Welcome to Lokayukt News   Click to listen highlighted text! Welcome to Lokayukt News
Latest Story
blankकुशीनगर में सरकारी स्कूल के बच्चों को जबरन उठाकर प्राइवेट स्कूल में ले जाने का आरोप,कारवाई की मांग blankगेट से घसीटकर ले गए अंदर, गार्डरूम में गैंगरेप किया: कोलकाता लॉ कॉलेज की छात्रा के साथ हुई दरिंदगी दिखी CCTV में, पुलिस सबूतों की जाँच में जुटीblankअडानी ग्रीन एनर्जी ने बनाया रिकॉर्ड, 15000 MW अक्षय ऊर्जा के लगाए प्लांट: 79 लाख घरों को किया जा सकता है रोशन, CEO ने कहा- 13 राज्यों को मिलेगा फायदाblankचीन-पाकिस्तान के बंकर में रखे हथियार भी उड़ाएगा भारत, जमीन के 100 मीटर नीचे भी मार करेगा अग्नि-5 मिसाइल का ‘बंकर बस्टर’ वेरिएंट: DRDO कर रहा डेवलप, 9800 KM/H की रफ़्तार से चलेगीblankधरमौली के युवक की गुड़गांव में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत, परिजनों ने जताई हत्या की आशंकाblankकुशीनगर जिला कांग्रेस कमेटी का गठन, मो. जहिरूद्दीन उपाध्यक्ष, आर्यन बाबू महामंत्री व निशा कुमारी बनीं सचिवblankकुशीनगर में “सोनम-2” का पर्दाफाश,फर्जी शादी, बदला धर्म और फिर 18 एकड़ ज़मीन के लालच में प्रेमी संग मिलकर सुहागरात के दिन की हत्याblankकुशीनगर में विद्युत करंट की चपेट में आने से प्राइवेट लाइनमैन की मौतblankबाइक की टक्कर में एक युवक गंभीर रूप से घायल, जिला अस्पताल रेफरblankनहर में मिला अज्ञात व्यक्ति का शव,क्षेत्र में फैली सनसनी
‘शारीरिक संबंध का अर्थ सिर्फ संभोग नहीं, यौन उत्पीड़न की तो बात ही छोड़िए’: दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग लड़की से रेप के आरोपित को किया बरी, मिली थी उम्रकैद दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत 14 साल की लड़की का रेप और यौन उत्पीड़न के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक व्यक्ति को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि शारीरिक संबंध का अर्थ सिर्फ संभोग नहीं हो सकता, यौन उत्पीड़न की तो बात ही छोड़ दीजिए। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा, “पीड़िता ने ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन इस बात की कोई स्पष्टता नहीं है कि उसने इस शब्द का इस्तेमाल करके क्या कहा था। यहाँ तक ​​कि ‘संबंध बनाया’ शब्द का इस्तेमाल भी POCSO अधिनियम की धारा 3 या IPC की धारा 376 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।” खंडपीठ ने कहा, “अगर लड़की POCSO अधिनियम के तहत नाबालिग है तो सहमति मायने नहीं रखती, लेकिन ‘शारीरिक संबंध’ शब्द को यौन उत्पीड़न तो दूर, यौन संभोग में भी नहीं बदला जा सकता है।” न्यायालय ने आगे कहा कि नाबालिग ने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि उसके साथ कोई यौन उत्पीड़न हुआ था, तथा इस बात के समर्थन में कोई साक्ष्य भी नहीं था। अदालत ने कहा, “यह तथ्य कि वह (पीड़िता) स्वेच्छा से अपीलकर्ता के साथ गई थी, इस पर भी कोई विवाद नहीं है। हालाँकि, शारीरिक संबंध या संबंध बनाने से यौन उत्पीड़न की बता करना, एक ऐसी चीज है जिसे साक्ष्य के माध्यम से रिकॉर्ड पर स्थापित किया जाना चाहिए और इसको लेकर अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। ऐसे मामलों में संदेह का लाभ अभियुक्त के पक्ष में होना चाहिए।” दरअसल, इस मामले में पीड़ित नाबालिग लड़की की माँ ने एक शिकायत दर्ज कराई थी। उस शिकायत में पीड़िता की माँ ने कहा था कि उसकी बेटी को एक अज्ञात व्यक्ति बहला-फुसलाकर घर से अगवा कर ले गया। नाबालिग ने बाद में पुलिस को बताया कि उनके बीच ‘शारीरिक संबंध’ थे। इस बयान के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने उस व्यक्ति को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। दोषी ठहराए गए व्यक्ति ने हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने पाया कि अपनी जिरह में नाबालिग लड़की ने कहा था कि आरोपित ने न तो उस पर कोई शारीरिक हमला किया और न ही उसके