुरबत के जुस्साक इलाके से हिरासत में ले लिया गया और वह भी बिना किसी पूर्व सूचना या कानूनी वॉरंट के। निजार पढ़ाई करने के साथ-साथ एक डीजल डिपो पर पार्ट टाइम काम भी करता था। 16 अप्रैल की रात को उसका शव तुरबत विश्वविद्यालय के पीछे मिला। अन्य मामलों की तरह उसके शव पर घावों के निशान थे। उल्लेखनीय है कि बलूच क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों के गायब होने के मामले सामने आए हैं। गुमशुदा लोग भिन्न-भिन्न आयु वर्ग और अलग-अलग कार्यक्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इन मामलों के चश्मदीदों का आरोप है कि ये काम पाकिस्तान की ही अलग-अलग सरकारी एजेंसियों का है। हिरासत में लिए गए चुनिंदा लोग कुछ समय बाद रिहा कर दिए गए, लेकिन उनमें से अधिकांश की हत्या हो गई और तमाम अन्य अभी भी अवैध हिरासत में कैद हैं। सरकार को संबोधित एक बयान में BWF ने कहा है, “जबरन गायब किए गए बलूच लोगों की हम तत्काल और बिना शर्त रिहाई की माँग करते हैं। ऐसे मामलों ने बलूच समाज की शांति एवं स्थिरता को गहरी चोट पहुँचाई है। इसके अतिरिक्त, हम प्राधिकारी संस्थाओं से अनुरोध करते हैं कि इन मामलों के पीछे जो लोग हैं, उनकी जवाबदेही तय की जाए।” ‘किल एंड डंप’ पॉलिसी को समझना ‘किल एंड डंप’ यानी हत्या करके ठिकाने लगा देना जैसी बात कोई कल्पना मात्र नहीं है। यह बलूचिस्तान में आज़ादी की लड़ाई से निपटने की पाकिस्तानी रणनीति की कड़वी हकीकत है। पाकिस्तान मुल्क़ द्वारा प्रवर्तित यह नीति लोगों को जबरन गायब करने, तंत्रीय उत्पीड़न और गैर-कानूनी हत्याओं पर केंद्रित है। पीड़ितों के शव अक्सर क्षत-विक्षत हालत में मिलते हैं जो बयान करते हैं कि मौत से पहले उन्हें कितना कष्ट पहुँचाया गया होगा। उनका शव भी खुले में या दूरदराज के सड़कों के इर्दगिर्द फेंक दिया जाता है। इन शवों की पहचान भी जनता या परिवार के सदस्यों द्वारा की जाती है। इन शवों के साथ एक अंतर्निहित या छिपा हुआ संदेश भी होता कि पाकिस्तान के खिलाफ आवाज न उठाएँ। कैसे काम करती है यह नीति जब लोगों की गुमशुदगी, प्रताड़ना और हत्याओं का गहनता से आकलन करते हैं तो इसमें एक रुझान सामने आता है। पीड़ितों को अक्सर सादे लिबास वाले लोगों द्वारा उठाया जाता है जो ऐसे वाहनों से ऐसे आते हैं जिनकी कोई पुख्ता पहचान नहीं होती। इन लोगों के बारे में अमूमन यही माना जाता है कि उनका संबंध ISI (इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस) जैसी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी या फ्रंटियर कॉर्प्स जैसे अर्धसैनिक बल से होता है। इस क़वायद में न कोई वॉरंट होता है, न सार्वजनिक रिकॉर्ड और न ही किसी कानूनी आश्रय का कोई विकल्प। लोगों को उनके घरों, सार्वजनिक स्थलों या शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों के दौरान कहीं से भी उठा लिया जाता है। कई मामलों में लोग महीनों या सालों तक गुमशुदा रहे। जबकि अन्य मामलों में कुछ दिनों के भीतर ही उनका शव मिला जिस पर भयावह प्रताड़ना के चिह्न होते। वॉइस फोर बलूच मिसिंग पर्संस जैसे स्थानीय अधिकार समूहों ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान ऐसे हजारों मामले उजागर किए हैं। वर्ष 2011 में ह्युमन राइट्स वॉच ने ‘वी कैन टॉर्चर, किल ओर कीप यू फोर ईयर्स‘ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर इन जबरन अपहरणों और हत्याओं का आरोप लगाया था। राज्य की संलिप्तता के पुख्ता संकेत ये हत्याएँ केवल क्रूरता की श्रेणी में नहीं आतीं। इनमें खास तौर-तरीके जाहिर होते हैं जो स्पष्ट रूप से राज्य प्रायोजित हिंसक गतिविधियों की श्रेणी में आते हैं। ‘किल एंड डंप’ नीति के पीड़ित अक्सर बलूच युवा होते हैं। इनमें छात्र, पत्रकार, कवि और पाकिस्तान की नजर में ऐसे संदिग्ध राष्ट्रवादी होते हैं जो बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठाते हैं। उनके शरीर पर क्रूर यातना के निशान होते हैं। इसमें क्षत-विक्षत अंग, उखड़े हुए नाखून, सिगरेट से जलाने के निशान, तेजाब के चिह्न और गोलियों के घाव होते हैं। कइयों के शरीर पर फाँसी दिए जाने के संकेत भी नजर आते हैं। पीड़ितों का शव सार्वजनिक या अर्ध-सार्वजनिक स्थलों पर फेंक दिया जाता है। इसके पीछे का कारण है, लोगों को आतंकित करना। विरोध-प्रदर्शन करने वाले परिवार खतरा महसूस करें। