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अमेरिका ने दी ईरान को धमकी और कहा….? अमेरिका और ईरान के बीच एक बार फिर तनातनी बढ़ गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि वह ईरान के साथ परमाणु समझौता करना चाहते हैं। उन्होंने कहा है कि अगर ऐसा नहीं होता तो वह ईरान पर बम बरसाएँगे। ईरान ने इस बीच अमेरिका से सीधे बातचीत में शामिल होने से इनकार कर दिया है। क्या बोले ट्रम्प? राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार (30 मार्च, 2025) को कहा, “यदि ईरान कोई समझौता नहीं करता, तो बम बरसाए जाएँगे… यह ऐसी बमबारी होगी, जैसी उन्होंने पहले कभी जीवन में नहीं देखी होगी।” राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान पर नए आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने का भी इशारा किया। राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह चेतावनी एक टीवी इंटरव्यू में दी। ट्रम्प ने एक और बातचीत के दौरान कहा है कि वह कुछ सप्ताह तक ईरान का रुख परखेंगे और अगर इसमें कुछ सकारात्मक नहीं पाते तो नए प्रतिबंधों की घोषणा कर देंगे। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में लिए गए ऐसे ही एक्शन की याद दिलाई। ईरान ने क्या कहा? ईरान ने राष्ट्रपति ट्रम्प की इस चेतावनी का जवाब दे दिया है। ईरान के राष्ट्रपति मंजूर पेजेश्कियाँ ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर सीधी बातचीत नहीं करने वाले हैं। उन्होंने कहा है कि ईरान अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर बातचीत करता रहेगा। राष्ट्रपति पेजेश्कियाँ ने कहा है कि ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खुमैनी भी अमेरिका से अप्रत्यक्ष बातचीत के पक्ष में हैं और यह जारी रहेगी। अप्रत्यक्ष बातचीत का मतलब अमेरिका और ईरान के बीच बातचीत दूसरे देशों के माध्यम से है। ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत अभी ओमान के माध्यम से हो रही है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इसका भी जवाब दिया है और स्पष्ट कर दिया है कि वह ईरान को परमाणु समझौता करने पर मजबूर कर दे। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “राष्ट्रपति ने ईरान के साथ समझौते पर चर्चा करने की इच्छा जताई थी।अगर ईरान समझौता नहीं चाहता है, तो राष्ट्रपति ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अन्य विकल्पों पर विचार करेंगे, यह ईरान के लिए बुरा होगा।” अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह किसी भी हाल में ईरान को परमाणु हथियार नहीं हासिल करने देंगे। वहीं राष्ट्रपति ट्रम्प की बमबारी की धमकी का कोई स्पष्ट जवाब ईरान ने नहीं दिया है। हालाँकि, वह कुछ दिन पहले अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है। ईरान ने कहा था कि अगर अमेरिका उसके ऊपर हमला करता है तो वह इस इलाके में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाएगा। ईरान के विदेश मंत्री ने कहा कि वह सैन्य दबाव में आकर बातचीत की मेज पर नहीं बैठेंगे। कहाँ से शुरू हुई समझौते की बात? ईरान और अमेरिका के बीच समझौते को लेकर यह बयानों की अदलाबदली राष्ट्रपति ट्रम्प के पत्र से चालू हुई थी। उन्होंने मार्च, 2025 के पहले सप्ताह में ईरान की सरकार को एक पत्र लिखा था, इसमें उन्होंने ईरान को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा था ईरान के लिए यह समझौता करना काफी लाभदायक होगा। उन्होंने कहा था कि ईरान को परमाणु हथियार नहीं हासिल करने दिया जा सकता। राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने इस पत्र को बातचीत का आखिरी कदम बताया था। इस पत्र का जवाब भी ईरान ने ओमान के माध्यम से दिया था। हालाँकि, ईरान ने समझौते की बात नहीं मानी। पश्चिमी देशों को डर है कि ईरान जल्द ही परमाणु हथियार हासिल कर लेगा और उसे तत्काल रोके जाने की आवश्यकता है। 