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दिल्ली में मिलावटी और घटिया दारू… वो भी महँगी: AAP वाली केजरीवाल सरकार ने ‘1 पर 1 फ्री’ पिलाकर लूटा दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मंगलवार (25 फरवरी) को अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार के खिलाफ CAG रिपोर्ट को सदन में पेश किया। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि AAP सरकार की शराब नीति में कई गड़बड़ियाँ थीं। इसमें ना ही मूल्यों को तय किया गया और ना ही शराब की गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया। इन गड़बड़ियों के कारण सरकार को 2002.68 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। CAG की रिपोर्ट में कहा गया है कि आबकारी विभाग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के कर राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। इस विभाग से कुल राजस्व का अकेले 14 प्रतिशत कर के रूप में हासिल होता है। इतना बड़ा स्रोत होने के बावजूद AAP सरकार ने इसमें भारी गड़बड़ी की। इसमें लाइसेंस का उल्लंघन, पारदर्शिता की कमी, कमजोर निगरानी आदि शामिल हैं। शराब के मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता की कमी भाजपा सरकार द्वारा सदन में पेश की गई नियंत्रक एवं महालेखपरीक्षक (CAG) के मुताबिक, आबकारी विभाग ने एल1 लाइसेंसधारी (निर्माता और थोक विक्रेता) को एक निश्चित स्तर से अधिक कीमत वाली शराब के लिए अपनी EDP कीमत घोषित करने का अनुमति दी। इसके बाद निर्माण के बाद सभी मूल्य घटकों को जोड़ा गया, जिसमें निर्माता का लाभ भी शामिल था। इसमें CAG ने एक ही शराब निर्माता द्वारा विभिन्न राज्यों में अलग-अलग EDP (एक्स-डिस्टिलरी मूल्य) पर शराब की आपूर्ति पाई गई है। इतना ही नहीं, खुद EDP घोषित करने की अनुमति ने शराब निर्माताओं और थोक विक्रेताओं को शराब की कीमतों में अपने फायदे के लिए हेरफेर करने की अनुमति दी। इससे शराब की बिक्री में गिरावट आई और सरकार को भारी नुकसान हुआ। दरअसल, शराब के उचित मूल्य के निर्धारण के लिए भी निर्माताओं से लागत विवरण नहीं माँगा गया था। इसलिए एल1 लाइसेंसधारी को बढ़ी हुई EDP में छिपे मुनाफे से मुआवजा मिलने का जोखिम था। CAG का कहना है कि आबकारी विभाग को मूल्य के निर्धारण को विनियमित करना चाहिए, ताकि मूल्य के कारण बिक्री पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करके उत्पाद शुल्क राजस्व को अनुकूलित किया जा सके। गुणवत्ता निर्धारण में भारी कमी दिल्ली में शराब की गुणवत्ता का निर्धारण भी आबकारी विभाग ही करता है। मौजूदा नियमों में प्रावधान है कि थोक लाइसेंसधारियों (एल1) के लिए लाइसेंस जारी करते समय भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के प्रावधानों के अनुसार विभिन्न परीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है। आबकारी आयुक्त ने इसके लिए अलग से गुणवत्ता निर्देश नहीं दिए हैं। CAG ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि ऐसे अनेक मामले पाए गए, जिसमें परीक्षण रिपोर्ट BIS के मानकों के अनुरूप नहीं थे। AAP सरकार में आबकारी विभाग ने बड़ी कमियों के बावजूद लाइसेंस जारी किए थे। विभिन्न ब्रांडों के लिए जल की गुणवत्ता, हानिकारक तत्व, भारी धातुओं, मिथाइल अल्कोहल, सूक्ष्मजीव परीक्षण रिपोर्ट आदि प्रस्तुत ही नहीं किए गए। इसके अलावा, कुछ लाइसेंसधारियों द्वारा दिए गए परीक्षण रिपोर्ट राष्ट्रीय परीक्षण एवं अंशांकन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (NABL) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से नहीं थीं। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) अधिनियम की दिशान-निर्देशों के अनुसार NABL की रिपोर्ट जमा करना जरूरी है। नमूना जाँच रिपोर्ट की जाँच के दौरान अपर्याप्त परीक्षण प्रमाण-पत्र भी पाए गए। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक में रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी शराब से संबंधित 51 प्रतिशत मामलों में नमूना जाँच रिपोर्टों उपलब्ध नहीं कराई गईं। अगर रिपोर्ट दी भी गईं तो परीक्षण रिपोर्ट एक वर्ष से या उससे अधिक पुरानी थीं या फिर उस रिपोर्ट में तारीख का उल्लेख ही नहीं किया गय था। इस तरह ये पूरा मामला ही संदिग्ध बन जाता है।   