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहाँ परिवार के सदस्यों द्वारा गैर-कानूनी हत्याओं का विरोध करने के खिलाफ आवाज उठाने पर उन्हें अगवा कर लिया गया या फिर उनकी हत्या हो गई। सरकार ऐसी गतिविधियों को ‘आतंकवाद विरोधी’ कदम बताती है। कानूनी लचरता और जवाबदेही का अभाव पाकिस्तान में न्यायपालिका इस प्रकार के उत्पीड़न के लिए किसी को भी जवाबदेह ठहराने में पूरी तरह से नाकाम रही है। जब परिवार के लोग साक्ष्यों या गवाहों के साथ अदालत का रुख करते हैं तो कोई कार्रवाई नहीं होती है और यदि होती भी है तो बहुत मामूली। सैन्य एजेंसियाँ न किसी तरह की जाँच के दायरे में आती हैं और न ही उन्हें कोई नतीजा भुगतना पड़ता है, क्योंकि वे ‘राष्ट्रीय हितों’ के अंतर्गत काम करती हैं। देश में ‘एड ऑफ सिविल पॉवर रेगुलेशन’ जैसा कुख्यात कानून लागू है जो सुरक्षा बलों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के नज़रबंदी केंद्रों में रखने की अनुमति देता है। जब इस प्रकार की नज़रबंदी होती है तो फिर परिणाम प्रताड़ना और कैद में मौत के रूप में सामने आता है, जिसमें किसी की कोई जवाबदेही नहीं होती। उल्लेखनीय है कि बलूच मानवाधिकार परिषद के अनुसार 2000 के दशक की शुरुआत से बलूचिस्तान में 6000 से अधिक क्षत-विक्षत शव मिल चुके हैं। यह आकलन भी बहुत न्यूनतम आधार पर लगाया गया है। अभी भी एक बड़ी तादाद में लोग अभी भी गायब बताए जा रहे हैं, जिसमें किसी जाँच की भी कोई आस नहीं। ‘किल एंड डंप’ पॉलिसी असल में बलूच पहचान को मिटाने का एक हथियार है। इसके पीड़ितों में अधिकांश बलूच भाषी लोग होते हैं जो सांस्कृतिक अधिकारों की वकालत करते हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPAC) परियोजना के अंतर्गत बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध करने वालों को भी इसमें निशाना बनाया जाता है। बलूच आबादी के प्रति भयावह उत्पीड़न के पर्याप्त साक्ष्यों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस मामले में बहुत कम आवाज बुलंद की है। यदाकदा कुछ रिपोर्ट और शोध पत्रों में ही बलूच लोगों पर किए जा रहे जुल्मों और उनकी हत्या की बातें सामने आती हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान निरंतर सैन्य मदद, कूटनीतिक सहयोग और वित्तीय सहायता प्राप्त करता जा रहा है। मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने भी बलूचिस्तान के लोगों पर हो रहे अत्याचारों की ओर से आँखें फेर रखी हैं। ‘विदेशी हाथ’ का जुमला और जन-विरोधी नीतियाँ पाकिस्तान में मीडिया संस्थानों पर मुख्य रूप से सेना का नियंत्रण है या फिर वे फौज से प्रभावित हैं। मिसाल के तौर पर ARY न्यूज, जियो टीवी और द नेशन अपनी कवरेज से ऐसा विमर्श गढ़ते हैं कि बलूचिस्तान के लोग विदेश प्रायोजित क़वायदों और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का हिस्सा हैं। इन मीडिया संस्थानों का मकसद गैर-कानूनी हत्याओं, सैन्य कब्जे, नस्लीय सफाये और संसाधनों के दोहन जैसी घरेलू शिकायतों से ध्यान भटकाना है। ये संस्थान इस कदर प्रलाप करते हैं कि अपने प्रियजनों की तलाश करने वाले परिवारों को देश-विरोध करार देने लगते हैं। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ सरकारी मशीनरी लाठी चार्ज, टीयर गैस, गोलीबारी और गिरफ्तारी जैसे कदम उठाती है जो दंगाइयों से निपटने के लिए उठाए जाते हैं। उन पर सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने या राष्ट्रविरोधी भावनाएँ भड़काने का अभियोग झेलना पड़ता है। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सख़्ती को बढ़ाने में चीन की भूमिका बलूच विद्रोहियों पर पाकिस्तानी एजेंसियों की क्रूर सख्ती से जुड़ा मसला इस पहलू को देखते हुए और जटिल बन जाता है कि इसे एक अदृश्य ताकत से सहारा मिलता है। इसकी जड़ें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) जैसे अभियान से जुड़ी हैं जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पहल के तहत आकार ले रही अरबों डॉलर की अहम परियोजना है। इस परियोजना ने बलूचिस्तान को एक उपेक्षित प्रांत से सैन्यीकृत आर्थिक क्षेत्र में तब्दील कर दिया है। जहाँ सीपैक में हाईवे, बिजली संयंत्र और बंदरगाह जैसी परियोजनाओं का सब्जबाग दिखाया जा रहा है, वहीं बलूचिस्तान के लोगों को इसके जरिये उन पर बढ़ती निगरानी, हड़पी जा रही जमीन और उनकी गर्दनों को रौंदते फौजी बूट महसूस हो रहे हैं। ग्वादर-विकास, लेकिन किसके लिए ग्वादर बंदरगाह सीपैक परियोजना की मुकुट-मणि है। यह बलूचिस्तान के दक्षिणी तट पर स्थित है। वैसे तो इसे स्थानीय लोगों की कायापलट करने वाली परियोजना के रूप में पेश किया गया, लेकिन असल में