2015 का समझौता ट्रम्प ने ही तोड़ा ईरान वर्तमान में तमाम प्रतिबंधों से जूझ रहा है। उस पर यहाँ प्रतिबंध अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों ने लगाए हैं। ईरान बीते लगभग ढाई दशक से परमाणु हथियार बनाने का प्रयास कर रहा है। यह बात कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सर्वे में स्पष्ट हो चुकी है। ईरान परमाणु हथियार को अपनी संप्रुभता के लिए जरूरी बताता है। हालाँकि, ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए 2015 में बराक ओबामा प्रशासन के दौरान एक समझौता हुआ था। इस समझौते में ईरान और अमेरिका के साथ ही रूस, फ्रांस, जर्मनी, चीन, ब्रिटेन औए यूरोपियन यूनियन भी शामिल थे। इस समझौते के तहत ईरान को परमाणु हथियार बनाने के लिए जरूरी यूरेनियम का भण्डार 98% कम करना था। इसके अलावा ईरान को इस यूरेनियम का उपयोग भी सीमित करना था, जिससे परमाणु बम बनाने के लिए प्रयोग में ना लाया जाए। यूरेनियम के कणों को तोड़ने के लिए इस्तेमाल के लिए जाने वाले सेंट्रीफ्यूज भी ईरान को एक तिहाई पर लाने थे। इसके बदले इन देशों ने ईरान को प्रतिबंधों से राहत देने का वादा किया था। ईरान को इसके बाद वैश्विक बाजार में तेल बेचने की सहूलियत भी मिल गई थी। हालाँकि, यह ज्यादा दिन नहीं चल पाया। 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद से लगातार डोनाल्ड ट्रम्प इस समझौते की आलोचना करते आए थे। उन्होंने 2018 में इस समझौते को खत्म करने का फैसला लिया था। उन्होंने कहा था कि यह समझौता बहुत कमजोर था और ईरान के परमाणु हथियार प्रोग्राम पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। अब क्यों समझौता चाह रहे हैं ट्रम्प? ट्रम्प के नए समझौते के लिए ईरान पर दबाव बनाने और जल्दबाजी दिखाने पर अब प्रश्न उठ रहे हैं। लोगों का पूछना है कि पिछली बार एक झटके में समझौता खत्म करने वाले राष्ट्रपति ट्रम्प इस अबकी से इतने आतुर क्यों हैं। वैसे तो इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है, लेकिन यह कदम उनकी इस बार की नीति से मेल खाता है। 2025 में राष्ट्रपति ट्रम्प की नीति पिछले कार्यकाल से थोड़ी सी अलग है। उन्होंने सत्ता में आते ही पहले इजरायल और हमास के बीच सीजफायर करवाया था। इसके बाद उन्होंने यूक्रेन और रूस के बीच भी युद्धबंदी करवाई है। उनका फोकस मुख्य रूप से अरब देशों में शांति पर है। इसी कड़ी में वह इजरायल पर दबाव घटाने के लिए ईरान से यह समझौता करना चाह रहे हैं। अगर यह समझौता होता है, तो इस इलाके में अमेरिका के हितों को भी लाभ होगा और उसे यहाँ से अपनी सैन्य तैनाती में कमी करने की जगह मिल सकेगी। हालाँकि, समझौते को लेकर अभी कोई सहमति नहीं बन पाई है।   Click to listen highlighted text! अमेरिका ने दी ईरान को धमकी और कहा….? अमेरिका और ईरान के बीच एक बार फिर तनातनी बढ़ गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि वह ईरान के साथ परमाणु समझौता करना चाहते हैं। उन्होंने कहा है कि अगर ऐसा नहीं होता तो वह ईरान पर बम बरसाएँगे। ईरान ने इस बीच अमेरिका से सीधे बातचीत में शामिल होने से इनकार कर दिया है। क्या बोले ट्रम्प? राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार (30 मार्च, 2025) को कहा, “यदि ईरान कोई समझौता नहीं करता, तो बम बरसाए जाएँगे… यह ऐसी बमबारी होगी, जैसी उन्होंने पहले कभी जीवन में नहीं देखी होगी।” राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान पर नए आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने का भी इशारा किया। राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह चेतावनी एक टीवी इंटरव्यू में दी। ट्रम्प ने एक और बातचीत के दौरान कहा है कि वह कुछ सप्ताह तक ईरान का रुख परखेंगे और अगर इसमें कुछ सकारात्मक नहीं पाते तो नए प्रतिबंधों की घोषणा कर देंगे। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में लिए गए ऐसे ही एक्शन की याद दिलाई। ईरान ने क्या कहा? ईरान ने राष्ट्रपति ट्रम्प की इस चेतावनी का जवाब दे दिया है। ईरान के राष्ट्रपति मंजूर पेजेश्कियाँ ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर सीधी बातचीत नहीं करने वाले हैं। उन्होंने कहा है कि ईरान अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर बातचीत करता रहेगा। राष्ट्रपति पेजेश्कियाँ ने कहा है कि ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खुमैनी भी अमेरिका से अप्रत्यक्ष बातचीत के पक्ष में हैं और यह जारी रहेगी। अप्रत्यक्ष बातचीत का मतलब अमेरिका और ईरान के बीच बातचीत दूसरे देशों के माध्यम से है। ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत अभी ओमान के माध्यम से हो रही है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इसका भी जवाब दिया है और स्पष्ट कर दिया है कि वह ईरान को परमाणु समझौता करने पर मजबूर कर दे। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “राष्ट्रपति ने ईरान के साथ समझौते पर चर्चा करने की इच्छा जताई थी।अगर ईरान समझौता नहीं चाहता है, तो राष्ट्रपति ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अन्य विकल्पों पर विचार करेंगे, यह ईरान के लिए बुरा होगा।” अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह किसी भी हाल में ईरान को परमाणु हथियार नहीं हासिल करने देंगे। वहीं राष्ट्रपति ट्रम्प की बमबारी की धमकी का कोई स्पष्ट जवाब ईरान ने नहीं दिया है। हालाँकि, वह कुछ दिन पहले अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है। ईरान ने कहा था कि अगर अमेरिका उसके ऊपर हमला करता है तो वह इस इलाके में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाएगा। ईरान के विदेश मंत्री ने कहा कि वह सैन्य दबाव में आकर बातचीत की मेज पर नहीं बैठेंगे। कहाँ से शुरू हुई समझौते की बात? ईरान और अमेरिका के बीच समझौते को लेकर यह बयानों की अदलाबदली राष्ट्रपति ट्रम्प के पत्र से चालू हुई थी। उन्होंने मार्च, 2025 के पहले सप्ताह में ईरान की सरकार को एक पत्र लिखा था, इसमें उन्होंने ईरान को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा था ईरान के लिए यह समझौता करना काफी लाभदायक होगा। उन्होंने कहा था कि ईरान को परमाणु हथियार नहीं हासिल करने दिया जा सकता। राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने इस पत्र को बातचीत का आखिरी कदम बताया था। इस पत्र का जवाब भी ईरान ने ओमान के माध्यम से दिया था। हालाँकि, ईरान ने समझौते की बात नहीं मानी। पश्चिमी देशों को डर है कि ईरान जल्द ही परमाणु हथियार हासिल कर लेगा और उसे तत्काल रोके जाने की आवश्यकता है। 2015 का समझौता ट्रम्प ने ही तोड़ा ईरान वर्तमान में तमाम प्रतिबंधों से जूझ रहा है। उस पर यहाँ प्रतिबंध अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों ने लगाए हैं। ईरान बीते लगभग ढाई दशक से परमाणु हथियार बनाने का प्रयास कर रहा है। यह बात कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सर्वे में स्पष्ट हो चुकी है। ईरान परमाणु हथियार को अपनी संप्रुभता के लिए जरूरी बताता है। हालाँकि, ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए 2015 में बराक ओबामा प्रशासन के दौरान एक समझौता हुआ था। इस समझौते में ईरान और अमेरिका के साथ ही रूस, फ्रांस, जर्मनी, चीन, ब्रिटेन औए यूरोपियन यूनियन भी शामिल थे। इस समझौते के तहत ईरान को परमाणु हथियार बनाने के लिए जरूरी यूरेनियम का भण्डार 98% कम करना था। इसके अलावा ईरान को इस यूरेनियम का उपयोग भी सीमित करना था, जिससे परमाणु बम बनाने के लिए प्रयोग में ना लाया जाए। यूरेनियम के कणों को तोड़ने के लिए इस्तेमाल के लिए जाने वाले सेंट्रीफ्यूज भी ईरान को एक तिहाई पर लाने थे। इसके बदले इन देशों ने ईरान को प्रतिबंधों से राहत देने का वादा किया था। ईरान को इसके बाद वैश्विक बाजार में तेल बेचने की सहूलियत भी मिल गई थी। हालाँकि, यह ज्यादा दिन नहीं चल पाया। 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद से लगातार डोनाल्ड ट्रम्प इस समझौते की आलोचना करते आए थे। उन्होंने 2018 में इस समझौते को खत्म करने का फैसला लिया था। उन्होंने कहा था कि यह समझौता बहुत कमजोर था और ईरान के परमाणु हथियार प्रोग्राम पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। अब क्यों समझौता चाह रहे हैं ट्रम्प? ट्रम्प के नए समझौते के लिए ईरान पर दबाव बनाने और जल्दबाजी दिखाने पर अब प्रश्न उठ रहे हैं। लोगों का पूछना है कि पिछली बार एक झटके में समझौता खत्म करने वाले राष्ट्रपति ट्रम्प इस अबकी से इतने आतुर क्यों हैं। वैसे तो इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है, लेकिन यह कदम उनकी इस बार की नीति से मेल खाता है। 2025 में राष्ट्रपति ट्रम्प की नीति पिछले कार्यकाल से थोड़ी सी अलग है। उन्होंने सत्ता में आते ही पहले इजरायल और हमास के बीच सीजफायर करवाया था। इसके बाद उन्होंने यूक्रेन और रूस के बीच भी युद्धबंदी करवाई है। उनका फोकस मुख्य रूप से अरब देशों में शांति पर है। इसी कड़ी में वह इजरायल पर दबाव घटाने के लिए ईरान से यह समझौता करना चाह रहे हैं। अगर यह समझौता होता है, तो इस इलाके में अमेरिका के हितों को भी लाभ होगा और उसे यहाँ से अपनी सैन्य तैनाती में कमी करने की जगह मिल सकेगी। हालाँकि, समझौते को लेकर अभी कोई सहमति नहीं बन पाई है।