Click to listen highlighted text! दिल्ली में मिलावटी और घटिया दारू… वो भी महँगी: AAP वाली केजरीवाल सरकार ने ‘1 पर 1 फ्री’ पिलाकर लूटा दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मंगलवार (25 फरवरी) को अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार के खिलाफ CAG रिपोर्ट को सदन में पेश किया। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि AAP सरकार की शराब नीति में कई गड़बड़ियाँ थीं। इसमें ना ही मूल्यों को तय किया गया और ना ही शराब की गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया। इन गड़बड़ियों के कारण सरकार को 2002.68 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। CAG की रिपोर्ट में कहा गया है कि आबकारी विभाग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के कर राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। इस विभाग से कुल राजस्व का अकेले 14 प्रतिशत कर के रूप में हासिल होता है। इतना बड़ा स्रोत होने के बावजूद AAP सरकार ने इसमें भारी गड़बड़ी की। इसमें लाइसेंस का उल्लंघन, पारदर्शिता की कमी, कमजोर निगरानी आदि शामिल हैं। शराब के मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता की कमी भाजपा सरकार द्वारा सदन में पेश की गई नियंत्रक एवं महालेखपरीक्षक (CAG) के मुताबिक, आबकारी विभाग ने एल1 लाइसेंसधारी (निर्माता और थोक विक्रेता) को एक निश्चित स्तर से अधिक कीमत वाली शराब के लिए अपनी EDP कीमत घोषित करने का अनुमति दी। इसके बाद निर्माण के बाद सभी मूल्य घटकों को जोड़ा गया, जिसमें निर्माता का लाभ भी शामिल था। इसमें CAG ने एक ही शराब निर्माता द्वारा विभिन्न राज्यों में अलग-अलग EDP (एक्स-डिस्टिलरी मूल्य) पर शराब की आपूर्ति पाई गई है। इतना ही नहीं, खुद EDP घोषित करने की अनुमति ने शराब निर्माताओं और थोक विक्रेताओं को शराब की कीमतों में अपने फायदे के लिए हेरफेर करने की अनुमति दी। इससे शराब की बिक्री में गिरावट आई और सरकार को भारी नुकसान हुआ। दरअसल, शराब के उचित मूल्य के निर्धारण के लिए भी निर्माताओं से लागत विवरण नहीं माँगा गया था। इसलिए एल1 लाइसेंसधारी को बढ़ी हुई EDP में छिपे मुनाफे से मुआवजा मिलने का जोखिम था। CAG का कहना है कि आबकारी विभाग को मूल्य के निर्धारण को विनियमित करना चाहिए, ताकि मूल्य के कारण बिक्री पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करके उत्पाद शुल्क राजस्व को अनुकूलित किया जा सके। गुणवत्ता निर्धारण में भारी कमी दिल्ली में शराब की गुणवत्ता का निर्धारण भी आबकारी विभाग ही करता है। मौजूदा नियमों में प्रावधान है कि थोक लाइसेंसधारियों (एल1) के लिए लाइसेंस जारी करते समय भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के प्रावधानों के अनुसार विभिन्न परीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है। आबकारी आयुक्त ने इसके लिए अलग से गुणवत्ता निर्देश नहीं दिए हैं। CAG ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि ऐसे अनेक मामले पाए गए, जिसमें परीक्षण रिपोर्ट BIS के मानकों के अनुरूप नहीं थे। AAP सरकार में आबकारी विभाग ने बड़ी कमियों के बावजूद लाइसेंस जारी किए थे। विभिन्न ब्रांडों के लिए जल की गुणवत्ता, हानिकारक तत्व, भारी धातुओं, मिथाइल अल्कोहल, सूक्ष्मजीव परीक्षण रिपोर्ट आदि प्रस्तुत ही नहीं किए गए। इसके अलावा, कुछ लाइसेंसधारियों द्वारा दिए गए परीक्षण रिपोर्ट राष्ट्रीय परीक्षण एवं अंशांकन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (NABL) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से नहीं थीं। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) अधिनियम की दिशान-निर्देशों के अनुसार NABL की रिपोर्ट जमा करना जरूरी है। नमूना जाँच रिपोर्ट की जाँच के दौरान अपर्याप्त परीक्षण प्रमाण-पत्र भी पाए गए। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक में रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी शराब से संबंधित 51 प्रतिशत मामलों में नमूना जाँच रिपोर्टों उपलब्ध नहीं कराई गईं। अगर रिपोर्ट दी भी गईं तो परीक्षण रिपोर्ट एक वर्ष से या उससे अधिक पुरानी थीं या फिर उस रिपोर्ट में तारीख का उल्लेख ही नहीं किया गय था। इस तरह ये पूरा मामला ही संदिग्ध बन जाता है।