यह बंदरगाह किसी अभेद्य किले से कम नहीं। उच्च सुरक्षा वाली एक दीवार ने बलूच समुदायों को मछली पकड़ने की उनका पारंपरिक जगह से ही परे धकेलने का काम किया है। जबकि चीनी नागरिक यहाँ पाकिस्तानी सेना की सुरक्षा में खुलेआम घूमते हैं। वहीं, स्थानीय बच्चों के लिए अभी भी स्वच्छ पेयजल और बिजली का अभाव बना हुआ है। इस बंदरगाह के फायदे अभी तक स्थानीय लोगों तक पहुँचने की राह नहीं बना पाए हैं, लेकिन इस्लामाबाद और बीजिंग तक ये लाभ बेधड़क पहुँच रहे हैं। बलूचों ने इस अधिग्रहण का व्यापक रूप से विरोध किया, जिसका परिणाम उनके हिंसक दमन के रूप में निकला। ‘किल एंड डंप’ नीति प्रतिरोध की आवाज को दबाने की राज्य की रणनीति का हिस्सा है। इसका सीधा संदेश है-विरोध करने वाली आवाज दब जाए। सीपीईसी मार्गों और बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिए बलूचिस्तान में हजारों की तादाद में सैन्यकर्मी तैनात हैं। हाईवे और चीनी साइटों के आसपास प्रतिबंधित क्षेत्र बन गए हैं खासतौर से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए। यह सैन्यकरण चीनी हितों को देखते हुए उसके संग समन्वय के साथ हुआ है, जिसका परिणाम अक्सर घरों पर छापेमारियों, गिरफ्तारियों और कर्फ्यू के रूप में निकला है। चीन ने हमेशा की तरह चुप्पी साधी हुई है। उसका सरकारी मीडिया अक्सर पाकिस्तानी नैरेटिव के सुर में सुर मिलाते हुए बलूच आंदोलन को आतंकी विद्रोह की संज्ञा देता है। यहाँ तक कि 2021 में दासु में अपने इंजीनियरों पर आत्मघाती हमले के बाद चीन ने पाकिस्तान से व्यापक सुरक्षा की गारंटी भी माँगी थी।   बलूचिस्तान के संसाधनों का दोहन सीपैक और अन्य द्विपक्षीय समझौतों के अंतर्गत चीनी कंपनियों को बलूचिस्तान में खनन अधिकारों से लाभ पहुँचा है। खासतौर से सोने, तांबा और रेयर अर्थ मिनरल्स के मामले में बलूचिस्तान काफी समृद्ध है। सैनडाक और रेको डिग जैसी परियोजनाएँ इसकी उदाहरण हैं, जहाँ मुनाफा हड़प लिया जाता है और स्थानीय लोग जमीन से बेदखल और बेरोजगार होकर रह जा रहे हैं। इन परियोजनाओं का विरोध करने वाले भी या तो जबरन अगवा कर लिए गए या ग्रामीण इलाकों में ‘अज्ञात शव’ पाए गए। चीन वैसे तो प्रत्यक्ष रूप से दमन नहीं कर रहा है। हालाँकि, वह बड़ी खामोशी, लेकिन प्रभावी तरीके से बलूच विद्रोह को कुचलने में लगा है। सांख्यिकीय सिंहावलोकन सरकार प्रायोजित हिंसा के विरुद्ध बलूचिस्तान में आवाज़ ज़रूर उठी है, लेकिन पाकिस्तान इसकी भी हवा निकालने की पूरी कोशिश में लगा हुआ है। हालाँकि, स्वतंत्र संगठनों, लीक हुई रिपोर्ट और अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ताओं से बहुत खराब स्थितियों के संकेत मिलते हैं। ‘वॉइस फोर बलूच पर्संस‘ (VBMP) के अनुसार, 2000 के दशक की शुरुआत के बाद 20,000 से अधिक बलूच लोग जबरन गायब कर दिए गए हैं। इनमें छात्र, डॉक्टर, पत्रकार, कवि और यहाँ तक कि बच्चे भी शामिल हैं। अधिकांश परिवारों को गिरफ्तारी का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं मिला है और न ही संबंधित व्यक्ति के बारे में जानकारी या कोई अन्य ब्यौरा। पाकिस्तान की ‘कमीशन ऑफ इनक्वायरी ऑन एनफोर्स्ड डिसअपिरियंस’ (COIED) ने स्वीकार किया है कि उसके समक्ष हजारों अनसुलझे मामले हैं, जिनमें से अधिकांश बलूचिस्तान से हैं। जबकि स्थानीय लोगों की दलील है कि ऐसे मामलों की पूरी जानकारी सामने नहीं रखी जा सकी है। बलूच मानवाधिकार परिषद के अनुसार, जनवरी 2022 से दिसंबर 2022 के बीच 367 लोग गायब हो गए और गुमशुदा लोगों में से 79 के शव मिले, जिनकी गैर-क़ानूनी ढंग से हत्या कर दी गई। इनमें से 58 शवों की शिनाख्त नहीं हो पाई। ‘द ट्रिब्यून इंडिया’ के अनुसार, दिसंबर 2024 में केवल एक महीने के दौरान ही 22 लोगों को जबरन अगवा कर लिया गया जबकि पाँच लोगों की गैर-कानूनी ढंग से हत्या कर दी गई। इलाके में महीनों तक विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला चलता रहा। बलूच लोग गंभीर संकट से जूझ रहे हैं, लेकिन दुनिया अभी तक खामोश है। पाकिस्तान की ‘किल एंड डंप’ नीति तमाम लोगों का जीवन ले चुकी है। इन लोगों की बात सुनने के बजाय सरकार उनका हरसंभव तरीके से दमन करने में लगी है। चीनी समर्थन और मीडिया की चुप्पी एवं सहयोग से क्रूरता का यह क्रम अनवरत जारी है। इससे पहले कि बलूचिस्तान में और जिंदगियाँ खत्म हो जाएँ, दुनिया को आगे आकर उसके पक्ष में आवाज बुलंद करनी चाहिए। (इस खबर को मूल रूप से अंग्रेजी में अनुराग ने लिखा है। आप इस लिंक के जरिए इसे पढ़ सकते हैं।)