साथ कोई गलत काम किया। मेडिकल जाँच में भी कोई बाहरी चोट या यौन हमले के निशान नहीं मिले। हाई कोर्ट ने यह भी पाया कि आरोपित को आजीवन कारावास की सजा देने के लिए कोई उचित तर्क नहीं दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, “इस प्रकार यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रायल कोर्ट किस तरह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अपीलकर्ता द्वारा कोई यौन उत्पीड़न किया गया था। केवल इस तथ्य से कि पीड़िता 18 वर्ष से कम है, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि यौन उत्पीड़न हुआ था।” इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपित को बरी कर दिया।   Click to listen highlighted text! ‘शारीरिक संबंध का अर्थ सिर्फ संभोग नहीं, यौन उत्पीड़न की तो बात ही छोड़िए’: दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग लड़की से रेप के आरोपित को किया बरी, मिली थी उम्रकैद दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत 14 साल की लड़की का रेप और यौन उत्पीड़न के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक व्यक्ति को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि शारीरिक संबंध का अर्थ सिर्फ संभोग नहीं हो सकता, यौन उत्पीड़न की तो बात ही छोड़ दीजिए। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा, “पीड़िता ने ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन इस बात की कोई स्पष्टता नहीं है कि उसने इस शब्द का इस्तेमाल करके क्या कहा था। यहाँ तक ​​कि ‘संबंध बनाया’ शब्द का इस्तेमाल भी POCSO अधिनियम की धारा 3 या IPC की धारा 376 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।” खंडपीठ ने कहा, “अगर लड़की POCSO अधिनियम के तहत नाबालिग है तो सहमति मायने नहीं रखती, लेकिन ‘शारीरिक संबंध’ शब्द को यौन उत्पीड़न तो दूर, यौन संभोग में भी नहीं बदला जा सकता है।” न्यायालय ने आगे कहा कि नाबालिग ने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि उसके साथ कोई यौन उत्पीड़न हुआ था, तथा इस बात के समर्थन में कोई साक्ष्य भी नहीं था। अदालत ने कहा, “यह तथ्य कि वह (पीड़िता) स्वेच्छा से अपीलकर्ता के साथ गई थी, इस पर भी कोई विवाद नहीं है। हालाँकि, शारीरिक संबंध या संबंध बनाने से यौन उत्पीड़न की बता करना, एक ऐसी चीज है जिसे साक्ष्य के माध्यम से रिकॉर्ड पर स्थापित किया जाना चाहिए और इसको लेकर अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। ऐसे मामलों में संदेह का लाभ अभियुक्त के पक्ष में होना चाहिए।” दरअसल, इस मामले में पीड़ित नाबालिग लड़की की माँ ने एक शिकायत दर्ज कराई थी। उस शिकायत में पीड़िता की माँ ने कहा था कि उसकी बेटी को एक अज्ञात व्यक्ति बहला-फुसलाकर घर से अगवा कर ले गया। नाबालिग ने बाद में पुलिस को बताया कि उनके बीच ‘शारीरिक संबंध’ थे। इस बयान के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने उस व्यक्ति को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। दोषी ठहराए गए व्यक्ति ने हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने पाया कि अपनी जिरह में नाबालिग लड़की ने कहा था कि आरोपित ने न तो उस पर कोई शारीरिक हमला किया और न ही उसके साथ कोई गलत काम किया। मेडिकल जाँच में भी कोई बाहरी चोट या यौन हमले के निशान नहीं मिले। हाई कोर्ट ने यह भी पाया कि आरोपित को आजीवन कारावास की सजा देने के लिए कोई उचित तर्क नहीं दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, “इस प्रकार यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रायल कोर्ट किस तरह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अपीलकर्ता द्वारा कोई यौन उत्पीड़न किया गया था। केवल इस तथ्य से कि पीड़िता 18 वर्ष से कम है, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि यौन उत्पीड़न हुआ था।” इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपित को बरी कर दिया।