अमेरिका ने दी ईरान को धमकी और कहा….?

अमेरिका और ईरान के बीच एक बार फिर तनातनी बढ़ गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि वह ईरान के साथ परमाणु समझौता करना चाहते हैं। उन्होंने कहा है कि अगर ऐसा नहीं होता तो वह ईरान पर बम बरसाएँगे। ईरान ने इस बीच अमेरिका से सीधे बातचीत में शामिल होने से इनकार कर दिया है।

क्या बोले ट्रम्प?

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार (30 मार्च, 2025) को कहा, “यदि ईरान कोई समझौता नहीं करता, तो बम बरसाए जाएँगे… यह ऐसी बमबारी होगी, जैसी उन्होंने पहले कभी जीवन में नहीं देखी होगी।” राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान पर नए आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने का भी इशारा किया।

राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह चेतावनी एक टीवी इंटरव्यू में दी। ट्रम्प ने एक और बातचीत के दौरान कहा है कि वह कुछ सप्ताह तक ईरान का रुख परखेंगे और अगर इसमें कुछ सकारात्मक नहीं पाते तो नए प्रतिबंधों की घोषणा कर देंगे। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में लिए गए ऐसे ही एक्शन की याद दिलाई।

ईरान ने क्या कहा?

ईरान ने राष्ट्रपति ट्रम्प की इस चेतावनी का जवाब दे दिया है। ईरान के राष्ट्रपति मंजूर पेजेश्कियाँ ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर सीधी बातचीत नहीं करने वाले हैं। उन्होंने कहा है कि ईरान अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर बातचीत करता रहेगा।

राष्ट्रपति पेजेश्कियाँ ने कहा है कि ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खुमैनी भी अमेरिका से अप्रत्यक्ष बातचीत के पक्ष में हैं और यह जारी रहेगी। अप्रत्यक्ष बातचीत का मतलब अमेरिका और ईरान के बीच बातचीत दूसरे देशों के माध्यम से है। ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत अभी ओमान के माध्यम से हो रही है।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इसका भी जवाब दिया है और स्पष्ट कर दिया है कि वह ईरान को परमाणु समझौता करने पर मजबूर कर दे। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “राष्ट्रपति ने ईरान के साथ समझौते पर चर्चा करने की इच्छा जताई थी।अगर ईरान समझौता नहीं चाहता है, तो राष्ट्रपति ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अन्य विकल्पों पर विचार करेंगे, यह ईरान के लिए बुरा होगा।”

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह किसी भी हाल में ईरान को परमाणु हथियार नहीं हासिल करने देंगे। वहीं राष्ट्रपति ट्रम्प की बमबारी की धमकी का कोई स्पष्ट जवाब ईरान ने नहीं दिया है। हालाँकि, वह कुछ दिन पहले अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है।

ईरान ने कहा था कि अगर अमेरिका उसके ऊपर हमला करता है तो वह इस इलाके में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाएगा। ईरान के विदेश मंत्री ने कहा कि वह सैन्य दबाव में आकर बातचीत की मेज पर नहीं बैठेंगे।

कहाँ से शुरू हुई समझौते की बात?