सादे लिबास में आते हैं, उठाकर ले जाते हैं, फिर मिलता है क्षत-विक्षत शव… बलूचिस्तान में पाकिस्तान की ‘Kill & Dump’ नीति, बच्चों से लेकर पत्रकार तक निशाना

पिछले कुछ महीनों के दौरान बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ क्रांति का नए सिरे से उभार देखने को मिला है। बलूच महिलाओं और युवाओं ने पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ इस विद्रोह की मशाल थाम रखी है। आइए, जानते हैं कि इसका कारण क्या है। इसके मूल में पाकिस्तानी एजेंसियों की उस कुख्यात ‘किल एंड डंप’ यानी ‘हत्या करके ठिकाने लगाने’ वाली नीति की वापसी है। पाकिस्तान ने पहली बार यह नीति 2009 में अपनाई थी, जिसका मकसद बलूचिस्तान के लोगों की आवाज का दमन करना था।

यह क्रूर रणनीति निशाना बना कर हत्या और अपहरण के जरिए असहमति एवं विरोध के स्वरों को दबाने पर केंद्रित रही। इस नीति के अमल में आने के बाद से हजारों लोग मारे गए और तमाम गायब हो गए। ‘बलूच वुमन फोरम’ (BWF) ने हाल में इस कुख्यात ‘Kill & Dump’ पॉलिसी की कड़ी निंदा की है। संगठन ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों को लेकर पाकिस्तानी सरकार की प्रतिबद्धता को लेकर गहरा संदेह भी जताया है।

Reimplementation of “Kill and Dump” policy in Balochistan is a question on the face of state’s human rights stance:Central SpokespersonBaloch Women Forum (BWF)The reimplementation of former “Kill and Dump” policy by state authorities in Balochistan is a question on the face… pic.twitter.com/OcYZoiiRyl— Baloch Women Forum (@BalochWF) April 17, 2025