दिल्ली में मिलावटी और घटिया दारू… वो भी महँगी: AAP वाली केजरीवाल सरकार ने ‘1 पर 1 फ्री’ पिलाकर लूटा

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मंगलवार (25 फरवरी) को अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार के खिलाफ CAG रिपोर्ट को सदन में पेश किया। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि AAP सरकार की शराब नीति में कई गड़बड़ियाँ थीं। इसमें ना ही मूल्यों को तय किया गया और ना ही शराब की गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया। इन गड़बड़ियों के कारण सरकार को 2002.68 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।

CAG की रिपोर्ट में कहा गया है कि आबकारी विभाग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के कर राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। इस विभाग से कुल राजस्व का अकेले 14 प्रतिशत कर के रूप में हासिल होता है। इतना बड़ा स्रोत होने के बावजूद AAP सरकार ने इसमें भारी गड़बड़ी की। इसमें लाइसेंस का उल्लंघन, पारदर्शिता की कमी, कमजोर निगरानी आदि शामिल हैं।

शराब के मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता की कमी

भाजपा सरकार द्वारा सदन में पेश की गई नियंत्रक एवं महालेखपरीक्षक (CAG) के मुताबिक, आबकारी विभाग ने एल1 लाइसेंसधारी (निर्माता और थोक विक्रेता) को एक निश्चित स्तर से अधिक कीमत वाली शराब के लिए अपनी EDP कीमत घोषित करने का अनुमति दी। इसके बाद निर्माण के बाद सभी मूल्य घटकों को जोड़ा गया, जिसमें निर्माता का लाभ भी शामिल था।

इसमें CAG ने एक ही शराब निर्माता द्वारा विभिन्न राज्यों में अलग-अलग EDP (एक्स-डिस्टिलरी मूल्य) पर शराब की आपूर्ति पाई गई है। इतना ही नहीं, खुद EDP घोषित करने की अनुमति ने शराब निर्माताओं और थोक विक्रेताओं को शराब की कीमतों में अपने फायदे के लिए हेरफेर करने की अनुमति दी। इससे शराब की बिक्री में गिरावट आई और सरकार को भारी नुकसान हुआ।

दरअसल, शराब के उचित मूल्य के निर्धारण के लिए भी निर्माताओं से लागत विवरण नहीं माँगा गया था। इसलिए एल1 लाइसेंसधारी को बढ़ी हुई EDP में छिपे मुनाफे से मुआवजा मिलने का जोखिम था। CAG का कहना है कि आबकारी विभाग को मूल्य के निर्धारण को विनियमित करना चाहिए, ताकि मूल्य के कारण बिक्री पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करके उत्पाद शुल्क राजस्व को अनुकूलित किया जा सके।

गुणवत्ता निर्धारण में भारी कमी

दिल्ली में शराब की गुणवत्ता का निर्धारण भी आबकारी विभाग ही करता है। मौजूदा नियमों में प्रावधान है कि थोक लाइसेंसधारियों (एल1) के लिए लाइसेंस जारी करते समय भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के प्रावधानों के अनुसार विभिन्न परीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है। आबकारी आयुक्त ने इसके लिए अलग से गुणवत्ता निर्देश नहीं दिए हैं।

CAG ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि ऐसे अनेक मामले पाए गए, जिसमें परीक्षण रिपोर्ट BIS के मानकों के अनुरूप नहीं थे। AAP सरकार में आबकारी विभाग ने बड़ी कमियों के बावजूद लाइसेंस जारी किए थे। विभिन्न ब्रांडों के लिए जल की गुणवत्ता, हानिकारक तत्व, भारी धातुओं, मिथाइल अल्कोहल, सूक्ष्मजीव परीक्षण रिपोर्ट आदि प्रस्तुत ही नहीं किए गए।

इसके अलावा, कुछ लाइसेंसधारियों द्वारा दिए गए परीक्षण रिपोर्ट राष्ट्रीय परीक्षण एवं अंशांकन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (NABL) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से नहीं थीं। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) अधिनियम की दिशान-निर्देशों के अनुसार NABL की रिपोर्ट जमा करना जरूरी है। नमूना जाँच रिपोर्ट की जाँच के दौरान अपर्याप्त परीक्षण प्रमाण-पत्र भी पाए गए।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक में रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी शराब से संबंधित 51 प्रतिशत मामलों में नमूना जाँच रिपोर्टों उपलब्ध नहीं कराई गईं। अगर रिपोर्ट दी भी गईं तो परीक्षण रिपोर्ट एक वर्ष से या उससे अधिक पुरानी थीं या फिर उस रिपोर्ट में तारीख का उल्लेख ही नहीं किया गय था। इस तरह ये पूरा मामला ही संदिग्ध बन जाता है।

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