ईरान और अमेरिका के बीच समझौते को लेकर यह बयानों की अदलाबदली राष्ट्रपति ट्रम्प के पत्र से चालू हुई थी। उन्होंने मार्च, 2025 के पहले सप्ताह में ईरान की सरकार को एक पत्र लिखा था, इसमें उन्होंने ईरान को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था।

राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा था ईरान के लिए यह समझौता करना काफी लाभदायक होगा। उन्होंने कहा था कि ईरान को परमाणु हथियार नहीं हासिल करने दिया जा सकता। राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने इस पत्र को बातचीत का आखिरी कदम बताया था।

इस पत्र का जवाब भी ईरान ने ओमान के माध्यम से दिया था। हालाँकि, ईरान ने समझौते की बात नहीं मानी। पश्चिमी देशों को डर है कि ईरान जल्द ही परमाणु हथियार हासिल कर लेगा और उसे तत्काल रोके जाने की आवश्यकता है।

2015 का समझौता ट्रम्प ने ही तोड़ा

ईरान वर्तमान में तमाम प्रतिबंधों से जूझ रहा है। उस पर यहाँ प्रतिबंध अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों ने लगाए हैं। ईरान बीते लगभग ढाई दशक से परमाणु हथियार बनाने का प्रयास कर रहा है। यह बात कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सर्वे में स्पष्ट हो चुकी है।

ईरान परमाणु हथियार को अपनी संप्रुभता के लिए जरूरी बताता है। हालाँकि, ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए 2015 में बराक ओबामा प्रशासन के दौरान एक समझौता हुआ था। इस समझौते में ईरान और अमेरिका के साथ ही रूस, फ्रांस, जर्मनी, चीन, ब्रिटेन औए यूरोपियन यूनियन भी शामिल थे।

इस समझौते के तहत ईरान को परमाणु हथियार बनाने के लिए जरूरी यूरेनियम का भण्डार 98% कम करना था। इसके अलावा ईरान को इस यूरेनियम का उपयोग भी सीमित करना था, जिससे परमाणु बम बनाने के लिए प्रयोग में ना लाया जाए।

यूरेनियम के कणों को तोड़ने के लिए इस्तेमाल के लिए जाने वाले सेंट्रीफ्यूज भी ईरान को एक तिहाई पर लाने थे। इसके बदले इन देशों ने ईरान को प्रतिबंधों से राहत देने का वादा किया था। ईरान को इसके बाद वैश्विक बाजार में तेल बेचने की सहूलियत भी मिल गई थी। हालाँकि, यह ज्यादा दिन नहीं चल पाया।

2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद से लगातार डोनाल्ड ट्रम्प इस समझौते की आलोचना करते आए थे। उन्होंने 2018 में इस समझौते को खत्म करने का फैसला लिया था। उन्होंने कहा था कि यह समझौता बहुत कमजोर था और ईरान के परमाणु हथियार प्रोग्राम पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

अब क्यों समझौता चाह रहे हैं ट्रम्प?

ट्रम्प के नए समझौते के लिए ईरान पर दबाव बनाने और जल्दबाजी दिखाने पर अब प्रश्न उठ रहे हैं। लोगों का पूछना है कि पिछली बार एक झटके में समझौता खत्म करने वाले राष्ट्रपति ट्रम्प इस अबकी से इतने आतुर क्यों हैं। वैसे तो इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है, लेकिन यह कदम उनकी इस बार की नीति से मेल खाता है।

2025 में राष्ट्रपति ट्रम्प की नीति पिछले कार्यकाल से थोड़ी सी अलग है। उन्होंने सत्ता में आते ही पहले इजरायल और हमास के बीच सीजफायर करवाया था। इसके बाद उन्होंने यूक्रेन और रूस के बीच भी युद्धबंदी करवाई है। उनका फोकस मुख्य रूप से अरब देशों में शांति पर है।

इसी कड़ी में वह इजरायल पर दबाव घटाने के लिए ईरान से यह समझौता करना चाह रहे हैं। अगर यह समझौता होता है, तो इस इलाके में अमेरिका के हितों को भी लाभ होगा और उसे यहाँ से अपनी सैन्य तैनाती में कमी करने की जगह मिल सकेगी। हालाँकि, समझौते को लेकर अभी कोई सहमति नहीं बन पाई है।

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