BWF की प्रवक्ता ने एक बयान जारी करके कहा कि ये घटनाक्रम बलूच लोगों को व्यवस्था से अलग-थलग करने की सोच को प्रदर्शित कर रहा है। प्रवक्ता ने आगे कहा कि विगत 3 दिनों में अवैध रूप से कब्जे में लिए गए तीन बलूच युवाओं के शव माकुरण और नाल (खुजदार) के अलग-अलग स्थानों पर मिले हैं।

नाल के रहने वाले फारूक अहमद को 14 अप्रैल को जबरन हिरासत में लिया गया था। यह बलूचिस्तान में गुमशुदगी के तमाम अन्य मामलों के ढर्रे को दर्शाता है। इसके एक दिन बाद 15 अप्रैल को उसका शव नाल के समद चेक पोस्ट क्षेत्र से मिला। ‘द बलूचिस्तान पोस्ट’ के अनुसार, शव पर प्रताड़ना के निशान मिले थे।

ग्वादर जिले में पासनी के निवासी निजाम बलूच को 12 अप्रैल को उसके घर से अवैध तरीके से उठाकर एक अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया। यह सामने आया है कि उसे 4 घंटों तक प्रताड़ित किया गया। गत 16 अप्रैल को उसका शव पासनी में फेंक दिया गया। ‘द बलूचिस्तान पोस्ट’ का दावा है कि उसे भयंकर शारीरिक प्रताड़ना दी गई।

Sher Khan was first abducted, then found brutally tortured—his lifeless body dumped near a river in Turbat. A haunting reminder of the dark 2012 era, when Baloch students and activists were killed and dumped daily.#Balochistan#StopBalochGenocide pic.twitter.com/FJaJPsUGTl— Ishaq Baloch (@Ishaqbaloch_) April 17, 2025

ऐसे ही एक अन्य मामले में पासनी निवासी शेर खान निजार को 15 अप्रैल को तुरबत के जुस्साक इलाके से हिरासत में ले लिया गया और वह भी बिना किसी पूर्व सूचना या कानूनी वॉरंट के। निजार पढ़ाई करने के साथ-साथ एक डीजल डिपो पर पार्ट टाइम काम भी करता था। 16 अप्रैल की रात को उसका शव तुरबत विश्वविद्यालय के पीछे मिला। अन्य मामलों की तरह उसके शव पर घावों के निशान थे।

उल्लेखनीय है कि बलूच क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों के गायब होने के मामले सामने आए हैं। गुमशुदा लोग भिन्न-भिन्न आयु वर्ग और अलग-अलग कार्यक्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इन मामलों के चश्मदीदों का आरोप है कि ये काम पाकिस्तान की ही अलग-अलग सरकारी एजेंसियों का है। हिरासत में लिए गए चुनिंदा लोग कुछ समय बाद रिहा कर दिए गए, लेकिन उनमें से अधिकांश की हत्या हो गई और तमाम अन्य अभी भी अवैध हिरासत में कैद हैं।

सरकार को संबोधित एक बयान में BWF ने कहा है, “जबरन गायब किए गए बलूच लोगों की हम तत्काल और बिना शर्त रिहाई की माँग करते हैं। ऐसे मामलों ने बलूच समाज की शांति एवं स्थिरता को गहरी चोट पहुँचाई है। इसके अतिरिक्त, हम प्राधिकारी संस्थाओं से अनुरोध करते हैं कि इन मामलों के पीछे जो लोग हैं, उनकी जवाबदेही तय की जाए।”

‘किल एंड डंप’ पॉलिसी को समझना

‘किल एंड डंप’ यानी हत्या करके ठिकाने लगा देना जैसी बात कोई कल्पना मात्र नहीं है। यह बलूचिस्तान में आज़ादी की लड़ाई से निपटने की पाकिस्तानी रणनीति की कड़वी हकीकत है। पाकिस्तान मुल्क़ द्वारा प्रवर्तित यह नीति लोगों को जबरन गायब करने, तंत्रीय उत्पीड़न और गैर-कानूनी हत्याओं पर केंद्रित है। पीड़ितों के शव अक्सर क्षत-विक्षत हालत में मिलते हैं जो बयान करते हैं कि मौत से पहले उन्हें कितना कष्ट पहुँचाया गया होगा।

उनका शव भी खुले में या दूरदराज के सड़कों के इर्दगिर्द फेंक दिया जाता है। इन शवों की पहचान भी जनता या परिवार के सदस्यों द्वारा की जाती है। इन शवों के साथ एक अंतर्निहित या छिपा हुआ संदेश भी होता कि पाकिस्तान के खिलाफ आवाज न उठाएँ।