‘शारीरिक संबंध का अर्थ सिर्फ संभोग नहीं, यौन उत्पीड़न की तो बात ही छोड़िए’: दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग लड़की से रेप के आरोपित को किया बरी, मिली थी उम्रकैद

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत 14 साल की लड़की का रेप और यौन उत्पीड़न के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक व्यक्ति को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि शारीरिक संबंध का अर्थ सिर्फ संभोग नहीं हो सकता, यौन उत्पीड़न की तो बात ही छोड़ दीजिए।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा, “पीड़िता ने ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन इस बात की कोई स्पष्टता नहीं है कि उसने इस शब्द का इस्तेमाल करके क्या कहा था। यहाँ तक ​​कि ‘संबंध बनाया’ शब्द का इस्तेमाल भी POCSO अधिनियम की धारा 3 या IPC की धारा 376 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।”

खंडपीठ ने कहा, “अगर लड़की POCSO अधिनियम के तहत नाबालिग है तो सहमति मायने नहीं रखती, लेकिन ‘शारीरिक संबंध’ शब्द को यौन उत्पीड़न तो दूर, यौन संभोग में भी नहीं बदला जा सकता है।” न्यायालय ने आगे कहा कि नाबालिग ने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि उसके साथ कोई यौन उत्पीड़न हुआ था, तथा इस बात के समर्थन में कोई साक्ष्य भी नहीं था।

अदालत ने कहा, “यह तथ्य कि वह (पीड़िता) स्वेच्छा से अपीलकर्ता के साथ गई थी, इस पर भी कोई विवाद नहीं है। हालाँकि, शारीरिक संबंध या संबंध बनाने से यौन उत्पीड़न की बता करना, एक ऐसी चीज है जिसे साक्ष्य के माध्यम से रिकॉर्ड पर स्थापित किया जाना चाहिए और इसको लेकर अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। ऐसे मामलों में संदेह का लाभ अभियुक्त के पक्ष में होना चाहिए।”

दरअसल, इस मामले में पीड़ित नाबालिग लड़की की माँ ने एक शिकायत दर्ज कराई थी। उस शिकायत में पीड़िता की माँ ने कहा था कि उसकी बेटी को एक अज्ञात व्यक्ति बहला-फुसलाकर घर से अगवा कर ले गया। नाबालिग ने बाद में पुलिस को बताया कि उनके बीच ‘शारीरिक संबंध’ थे। इस बयान के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने उस व्यक्ति को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

दोषी ठहराए गए व्यक्ति ने हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने पाया कि अपनी जिरह में नाबालिग लड़की ने कहा था कि आरोपित ने न तो उस पर कोई शारीरिक हमला किया और न ही उसके साथ कोई गलत काम किया। मेडिकल जाँच में भी कोई बाहरी चोट या यौन हमले के निशान नहीं मिले। हाई कोर्ट ने यह भी पाया कि आरोपित को आजीवन कारावास की सजा देने के लिए कोई उचित तर्क नहीं दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, “इस प्रकार यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रायल कोर्ट किस तरह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अपीलकर्ता द्वारा कोई यौन उत्पीड़न किया गया था। केवल इस तथ्य से कि पीड़िता 18 वर्ष से कम है, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि यौन उत्पीड़न हुआ था।” इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपित को बरी कर दिया।

  • Related Posts

    कुशीनगर में सरकारी स्कूल के बच्चों को जबरन उठाकर प्राइवेट स्कूल में ले जाने का आरोप,कारवाई की मांग 

    कुशीनगर में सरकारी स्कूल के बच्चों को जबरन उठाकर प्राइवेट स्कूल में ले जाने का आरोप,कारवाई की मांग  प्रधानाध्यापक ने खंड शिक्षा अधिकारी को सौंपा लिखित पत्र, संचालक पर लगाया गंभीर…

    • blank
    • June 30, 2025
    • 25 views
    गेट से घसीटकर ले गए अंदर, गार्डरूम में गैंगरेप किया: कोलकाता लॉ कॉलेज की छात्रा के साथ हुई दरिंदगी दिखी CCTV में, पुलिस सबूतों की जाँच में जुटी

    कोलकाता लॉ कॉलेज में छात्रा से गैंगरेप का सीसीटीवी फुटेज सामने आया है। कोलकाता पुलिस सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि सीसीटीवी फुटेज में दिख रहा है कि…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    error: Content is protected !!
    Click to listen highlighted text!