कैसे काम करती है यह नीति

जब लोगों की गुमशुदगी, प्रताड़ना और हत्याओं का गहनता से आकलन करते हैं तो इसमें एक रुझान सामने आता है। पीड़ितों को अक्सर सादे लिबास वाले लोगों द्वारा उठाया जाता है जो ऐसे वाहनों से ऐसे आते हैं जिनकी कोई पुख्ता पहचान नहीं होती। इन लोगों के बारे में अमूमन यही माना जाता है कि उनका संबंध ISI (इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस) जैसी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी या फ्रंटियर कॉर्प्स जैसे अर्धसैनिक बल से होता है।

इस क़वायद में न कोई वॉरंट होता है, न सार्वजनिक रिकॉर्ड और न ही किसी कानूनी आश्रय का कोई विकल्प। लोगों को उनके घरों, सार्वजनिक स्थलों या शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों के दौरान कहीं से भी उठा लिया जाता है। कई मामलों में लोग महीनों या सालों तक गुमशुदा रहे। जबकि अन्य मामलों में कुछ दिनों के भीतर ही उनका शव मिला जिस पर भयावह प्रताड़ना के चिह्न होते।

वॉइस फोर बलूच मिसिंग पर्संस जैसे स्थानीय अधिकार समूहों ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान ऐसे हजारों मामले उजागर किए हैं। वर्ष 2011 में ह्युमन राइट्स वॉच ने ‘वी कैन टॉर्चर, किल ओर कीप यू फोर ईयर्स‘ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर इन जबरन अपहरणों और हत्याओं का आरोप लगाया था।

राज्य की संलिप्तता के पुख्ता संकेत

ये हत्याएँ केवल क्रूरता की श्रेणी में नहीं आतीं। इनमें खास तौर-तरीके जाहिर होते हैं जो स्पष्ट रूप से राज्य प्रायोजित हिंसक गतिविधियों की श्रेणी में आते हैं। ‘किल एंड डंप’ नीति के पीड़ित अक्सर बलूच युवा होते हैं। इनमें छात्र, पत्रकार, कवि और पाकिस्तान की नजर में ऐसे संदिग्ध राष्ट्रवादी होते हैं जो बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठाते हैं। उनके शरीर पर क्रूर यातना के निशान होते हैं। इसमें क्षत-विक्षत अंग, उखड़े हुए नाखून, सिगरेट से जलाने के निशान, तेजाब के चिह्न और गोलियों के घाव होते हैं। कइयों के शरीर पर फाँसी दिए जाने के संकेत भी नजर आते हैं।

पीड़ितों का शव सार्वजनिक या अर्ध-सार्वजनिक स्थलों पर फेंक दिया जाता है। इसके पीछे का कारण है, लोगों को आतंकित करना। विरोध-प्रदर्शन करने वाले परिवार खतरा महसूस करें। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहाँ परिवार के सदस्यों द्वारा गैर-कानूनी हत्याओं का विरोध करने के खिलाफ आवाज उठाने पर उन्हें अगवा कर लिया गया या फिर उनकी हत्या हो गई। सरकार ऐसी गतिविधियों को ‘आतंकवाद विरोधी’ कदम बताती है।

कानूनी लचरता और जवाबदेही का अभाव

पाकिस्तान में न्यायपालिका इस प्रकार के उत्पीड़न के लिए किसी को भी जवाबदेह ठहराने में पूरी तरह से नाकाम रही है। जब परिवार के लोग साक्ष्यों या गवाहों के साथ अदालत का रुख करते हैं तो कोई कार्रवाई नहीं होती है और यदि होती भी है तो बहुत मामूली। सैन्य एजेंसियाँ न किसी तरह की जाँच के दायरे में आती हैं और न ही उन्हें कोई नतीजा भुगतना पड़ता है, क्योंकि वे ‘राष्ट्रीय हितों’ के अंतर्गत काम करती हैं। देश में ‘एड ऑफ सिविल पॉवर रेगुलेशन’ जैसा कुख्यात कानून लागू है जो सुरक्षा बलों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के नज़रबंदी केंद्रों में रखने की अनुमति देता है। जब इस प्रकार की नज़रबंदी होती है तो फिर परिणाम प्रताड़ना और कैद में मौत के रूप में सामने आता है, जिसमें किसी की कोई जवाबदेही नहीं होती।

उल्लेखनीय है कि बलूच मानवाधिकार परिषद के अनुसार 2000 के दशक की शुरुआत से बलूचिस्तान में 6000 से अधिक क्षत-विक्षत शव मिल चुके हैं। यह आकलन भी बहुत न्यूनतम आधार पर लगाया गया है। अभी भी एक बड़ी तादाद में लोग अभी भी गायब बताए जा रहे हैं, जिसमें किसी जाँच की भी कोई आस नहीं।

‘किल एंड डंप’ पॉलिसी असल में बलूच पहचान को मिटाने का एक हथियार है। इसके पीड़ितों में अधिकांश बलूच भाषी लोग होते हैं जो सांस्कृतिक अधिकारों की वकालत करते हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPAC) परियोजना के अंतर्गत बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध करने वालों को भी इसमें निशाना बनाया जाता है।

बलूच आबादी के प्रति भयावह उत्पीड़न के पर्याप्त साक्ष्यों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस मामले में बहुत कम आवाज बुलंद की है। यदाकदा कुछ रिपोर्ट और शोध पत्रों में ही बलूच लोगों पर किए जा रहे जुल्मों और उनकी हत्या की बातें सामने आती हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान निरंतर सैन्य मदद, कूटनीतिक सहयोग और वित्तीय सहायता प्राप्त करता जा रहा है। मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने भी बलूचिस्तान के लोगों पर हो रहे अत्याचारों की ओर से आँखें फेर रखी हैं।

‘विदेशी हाथ’ का जुमला और जन-विरोधी नीतियाँ

पाकिस्तान में मीडिया संस्थानों पर मुख्य रूप से सेना का नियंत्रण है या फिर वे फौज से प्रभावित हैं। मिसाल के तौर पर ARY न्यूज, जियो टीवी और द नेशन अपनी कवरेज से ऐसा विमर्श गढ़ते हैं कि बलूचिस्तान के लोग विदेश प्रायोजित क़वायदों और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का हिस्सा हैं। इन मीडिया संस्थानों का मकसद गैर-कानूनी हत्याओं, सैन्य कब्जे, नस्लीय सफाये और संसाधनों के दोहन जैसी घरेलू शिकायतों से ध्यान भटकाना है।

ये संस्थान इस कदर प्रलाप करते हैं कि अपने प्रियजनों की तलाश करने वाले परिवारों को देश-विरोध करार देने लगते हैं। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ सरकारी मशीनरी लाठी चार्ज, टीयर गैस, गोलीबारी और गिरफ्तारी जैसे कदम उठाती है जो दंगाइयों से निपटने के लिए उठाए जाते हैं। उन पर सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने या राष्ट्रविरोधी भावनाएँ भड़काने का अभियोग झेलना पड़ता है।

बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सख़्ती को बढ़ाने में चीन की भूमिका

बलूच विद्रोहियों पर पाकिस्तानी एजेंसियों की क्रूर सख्ती से जुड़ा मसला इस पहलू को देखते हुए और जटिल बन जाता है कि इसे एक अदृश्य ताकत से सहारा मिलता है। इसकी जड़ें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) जैसे अभियान से जुड़ी हैं जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पहल के तहत आकार ले रही अरबों डॉलर की अहम परियोजना है। इस परियोजना ने बलूचिस्तान को एक उपेक्षित प्रांत से सैन्यीकृत आर्थिक क्षेत्र में तब्दील कर दिया है।

जहाँ सीपैक में हाईवे, बिजली संयंत्र और बंदरगाह जैसी परियोजनाओं का सब्जबाग दिखाया जा रहा है, वहीं बलूचिस्तान के लोगों को इसके जरिये उन पर बढ़ती निगरानी, हड़पी जा रही जमीन और उनकी गर्दनों को रौंदते फौजी बूट महसूस हो रहे हैं।

ग्वादर-विकास, लेकिन किसके लिए

ग्वादर बंदरगाह सीपैक परियोजना की मुकुट-मणि है। यह बलूचिस्तान के दक्षिणी तट पर स्थित है। वैसे तो इसे स्थानीय लोगों की कायापलट करने वाली परियोजना के रूप में पेश किया गया, लेकिन असल में यह बंदरगाह किसी अभेद्य किले से कम नहीं। उच्च सुरक्षा वाली एक दीवार ने बलूच समुदायों को मछली पकड़ने की उनका पारंपरिक जगह से ही परे धकेलने का काम किया है। जबकि चीनी नागरिक यहाँ पाकिस्तानी सेना की सुरक्षा में खुलेआम घूमते हैं। वहीं, स्थानीय बच्चों के लिए अभी भी स्वच्छ पेयजल और बिजली का अभाव बना हुआ है। इस बंदरगाह के फायदे अभी तक स्थानीय लोगों तक पहुँचने की राह नहीं बना पाए हैं, लेकिन इस्लामाबाद और बीजिंग तक ये लाभ बेधड़क पहुँच रहे हैं।

बलूचों ने इस अधिग्रहण का व्यापक रूप से विरोध किया, जिसका परिणाम उनके हिंसक दमन के रूप में निकला। ‘किल एंड डंप’ नीति प्रतिरोध की आवाज को दबाने की राज्य की रणनीति का हिस्सा है। इसका सीधा संदेश है-विरोध करने वाली आवाज दब जाए।

सीपीईसी मार्गों और बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिए बलूचिस्तान में हजारों की तादाद में सैन्यकर्मी तैनात हैं। हाईवे और चीनी साइटों के आसपास प्रतिबंधित क्षेत्र बन गए हैं खासतौर से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए। यह सैन्यकरण चीनी हितों को देखते हुए उसके संग समन्वय के साथ हुआ है, जिसका परिणाम अक्सर घरों पर छापेमारियों, गिरफ्तारियों और कर्फ्यू के रूप में निकला है।

चीन ने हमेशा की तरह चुप्पी साधी हुई है। उसका सरकारी मीडिया अक्सर पाकिस्तानी नैरेटिव के सुर में सुर मिलाते हुए बलूच आंदोलन को आतंकी विद्रोह की संज्ञा देता है। यहाँ तक कि 2021 में दासु में अपने इंजीनियरों पर आत्मघाती हमले के बाद चीन ने पाकिस्तान से व्यापक सुरक्षा की गारंटी भी माँगी थी।  

बलूचिस्तान के संसाधनों का दोहन

सीपैक और अन्य द्विपक्षीय समझौतों के अंतर्गत चीनी कंपनियों को बलूचिस्तान में खनन अधिकारों से लाभ पहुँचा है। खासतौर से सोने, तांबा और रेयर अर्थ मिनरल्स के मामले में बलूचिस्तान काफी समृद्ध है। सैनडाक और रेको डिग जैसी परियोजनाएँ इसकी उदाहरण हैं, जहाँ मुनाफा हड़प लिया जाता है और स्थानीय लोग जमीन से बेदखल और बेरोजगार होकर रह जा रहे हैं। इन परियोजनाओं का विरोध करने वाले भी या तो जबरन अगवा कर लिए गए या ग्रामीण इलाकों में ‘अज्ञात शव’ पाए गए।

चीन वैसे तो प्रत्यक्ष रूप से दमन नहीं कर रहा है। हालाँकि, वह बड़ी खामोशी, लेकिन प्रभावी तरीके से बलूच विद्रोह को कुचलने में लगा है।

सांख्यिकीय सिंहावलोकन

सरकार प्रायोजित हिंसा के विरुद्ध बलूचिस्तान में आवाज़ ज़रूर उठी है, लेकिन पाकिस्तान इसकी भी हवा निकालने की पूरी कोशिश में लगा हुआ है। हालाँकि, स्वतंत्र संगठनों, लीक हुई रिपोर्ट और अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ताओं से बहुत खराब स्थितियों के संकेत मिलते हैं।

‘वॉइस फोर बलूच पर्संस‘ (VBMP) के अनुसार, 2000 के दशक की शुरुआत के बाद 20,000 से अधिक बलूच लोग जबरन गायब कर दिए गए हैं। इनमें छात्र, डॉक्टर, पत्रकार, कवि और यहाँ तक कि बच्चे भी शामिल हैं। अधिकांश परिवारों को गिरफ्तारी का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं मिला है और न ही संबंधित व्यक्ति के बारे में जानकारी या कोई अन्य ब्यौरा।

पाकिस्तान की ‘कमीशन ऑफ इनक्वायरी ऑन एनफोर्स्ड डिसअपिरियंस’ (COIED) ने स्वीकार किया है कि उसके समक्ष हजारों अनसुलझे मामले हैं, जिनमें से अधिकांश बलूचिस्तान से हैं। जबकि स्थानीय लोगों की दलील है कि ऐसे मामलों की पूरी जानकारी सामने नहीं रखी जा सकी है।

बलूच मानवाधिकार परिषद के अनुसार, जनवरी 2022 से दिसंबर 2022 के बीच 367 लोग गायब हो गए और गुमशुदा लोगों में से 79 के शव मिले, जिनकी गैर-क़ानूनी ढंग से हत्या कर दी गई। इनमें से 58 शवों की शिनाख्त नहीं हो पाई।

‘द ट्रिब्यून इंडिया’ के अनुसार, दिसंबर 2024 में केवल एक महीने के दौरान ही 22 लोगों को जबरन अगवा कर लिया गया जबकि पाँच लोगों की गैर-कानूनी ढंग से हत्या कर दी गई। इलाके में महीनों तक विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला चलता रहा।

बलूच लोग गंभीर संकट से जूझ रहे हैं, लेकिन दुनिया अभी तक खामोश है। पाकिस्तान की ‘किल एंड डंप’ नीति तमाम लोगों का जीवन ले चुकी है। इन लोगों की बात सुनने के बजाय सरकार उनका हरसंभव तरीके से दमन करने में लगी है। चीनी समर्थन और मीडिया की चुप्पी एवं सहयोग से क्रूरता का यह क्रम अनवरत जारी है। इससे पहले कि बलूचिस्तान में और जिंदगियाँ खत्म हो जाएँ, दुनिया को आगे आकर उसके पक्ष में आवाज बुलंद करनी चाहिए।

(इस खबर को मूल रूप से अंग्रेजी में अनुराग ने लिखा है। आप इस लिंक के जरिए इसे पढ़ सकते हैं।)

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